अमरीका में
सांसदों की खरीद फरोख्त करने वाले एक लॉबिस्ट जैक अब्रामौफ के ऊपर षड्यन्त्र, धोखाधड़ी और टैक्स चोरी के आरोप में
मुकद्दमा चलाया जा रहा है। अभियोग पक्ष के मुताबिक अमरीकी सांसदों से निगमों के
पक्ष में फैसला करवाने के लिए वह उन्हें चुनाव के लिए चन्दा देता था और उनके लिए
पाँच सितारा खान-पान सुविधाओं, अय्याशियों और सैर-सपाटे की व्यवस्था करता था।
अब्रामौफ
अमरीका के कुल 35 हजार
रजिस्टर्ड लॉबिस्टों में से एक है। 1998 के बाद संसद से अवकाश ग्रहण करने वाले 40% से ज्यादा अमरीकी सांसद इसी धंधे में लगे
हुए हैं। ये लॉबिस्ट साल भर में एक सांसद को औसतन 2.5 करोड़ डॉलर (110 करोड़ रुपया) घूस देते हैं। इन घूस खाने
वालों में केवल अदने सांसद ही नहीं बल्कि कई पुराने राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति और
वर्तमान राष्ट्रपति बुश जैसी हस्तियाँ भी शामिल हैं।
अब्रामौफ
अमरीकी लोकतान्त्रिाक व्यवस्था के पतन का प्रतीक पुरुष है और वहाँ की संसद
चोर-उच्चकों, ठगों और
अपराधियों का अड्डा है। सर्वेक्षणों के मुताबिक 49% अमरीकी नागरिक मानते हैं कि उनके सांसद
भ्रष्ट हैं, जबकि 79% अमरीकियों की नजर में ‘‘देश की दोनों पार्टियाँ समान रूप से
भ्रष्ट’’ हैं। हाल ही
में अब्रामौफ ने अपने खिलाफ भ्रष्टाचार और घूसखोरी की जाँच में सहयोग करने की
घोषणा की है। उसकी इस घोषणा से आपाद-मस्तक भ्रष्टाचार में डूबे अमरीकी शासन तन्त्र
में हड़कम्प मच गया है।
हमारे देश
की स्थिति भी इससे भिन्न नहीं है। बोपफोर्स दलाली, हवालाकाण्ड, तहलका, चारा घोटाला, यूरिया घोटाला और ऐसे न जाने कितने
काण्डों ने भारतीय सांसदों के भ्रष्टाचार का पहले ही सबके सामने पर्दाफाश कर दिया
था। बोहरा कमेटी की रिपोर्ट सत्ता के शीर्ष पर विराजमान लोगों के भ्रष्टाचार का
कच्चा चिट्ठा है, जिसे अब तक
प्रकाशित नहीं किया गया। हवालाकाण्ड से जुड़े जैन बन्धुओं की डायरी में वामपन्थी
पार्टियों को छोड़कर लगभग सभी पार्टियों के नेताओं के नाम और उन्हें दी गयी घूस की
राशि का पूरा ब्यौरा दर्ज था। सी.बी.आई. को सुखराम के घर में अकूत दौलत मिली थी, जिसके बारे में बड़े ही भोलेपन के साथ
उसने कहा था कि मुझे पता नहीं कि ये सब कहाँ से आ गया। संसद जितनी पुरानी है, उसका भ्रष्टाचार भी उतना ही पुराना है।
देश की पहली लोकसभा ने ही एच.जी. मुद्गल नाम के सांसद को घूस लेने के जुर्म में
संसद से निकाला था। हाल के स्टिंग ऑपरेशनों में सांसदों के घूस लेते रंगे हाथ
पकड़े जाने और संसद की तथाकथित गरिमा को बचाने के नाम पर उन्हें संसद से निकाल
बाहर किये जाने के बाद लोकतन्त्र को लेकर जनता का रहा-सहा भ्रम भी खत्म हो गया है।
लेकिन भ्रष्टाचार की ये घटनाएँ तो पानी में तैरती विशाल बपर्फीली चट्टान का ऊपर
दिखने वाला छोटा-सा हिस्सा मात्र हैं। आम जनता की निगाह में नेता और भ्रष्टाचार
दोनों समानार्थी हैं।
यह वही
भारतीय संसद हैं जिसे जार्ज फर्नाण्डिस ने किसी समय सुअरबाड़ा कहा था। विचित्र
विरोधाभास है कि वे आज उसी स्थान की शोभा बढ़ा रहे हैं।
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