गुरुवार, 3 अप्रैल 2014

भगत सिंह को याद करने का अर्थ


शहीदे-आजम भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव के 84वें बलिदान दिवस पर उन्हें याद करते हुए हमारे मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि जिस सपने को लेकर हमारे क्रान्तिकारी पुरखों ने हँसते-हँसते फाँसी के फन्दे को चूम लिया था, उसका क्या हुआ? जो लोग इन शहीदों की याद में जलसे करने और उत्सव मनाने पर बेहिसाब पैसा फूँकते हैं, क्या उन लोगों को पता भी है कि हमारे शहीदों के विचार क्या थे, वे किस तरह का समाज बनाना चाहते थे और देश को किस दिशा में ले जाना चाहते थे? उनके सपनों और विचारों को दरकिनार करके, उनके बलिदान दिवस का उत्सवधर्मी, खोखला और पाखण्डी आयोजन करना उन शहीदों का कैसा सम्मान है?
सच तो यह है कि अंग्रेजों ने भगत सिंह और उनके साथियों के शरीर को ही फाँसी चढ़ायी थी, उनके विचारों को वे खत्म नहीं कर सकते थे और कर भी नहीं पाये।
भगत सिंह ने कहा था कि-
हवा में रहेगी मेरे खयाल की बिजली,
ये मुश्ते-खाक है फानी रहे, रहे न रहे।
आजादी के बाद देशी शासक भी भगत सिंह के विचारों से उतना ही भयभीत थे जितना अंग्रेज। उन्होंने इन विचारों को जनता से दूर रखने की भरपूर कोशिश की। लेकिन देश की जनता अपने गौरवशाली पुरखों को भला कैसे भूल सकती है। आज भी जन-जन के मन-मस्तिष्क में उन बलिदानियों की यादें जिन्दा हैं। दूसरी ओर जो काम अंग्रेज और उनके वारिस देशी शासक नहीं कर पाये, वही काम आज तरह-तरह के दकियानूस और जनविरोधी विचारों के वाहक करने की कोशिश में लगे हैं। जाति और धर्म के तंग दायरे से ऊपर उठकर देश और समाज के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने वाले भगत सिंह को आज उन्हीं सीमाओं में बन्द करने की साजिश हो रही है। कोई उन्हें पगड़ी पहना कर सिख बनाने का प्रयास कर रहा है तो कोई उन्हें जाट जाति का गौरव बनाने पर तुला है। कोई उन्हें आर्य समाजी बता रहा है, तो कोई हिन्दू। उनके क्रान्तिकारी विचारों पर पर्दा डालते हुए उन्हें एक ऐसे बलिदानी के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है जैसे शमा पर जलने वाला देशभक्त परवाना, जिसे यह बोध न हो कि वह क्यों अपने प्राण दे रहा है और जिसमें बस मरने का जज्बा और साहस भर हो। ये सभी प्रयास सामाजिक जड़ता को बनाये रखने वाले, प्रगति और परिवर्तन के विरोधियों की साजिश नहीं, तो भला क्या है? यह भगत सिंह के विचारों को दूषित करके लोगों को भरमाने और उनके क्रान्तिकारी विचारों को फाँसी देने का घिनौना प्रयास नहीं, तो भला और क्या है?
अभी ज्यादा समय नहीं हुआ जब संसद भवन में भगत सिंह की प्रतिमा लगायी गयी। जिसमें उन्हें पगड़ी पहने हुए दिखाया गया है। जिन काले अंग्रेजों ने मेहनतकश जनता के जीवन में न्याय, समता और खुशहाली लाने का भगत सिंह का सपना पूरी तरह त्याग कर मुट्ठी भर लोगों के लिए विकास का रास्ता अपना लिया है, उनके द्वारा उनकी प्रतिमा लगाने का ढोंग-पाखण्ड भगत सिंह का घोर अपमान है।…

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