19 अक्टूबर 1950
को माओ के आदेश पर 4 लाख से अधिक चीनी
सेना के कई स्वयसेवी दस्तों ने यालू नदी को पार किया और वे अमरीकी सैन्य टुकड़ी की
राह में घात लगाकर बैठ गये, जो चीनी सीमा की ओर
बढ़ रही थी। अमरीकी इकाईयाँ उस देश के इतने मजबूत प्रतिरोध से अचम्भित थीं जिसे
उन्होंने कम करके आँका था।
इस प्रतिरोध से
उन्हें दक्षिणी समुद्र तट के नजदीकी क्षेत्र की ओर पीछे हटना पड़ा और इस तरह चीन
तथा उत्तरी कोरिया के संयुक्त बलों द्वारा उन्हें पीछे ढकेल दिया गया। स्तालिन
बहुत सचेत थे, हालाँकि उन्होंने 42.5
मील सीमित मोर्चे के लिए मिग–15 लड़ाकू विमान भेजा
था जिसके चालक रूसी थे, फिर भी यह सहयोग माओ
की उम्मीद से कम ही था। लेकिन यह सहयोग संघर्ष के शुरुआती दौर के लिए बहुमूल्य
साबित हुआ और इसने साहस के साथ आगे बढ़ती हुई थल सेना की रक्षा की।
महाशक्ति के रूप में
हमेशा विद्यमान रही अमरीकी वायु सेना के भीषण आक्रमण के विरूद्ध निरन्तर लड़ाई से
प्योंगयांग पर पुन: अधिकार कर लिया गया और एक बार फिर सीओल पर भी कब्जा कर लिया
गया। मैकआर्थर का नाभिकीय हथियारों से चीन पर हमला करने का विचार था। इस शर्मनाक
हार का स्वाद चखने के बाद उसने उनके इस्तेमाल का प्रस्ताव रखा। राष्ट्रपति ट्रुमैन
ने जब देखा कि कोई अन्य रास्ता नहीं है तो उसे उसके पद से हटा दिया और जनरल
मैथ्यूज रिगवे को युद्धक्षेत्र की सम्पूर्ण कार्यवाही में जल, थल
और वायु सेना का प्रमुख नियुक्त किया। अमरीका के साथ यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, नीदरलैण्ड, बेल्जियम, लक्जेमवर्ग, ग्रीस, कनाडा, तुर्की, इथोपिया, साउथ
अफ्रीका, फिलीपीन्स, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड
थाईलैण्ड और कोलम्बिया ने इस साम्राज्यवादी दुस्साहस में भाग लिया। कोलम्बिया उस
समय रूढ़िवादी लौरीनो गोम्ज के एकाधिकारी सत्ता के अधीन था जो किसानों के व्यापक
कत्लेआम के लिए जिम्मेदार था, लातिन अमरीका के
केवल इसी देश ने भाग लिया था। साम्राज्यवादी युद्ध में जैसा हमने कहा कि हैले
सेलासी का इथोपिया जहाँ पर दास प्रथा अभी भी अस्तित्व में थी और दक्षिणी अफ्रीका
जो अभी भी गोरे लोगों के प्रभुत्व के अधीन था ने भी इस आक्रमण में भाग लिया।
सितम्बर 1939
से शुरू होकर अगस्त 1945 को खत्म होने वाले
वैश्विक नर संहार के मुश्किल से पाँच सालों बाद यह युद्ध लड़ा गया। कोरियाई राज्य
क्षेत्र में इस खूनी संघर्ष के बाद, 38
वीं अक्षांश रेखा एक बार फिर उत्तरी और दक्षिणी कोरिया की विभाजन सीमा बन गयी। यह
आंकलन किया गया कि इस युद्ध में करीब 20 लाख कोरियाई, लगभग
5
लाख या दस लाख चीनी और 10 लाख अधिक मित्र
राष्ट्रों के सैनिक मारे गये। लगभग 40 हजार अमरीकी
सैनिकों ने अपनी जानें गवाँयीं। उनमें से ऐसे लोग भी कम नहीं थें जो कि प्यूर्तांे
रिको या अन्य लातिन अमरीकी देश में पैदा हुए हों, युद्ध में भाग लेने
के लिए जिनका चयन हुआ था, वे गरीब अप्रवासी थे
जो अपनी खराब हालात के चलते युद्ध क्षेत्र में भेज दिये गये थे। इस संघर्ष से
जापान को कई लाभ मिलने वाले थे। एक साल में ही उसका औद्योगिक उत्पादन 50
