(1953 में फिदेल कास्त्रो और उनके साथियों ने बतिस्ता सरकार के जुल्म और भ्रष्टाचार के खिलाफ हथियारबंद विद्रोह कर दिया. मौन्कादा छावनी पर हमले में कई साथी शहीद हो गए और फिदेल गिरफ्तार कर लिए गए. विषम परिस्थिति और तरह-तरह की यातना का सामना करने के बावजूद फिदेल का जज्बा बरकरार रहा. उन्हें जीत की पूरी उम्मीद थी. उन्होंने अपना मुकदमा खुद लड़ते हुए न्यायधीश के सामने आजादी, न्याय और लोकतंत्र का जो तर्क पेश किया, वह अजेय हो गया. उस बयान को पुस्तिका के रूप में 'इतिहास मुझे सही साबित करेगा' (History Will Absolve Me) नाम से छापकर पूरे क्यूबा में वितरित किया गया जो क्यूबा की क्रान्ति का घोषणापत्र बन गया. यहाँ उसका अंतिम अंश पेश है.)
... मुझे यकीन है कि मैंने अपने दृष्टिकोण को पर्याप्त रूप से उचित साबित कर दिया है। सम्मानित अभियोजक महोदय ने मेरे लिए छब्बीस वर्ष की सजा की माँग करते हुए जितने कारण बताये हैं और तर्क दिये हैं, उससे कहीं अधिक कारण मैंने पेश कर दिये हैं। ये सभी कारण अपने देश में जनता की स्वतन्त्रता और प्रसन्नता के लिए संघर्ष करने वालों का समर्थन करते हैं। इनमें से कोई कारण जनता का उत्पीड़न करने वाले और निर्दयता के साथ उनको लूटने और तबाह करने वाले लोगों का समर्थन नहीं करता। यही वजह है कि मैंने इतने सारे कारण पेश कर दिये, जबकि अभियोजक महोदय एक भी कारण पेश नहीं कर सके। बटिस्टा ने जब जनता की मर्जी के खिलाफ तथा गणतन्त्र के कानूनों का उल्लंघन करके, गद्दारी और ताकत का इस्तेमाल करके सत्ता पर अधिकार कायम किया है, तो उसको उचित कैसे ठहराया जा सकता है?
कोई भी व्यक्ति रक्त से रंजित उत्पीड़न और बदनामी से ओतप्रोत शासन को कानूनी और उचित कैसे कह सकता है? जिस सरकार ने सर्वाधिक पिछड़े हुए लोगों, तौर–तरीकों, और सार्वजनिक जीवन के विचारों को अपने इर्द–गिर्द जमा कर लिया हो उसे क्रान्तिकारी कैसे माना जा सकता है? कोई भी व्यक्ति किसी न्यायालय के विश्वासघाती रवैये को कानूनी कैसे ठहरा सकता है, जबकि उस अदालत का कर्तव्य संविधान की रक्षा करना रहा हो?
कोई भी व्यक्ति रक्त से रंजित उत्पीड़न और बदनामी से ओतप्रोत शासन को कानूनी और उचित कैसे कह सकता है? जिस सरकार ने सर्वाधिक पिछड़े हुए लोगों, तौर–तरीकों, और सार्वजनिक जीवन के विचारों को अपने इर्द–गिर्द जमा कर लिया हो उसे क्रान्तिकारी कैसे माना जा सकता है? कोई भी व्यक्ति किसी न्यायालय के विश्वासघाती रवैये को कानूनी कैसे ठहरा सकता है, जबकि उस अदालत का कर्तव्य संविधान की रक्षा करना रहा हो?
जिन लोगों ने अपना खून और अपना जीवन
देकर देश के प्रति अपने कर्तव्य का पालन किया है उनको सजा देने और जेल भेजने का
अधिकार अदालतों को कहाँ से प्राप्त हो गया?
