रविवार, 27 नवंबर 2016

संयुक्त राष्ट्र अमरीका - तेजी से पतन की ओर


विश्व इतिहास में अमरीका के उभार पर एक सरसरी डालते हैं. १. प्रथम विश्व युद्ध से पहले अमरीका दुनिया का आदर्श था। २. द्वितीय विश्व युद्ध तक वह समाजवादी व्यवस्था का प्रतिद्वंदीबन गया। ३. शीत युद्ध के दौरान विश्वासघात और पूंजीवादी तानाशाही ने उसका लोकतन्त्र विरोधी चरित्र को जग जाहिर कर दिया। ४. वियतनाम, इराक़ और अफगानिस्तान पर हुई अमरीकी सैन्य दखलंदाजी ने उसके साम्राज्यवादी मंसूबों को उजागर कर दिया। ५. अमरीकी राष्ट्रपति की भाषा बदल गई-जो अमरीका के साथ नहीं है, वह आतंकवादियों के साथ है -जार्ज डबल्यू बुश। वियतनाम, इराक़, अफगानिस्तान और लीबिया में कहर बरपाने वाले और लाखों निर्दोष नागरिकों का कत्लेआम करने वाले अमरीकी साम्राज्यवाद के बारे में इन बातों को याद करने के बाद आज के अमरीका पर विचार-विमर्श शुरू कर सकते हैं.
इस समय अमरीका की भाषा देखिये। फेडरल जज जॉन प्राइमोमो ने दो टूक शब्दों में कहा है कि दो ही चीज हो सकती हैं। आपने ट्रम्प को वोट किया था या फिर नहीं। अगर आप अमरीका के नागरिक हैं तो ट्रम्प आपके राष्ट्रपति हैं और रहेंगे। अगर आप बतौर राष्ट्रपति ट्रम्प को पसंद नहीं करते हैं तो आप को किसी दूसरे देश में चले जाना चाहिए
       ट्रम्प की आलोचना का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि हिलेरी क्लिंटन आती तो अमरीका पतन की जगह उन्नति की ओर जाता। हाँ, बर्नी सैंडर्स की बात अलग थी। समिर अमीन ने बड़े सही तरीके से हिलेरी और ट्रम्प के बीच के फर्क को स्पष्ट किया है. वे कहते हैं कि इन दोनों के बीच में इतना ही फर्क है, जितना कोहड़े और कद्दू में।
       ट्रम्प ने हाल ही में मीडिया के साथ एक निजी बैठक की और मीडिया को जमकर लताड़ सुनाई। मीडिया को बेईमान, धूर्त और झूठा कहा। क्या वाकई अमरीकी मीडिया बेईमान, धूर्त और झूठा है? नहीं, वह बेईमान और धूर्त तो बिलकुल नहीं है, झूठा जरूर है। अमरीकी मीडिया के पूरे इतिहास पर एक नजर डालें, वह पूरी ईमानदारी और चालाकी के साथ अमरीकी साम्राज्यवाद को शानदार लोकतन्त्र के रूप में प्रस्तुत करता है। दुनिया भर के न्यूज चैनलों पर उसका मालिकाना है। साम्राज्यवाद के खूनी पंजे को वह हमेशा ही छुपा लेता है। विश्वबैंक, विश्व व्यापार संगठन और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने किस तरह भारत जैसे देशों की गर्दन दबोच रखी है, अमरीकी मीडिया इसे जाहिर नहीं होने देता है। उल्टे, इन्हीं संस्थाओं को वह भारत जैसे देशों के उद्धारक के रूप में प्रस्तुत करता है। इसी से साफ है कि अमरीकी मीडिया अपने साम्राज्यवादी आकाओं के प्रति बेहद ईमानदार और उनके मंसूबों को छुपाने में बेहद चालाक है।   
       अब सवाल उठता है कि जब अमरीकी मीडिया साम्राज्यवाद के प्रति इतनी प्रतिबद्ध है तो ट्रम्प ने उसे डांट क्यों लगाई? क्या ट्रम्प महोदय साम्राज्यवाद के अलावा कुछ और चाहते हैं? जी नहीं। ट्रम्प बखूबी जानते हैं कि कीचड़ में फंसी गाड़ी को बाहर निकालने के लिए चाबुक मजबूत घोड़े पर ही चलाया जाता है। साम्राज्यवादी मीडिया उनकी गाड़ी का मजबूत घोड़ा है। इसलिए इस पर चाबुक चलाना जरूरी था। अब मीडिया को साम्राज्यवादी होने के साथ-साथ ट्रम्प की भक्ति भी करनी पड़ेगी। इसे कुछ हद तक भारत की मौजूदा परिस्थितियों से समझा जा सकता है। यदि आप मोदी की तारीफ नहीं करते हैं तो आप बेईमान हैं, धूर्त हैं, झूठे हैं और साथ ही देश के गद्दार भी। आपको तो पाकिस्तान चले जाना चाहिए। ..  यही भाषा ट्रम्प और उनके समर्थकों की है । फेडरल जज जॉन प्राइमोमो ने भी दो टूक शब्दों में यही बात कही है।
       खैर अभी ट्रम्प ने अपने शुरुआती 100 दिन का एजंडा सामने रखा है। उनके राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के पहले दिन ही दुनिया के सबसे बड़े व्यापारिक समझौते ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप से अमरीका पीछे हट जाएगा। दूसरे उसी दिन से बीजा पर रह रहे लोगों की जांच पड़ताल शुरू हो जाएगी। इन दोनों ही फैसलों का भारत जैसे देशों पर प्रतिकूल असर पड़ने वाला है। भारत में नोटबंदी के फैसले से कारोबार चौपट है। ठेका या दिहाड़ी पर गुजरवश करने वाले लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है। अगर कारोबार ठप रहा तो कंपनियों से छंटनी शुरू होना तय है। भारत में बेरोजगारी की दर लगातार बढ़ रही है। ऐसे में यदि अमरीका भारतीय कर्मचारियों को वापस भेजता है तो भारत सरकार के हाथ-पाँव फूलना तय है।
       संयोग देखिये, भारत की साम्प्रदायिक ताक़तें अमरीका में ट्रम्प की जीत के लिए यज्ञ और हवन करती हैं और जीत पर जश्न मना रही हैं। यह इतिहास की उस विडम्बना की ओर ध्यान खींचता है जब हम गुलाम थे। ब्रिटेन साम्राज्यवादी युद्ध में फँसा हुआ था। भारत के कई राजनीतिक संगठन अंग्रेजों की विजय के लिए यज्ञ और हवन कर रहे थे। चाहते तो ब्रिटेन के खिलाफ विद्रोह कर के उसकी सत्ता को उखाड़ फेंक सकते थे। आज की सांप्रदायिक ताक़तें ट्रम्प को सिर्फ इसलिए पूज रही हैं क्योंकि उसने मौखिक तौर पर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ जहर उगला है। कोई अगर मुस्लिम समुदाय से जितनी अधिक नफरत करता है, तो भारत का दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी धड़ा उसे अपने उतने ही करीब पाता है।
       इन्हें इस बात का एहसास है भी या नहीं कि ट्रम्प एक साम्राज्यवादी देश का राष्ट्रपति है। जिसकी अर्थव्यवस्था आपके जैसे देशों की लूट-खसोट से मजबूत हुई है। आप उसके आर्थिक गुलाम हैं। आपको अपनी पूरी ताकत अपनी आर्थिक आज़ादी को हासिल करने में लगानी चाहिए न कि ट्रम्प जैसे धूर्त व्यक्ति की पूजा करने में।


-राजेश चौधरी

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