प्रतिशत बढ़ गया और दो साल के अन्दर ही फिर से युद्ध के पहले का उत्पादन स्तर
प्राप्त कर लिया गया। फिर भी जो चीज नहीं बदल पायी वह थी – एक
भावना कि कोरिया में चीन की साम्राज्यवादी फौज ने नरसंहार का काम किया था। जापानी
सरकार को उसके उन सैनिकों द्वारा किये गये नरसंहार का मुआवजा देना पड़ा जिन सैनिकों
ने चीन में दस हजार औरतों से बलात्कार किया था लाखों लोगों का निर्दयता से कत्ल
किया था।
जापान पूरी तरह तेल
और अन्य महत्वपूर्ण कच्चे मालों से वंचित था, वहाँ के लोगों ने
कड़ी मेहनत और दृढ़ता के बल पर अपने देश को विश्व की दूसरे नम्बर की महाशक्तिशाली
अर्थव्यवस्था में परिवर्तन कर दिया था।
पूँजीवादी पैमाने पर
मापा जाये तो जापान का सकल घरेलू उत्पाद इस समय 4.5
अरब डॉलर है, हालाँकि विभिन्न पश्चिमी स्रोतों के
आँकड़ें लगातार बदलते रहतेे हैं। इस देश के पास एक अरब डॉलर से अधिक की दुर्लभ
मुद्रा संरक्षित है। चीन का सकल घरेलू उत्पाद 2.2
अरब डॉलर है जो जापान की तुलना में दो गुनी है। चीन ने जापान से 50
प्रतिशत अधिक दुर्लभ मुद्रा संरक्षित कर रखा है। अमरीका के पास जापान से 34.6
गुना क्षेत्र तथा 2.3 गुना अधिक जनसंख्या
है, जबकि
सकल घरेलू उत्पाद 12.4 अरब डॉलर है जो
जापान के सकल घरेलू उत्पाद से केवल 3 गुना ही है। आज
इसकी सरकार साम्राज्यवादियों के मुख्य सहयोगियों में से एक है, एक
समय यह आर्थिक मंदी के चलते संकट में फँस गया था और इस महाशक्तिशाली देश के उन्नत
हथियारों ने सम्पूर्ण मानवजाति के लिए खतरा पैदा कर दिया था। ये सब ऐतिहासिक सबक
हैं जिनको कभी भुलाया नहीं जा सकता है।
युद्ध ने एक प्रकार
से चीन पर अत्यधिक भार डाल दिया था। ट्रुमैन ने छठवीं जहाजी बेड़े को चीन की उस
क्रान्तिकारी सेना को उतरने से रोकने का निर्देश दिया जो 0.3
प्रतिशत अपने क्षेत्र को हासिल करके अपने देश को पूरी तरह आजाद करा लेती। यह
विवादित क्षेत्र अमरीका समर्थित चियांग काई शेक के कब्जे में था जो वहाँ भाग गया
था।
मार्च 1953
में स्तालिन की मृत्यु के बाद चीन और सोवियत संघ के रिश्ते खराब होने वाले थे।
क्रान्तिकारी आन्दोलन में लगभग सभी जगह फूट पड़ गयी। जो नुकसान हुआ था, हो
ची मिन्ह के नाटकीय आह्वान ने उसका खुलासा कर दिया और अपने विशाल मीडिया उपकरणों
के साथ साम्राज्यवाद ने झूठे क्रान्तिकारी सिद्धान्तकारों के बीच उग्रवाद की आगों
को भड़का दिया था, यह एक ऐसी करतूत थी
जिसमंे अमरीकी खुफिया विभाग सिद्धहस्थ था। मनमाने बँटवारे के बाद उत्तरी कोरिया को
देश का बहुत उबड़–खाबड़ भाग दिया गया।
अनाज और भोजन का प्रत्येक दाना बलिदान और पसीने से प्राप्त करना पड़ता था। राजधानी
प्योंगयांग को जमींदोज कर दिया गया। बहुत से लोग, युद्ध में घायल या
अपंग हुए थे, उन्हें उपचार की आवश्यकता थी। वे नाकेबंदी
को झेल रहे थे और उनके पास संसाधन मौजूद नहीं था। सोवियत संघ और अन्य समाजवादी
समूह के देश युद्ध से उबरने की प्रक्रिया में थे।
जब मैं कोरिया की
जनता के जनतांत्रिक गणतंत्र में 7 मार्च 1986
को पहुँचा, युद्ध द्वारा बर्बाादी के लगभग 33
साल बीत चुके थे। यह विश्वास करना मुश्किल था जो यहाँ घटित हुआ था। यहाँ की महान
जनता ने अनगिनत चीजों का निर्माण किया – बड़े और छोटे अनगिनत
बाँध तथा पानी को संरक्षित करने के लिए नहरें, बिजली उत्पादन, व्यावसायिक
शहरें और सिंचित खेत थमोईलेक्ट्रिक इकाई, बड़े
यांत्रिक और दूसरी तरह के कारखाने, उनमें से कई सतह से
नीचे गहराई में थे। सब कुछ बहुत कठिन विधिवत श्रम से पैदा किया गया था, तांबा
और एल्यूमीनियम की कमी के चलते मजबूत होकर बिजली खपत पारेषण तार को बनाने के लिए
आयरन का इस्तेमाल करना पड़ा, आंशिक तौर पर आयरन
को कोयले से उत्पन्न किया जाता था।
राजधानी और अन्य शहर
जो नष्ट किये जा चुके थे, धीरे–धीरे
उनका पुनर्निर्माण किया गया। मेंरे अनुमान से ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में
लाखों नये घरों का निर्माण हो चुका था और दस हजार से अधिक अन्य प्रकार की सुविधाएँ
स्थापित की गयी थीं। पत्थर, कंकरीट, लकड़ी, सिन्थेटिक
उत्पाद और मशीनरी में अनगिनत घण्टों के काम समाहित थे। मुझे खेतों को देखने का
अवसर मिला, जहाँ भी मैं गया, बगीचे
ही दिखायी दिये। हर जगह सुसज्जित, संगठित और उत्साही
लोग मेहमानांे के स्वागत के लिए तैयार थे। यह देश सहयोग और शान्ति के लायक है।
ऐसा कोई मुद्दा नहीं
था जिसके बारे में मैंने अपने प्रसिद्ध मेजबान किंग इल संग के साथ चर्चा न की हो।
मैं इसे कभी भूल नहीं सकूँगा। कोरिया को एक काल्पनिक रेखा द्वारा दो भागों में
बाँट दिया गया। दक्षिण की तरफ का अलग ही अनुभव था। यह हिस्सा बहुत सघन आबादी वाला
था और युद्ध के दौरान इसका कम विनाश हुआ था। एक विशाल विदेशी सैन्य बलांे की
उपस्थिति के लिए स्थानीय निर्मित और अन्य वस्तुओं की आपूर्ति जरूरी थी जैसे–कारीगरी
की वस्तुओं से लेकर ताजे फलों और सब्जियों की सेवाओं का तो कोई उल्लेख नहीं। मित्र
राष्ट्रों का सैन्य खर्च बहुत अधिक था। ठीक यही सब तब घटित हुआ, जब
अमरीका ने उस देश में व्यापक सैन्य बलों को अनिश्चित समय के लिए रखने का फैसला
किया था।
शीत युद्ध के दौरान
यहाँ पश्चिम और जापान के बहुराष्ट्रीय निवेशकों ने बहुत अधिक पैसों का निवेश किया
और अनगिनत धन बाहर ले गये जो दक्षिण कोरिया के लोगों के पसीेने की कमाई थी। वे
उतनी ही कड़ी मेहनत करने वाले और उद्यमी थे जितने उनके उत्तरी कोरियाई भाई थे।
विश्व के महान बाजार उनके उत्पादों के लिए खुले थे। उनके लिए कोई नाकेबंदी नहीं थी।
आज देश के पास उच्च तकनीकी और उत्पादकता है। यह पश्चिम के संकट को झेल चुका है, जिसके
बाद कई दक्षिणी कोरियाई कम्पनियों को बहुराष्ट्रीय निवेशकों द्वारा खरीद लिया गया।
आत्मसंयमी स्वभाव की
इसकी जनता ने राज्य को दुर्लभ मुद्रा के महत्वपूर्ण संग्रह को जमा करने दिया। आज
यह अमरीका की आर्थिक मन्दी को झेल रहा है। दक्षिण कोरिया का सकल घरेलू उत्पाद 787.6
अरब डॉलर है जो ब्राजील के 796 अरब डॉलर और
मैक्सिको के 768 अरब डॉलर के लगभग बराबर है, जबकि
इन देशों के पास प्रचूर मात्रा में हाइड्रोकार्बन का जखीरा और इनकी आबादी भी
दक्षिणी कोरिया की तुलना में ज्यादा है। साम्राज्यवाद ने इन देशांे पर भी अपनी
व्यवस्था थोप दी। दोनों देश ब्राजील और मैक्सिको पिछड़ गये लेकिन तीसरा देश दक्षिण
कोरिया बहुत अधिक विकास कर गया। दक्षिण कोरिया से पश्चिम की तरफ शायद ही कोई विस्थापन
हुआ हो। यह विस्थापन सामूहिक रूप से मैक्सिको से लेकर वर्तमान अमरीकी क्षेत्र तक
हुआ है।
ब्राजील से लेकर
दक्षिण तथा मध्य अमरीका के लोग उपभोक्तावाद के प्रचार से प्रभावित होकर और रोजगार
की तलाश में चारों तरफ विस्थापित हुए। आज फिर उन्हें बहुत कठोर और अपमानजनक शर्तों
पर वेतन दिया जाता है।
यह ज्ञात है कि
अगस्त 2006
में हवाना में आयोजित शिखर सम्मेलन के दौरान गुट निरपेक्ष आन्दोलन में शामिल
क्यूबा ने नाभिकीय हथियारों के सिद्धान्तों की अवस्थिति को समर्थन दिया था। जब मैं
प्योंगयांग हवाई अडडे पर पहुँचा तो कोरिया की जनता के जनतान्त्रिक गणतंत्र के
वर्तमान नेता किंग जोंग इल से मिला। वह अपने पिता के समीप लाल कालीन के एक किनारे
अलग से खड़े थे। क्यूबा ने उनकी सरकार के साथ सर्वश्रेष्ठ रिश्ता कायम किया है। जब
सोवियत संघ और समाजवादी खेमा टूट गया, कोरिया की जनता के
जनतान्त्रिक गणतन्त्र ने तेल, कच्चे माल और
उपकरणों के स्रोत और महत्त्वपूर्ण बाजार खो दिया। क्यूबा के मामले में इसका नतीजा
अधिक कठोर था। बहुत बलिदान के जरिये हासिल की गयी प्रगति खतरे मे पड़ गयी। इसके
बावजूद उन्होंने नाभिकीय हथियारों के निर्माण की अपनी क्षमता को दिखला दिया।
जब लगभग एक साल पहले
नाभिकीय परीक्षण किया गया तो हमने उत्तरी कोरिया की सरकार से तीसरी दुनिया के गरीब
देशों पर आसन्न खतरे के अपने दृष्टिकोण से अवगत कर दिया। दुनिया के लिए निर्णायक
घड़ी में कोरियाई जनता साम्राज्यवादी षड़यन्त्रों के खिलाफ एक गैरबराबरी और कठिन
युद्ध लड़ रहीे थी। ऐसा जरूरी नहीं हो सकता है कि इस मोड़ पर किम सोन्ग इल पहले से
ही निर्णय कर चुके हों कि इस क्षेत्र की रणनीतिक और भौगोलिक विशेषताओं को ध्यान
में रखते हुए उन्हें क्या करना है।
हम नाभिकीय हथियारों के कार्यक्रम को स्थगित
करने की उत्तरी कोरिया की घोषणा को देखकर खुश हैं। इसका बुश के ब्लैकमेल और अपराध
से कोर्ई लेना–देना नहीं है जो अब नरसंहार की अपनी नीति
की सफलता के प्रमाण के रूप में इस घोषणा को प्रस्तुत कर रहा है। उत्तरी कोरिया के
नाभिकीय प्रदर्शन का उद्देश्य अमरीका की सरकार को निशाना बनाना नहीं था जिसके
सामने वह एक कदम भी पीछे नहीं हटा, बल्कि उसका पड़ोसी
मित्र चीन था जिसकी सुरक्षा और विकास दोनों राज्यों के लिए अनिवार्य है।
तीसरी दुनिया के देश
चीन और दो कोरिया के बीच दोस्ती और सहयोग में रुचि रखते हैं, जिनकी
एकजुटता समुद्र के एक किनारे से दूसरे किनारे तक हो जरूरी नहीं है। जैसा जर्मनी के
मामले में था जो आज नाटो में अमरीका का सहयोगी है। एक–एक
करके धैर्य से लेकिन अथक रूप से उनकी संस्कृति तथा इतिहास जैसे–जैसे
अनुकूल होंगे, वे मजबूत बन्धन में बँधते चले जायेंगे जो
दोनों कोरिया को एकजुट करेगा। हम दक्षिण कोरिया के साथ सम्बन्धों को अधिक से अधिक
बढ़ा रहे हैं। उत्तरी कोरिया के साथ सम्बन्ध पहले से था जिन्हें हम मजबूत करना जारी
रखेंगे।
फिदेल कास्त्रो रुज
(24 जुलाई
2008)
अनुवादक- अजय कुमार
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