यह सब कुछ राष्ट्र की आँखों और सच्चे
न्याय के सिद्धांन्तों के सामने वीभत्स रूप में दिखायी दे रहा है।
किन्तु अभी भी एक दलील, जो और दलीलों से ज्यादा मजबूत है, बाकी है। वह दलील इस प्रकार है कि हम
लोग क्यूबावासी हैं और क्यूबावासी होने के नाते हमारा कुछ कर्तव्य है, उस कर्तव्य को पूरा न करना एक अपराध है, गद्दारी है।
हमें अपने देश के इतिहास पर अभिमान है, हमने उसे स्कूल में पढ़ा था और हम लोग
स्वतन्त्रता, न्याय और मानव अधिकारों की चर्चा सुनते–सुनते बड़े हुए हैं।
हमें शिक्षा दी गयी थी कि अपने सूरमाओं
और शहीदों की शानदार मिसाल का अनुसरण करें। सेस्पेडीज, आग्रामोन्टे, मैस्टिओ, गोमेज और मार्ती आदि पहले नाम थे जिन्होंने मस्तिष्क में जगह बनायी
थी। हमें पढ़ाया गया था कि रिटान ने एक बार कहा था कि स्वतन्त्रता भीख माँगने से
प्राप्त नहीं होती बल्कि उसे करौली की धार पर हासिल किया जाता है।
हमें पढ़ाया गया था कि क्यूबा के आजाद
नागरिकों के फायदे के लिए हमारे शिक्षक ने अपनी पुस्तक ‘स्वर्ण युग’ ‘गोल्डेन एज’ में लिखा है - ‘‘जो व्यक्ति अन्यायपूर्ण कानूनों का
पालन करता है, अपनी मातृभूमि रौंदने की इजाजत देता है
या अपने देश के साथ दुर्व्यवहार करता है, वह
एक सम्मानित मनुष्य नहीं है। संसार में जिस प्रकार एक निश्चित मात्रा में प्रकाश
चाहिए उसी प्रकार एक निश्चित मात्रा में सभ्य आचरण का होना भी जरूरी है। जब सभ्य
आचरण न रखने वाले लोगों की संख्या अधिक हो जाती है तो सदा ही कुछ दूसरे लोग ऐसे
होते हैं जो स्वयं अपने में बहुतों की सभ्यता का वरण करते हैं। ये वे लोग होते हैं
जो जनता की स्वतन्त्रता का हरण करने वालों के खिलाफ, अर्थात मानवीय सभ्यता का अपहरण करने वालों के खिलाफ पूरी शक्ति के
साथ विद्रोह करते हैं। उन लोगों में हजारों दूसरे लोग सम्मिलित रहते हैं, देश की समस्त जनता सम्मिलित रहती है, मानवीय सभ्यता शामिल रहती है।’’
हमें पढ़ाया गया था कि 10 अक्टूबर और 24
फरवरी की तारीखें अपने राष्ट्रीय त्यौहारों का महत्व रखती हैं, क्योंकि इन तारीखों में क्यूबावासियों
ने बदनाम अत्याचारी शिकन्जे के खिलाफ बगावत की थी।
हमें पढ़ाया गया था कि एक तारे वाले
अपने प्रिय राष्ट्रीय झण्डे को प्यार करें, उसकी
रक्षा करें तथा हर दिन तीसरे पहर राष्ट्रीय गान की इन पंक्तियों को दोहराया करें-
‘‘गुलामी की जंजीरों में जीवन बिताना घोर
अपमान में जीवन बिताना है और अपनी मातृभूमि के लिए जीवन अर्पण करने का अर्थ सदा के
लिए अमर हो जाना है।’’
हमने यह सब कुछ पढ़ा था और सीखा था, जिसे हम कभी नहीं भूलेंगे, हालाँकि आज हमारे देश में जो लोग बचपन
से पालने में सीखे विचारों पर अमल करने का साहस करते हैं उन्हें जेल में डाल दिया
जाता है और उनकी हत्या कर दी जाती है। हम एक स्वतन्त्र देश में पैदा हुए थे और
हमारे माता–पिता ने हमको और हमारे इस द्वीप को यह
शिक्षा दी थी कि किसी की गुलामी स्वीकार करने के पहले समुद्र में डूब कर मर जाना।
ऐसा लगता था कि उनकी जन्मशती पर शिक्षक
को हमेशा के लिए दफन कर दिया जायेगा, उनकी
याद को हमेशा के लिए भुला दिया जायेगा। हमला काफी सख्त था। लेकिन वह जीवित हैं, वह मरे नहीं हैं उनकी जनता विद्रोही हो
गयी है, उनकी जनता सुयोग्य है। उनकी जनता उनकी
स्मृति के प्रति वपफादार है। वे क्यूबावासी ही हैं, जिन्होंने उनके सिद्धांन्तों की रक्षा करते हुए अपना जीवन अर्पण किया
है। क्यूबा के अनेको नौजवानों ने नि-स्वार्थ भाव से शानदार संघर्ष करते हुए उनकी
कब्र की बगल में जगह पायी है। उन्होंने अपना जीवन और अपना खून दिया है, ताकि हमारे शिक्षक हमारे राष्ट्र के
हृदय में अमर रहें। ऐ मेरे क्यूबा, यदि
तूने अपने शिक्षक को मर जाने दिया होता तो तेरी क्या दुर्गति बनी होती?
अब मैं अपने बचाव के बयान के अन्तिम
छोर पर पहुँच रहा हूँ, किन्तु मैं इसका अन्त वकीलों के बयान
की भाँति नहीं करूँगा और यह माँग नहीं करूँगा कि अभियुक्तों को छोड़ दिया जाये। मैं
उस समय तक अपने लिए आजादी की माँग नहीं कर सकता जब तक मेरे दूसरे साथी ‘आइस्ल ऑफ पाइन्स’ की बदनाम जेल में कष्ट भोग रहे हैं।
मुझे भी वहाँ भेज दीजिए ताकि मैं उनके साथ उनके जीवन में तथा उनकी तकलीफों में
शामिल हो सकूँ। यह बात समझ में आने वाली है कि जिस देश के गणतन्त्र का राष्ट्रपति
अपराधी और चोर हो, वहाँ ईमानदार आदमियों को या तो मार
दिया जाना चाहिए या जेल में डाल दिया जाना चाहिए।
सम्मानित न्यायाधीशगण, आपके प्रति मैं हार्दिक आभार प्रकट
करता हूँ कि आपने मुझे बिना रोक–टोक
या घृणास्पद बन्धनों के अपनी बात खुलकर और साफ–साफ
कहने का अवसर प्रदान किया। मुझे आप से कोई शिकायत नहीं है। मैं स्वीकार करता हूँ
कि कुछ मामलों में आपका दृष्टिकोण मानवीय रहा है और मैं यह भी जानता हूँ कि इस
अदालत के मुख्य न्यायाधीश अपने व्यक्तिगत जीवन में एक आदर्श पुरुष हैं। वह वर्तमान
स्थिति के प्रति, जिसमें उन्हें अन्यायपूर्ण फैसले करने
के लिए बाध्य किया जाता है,
अपनी घृणा को छिपा नहीं सकते।
एक बात और, अपील की अदालत के सामने एक समस्या यह
है कि हमारी याददाश्त में जो सबसे बड़ा नरसंहार हुआ है और जिसमें सत्तर आदमियों की
हत्या की गयी है उसके बारे में क्या किया जाय। अपराधी लोग हाथों में हथियार लिए
छुट्टा घूम रहे हैं और उन हथियारों के बल पर निरन्तर नागरिकों को धमकियाँ दे रहे
हैं। अगर उन अपराधियों के उपर कानून लागू नहीं होता, चाहे उसका कारण कायरता हो या अदालतों पर उनका आधिपत्य, और फिर भी जज लोग इस्तीफा नहीं देते तो
मुझे आप पर दया आती है। और मुझे दु-ख होता है कि न्यायपालिका पर कितनी अभूतपूर्व
बदनामी लदने वाली है।
मैं जानता हूँ कि कैद का जीवन मेरे लिए
कापफी सख्त होगा, जितना सख्त पहले किसी के लिए न हुआ
होगा। यह जीवन कायरतापूर्ण धमकियों और नीचतापूर्ण क्रूरता से भरा होगा, किन्तु मैं जेल से बिल्कुल नहीं डरता, मैं उस नीच अत्याचारी के गुस्से से भी
नहीं डरता जिसने मेरे सत्तर साथियों की जान ले ली है। मुझे सजा दे दें, इससे कुछ असर मेरे उफपर पड़ने वाला नहीं
है। इतिहास मुझे सही साबित करेगा!
(‘इतिहास मुझे सही साबित करेगा’, गार्गी प्रकाशन
से साभार)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें