(25 नवम्बर 2016 को क्यूबा के महान क्रांतिकारी फिदेल कास्त्रो 90 साल की उम्र में दुनिया से विदा हो गए। वे आधी सदी से भी अधिक समय तक पूरी दुनिया के इंसाफ पसंद लोगों के आदर्श रहे। वे हमारे लिए नैतिक आदर्श बने रहेंगे और उनके विचार हमें प्रेरणा देते रहेंगे।)
इस
बात में उनकी दृढ़ आस्था लगभग विस्मयकारी थी कि अन्तस्चेतना का समुचित संघटन ही
मनुष्य की महानतम उपलब्धि है और दुनिया को बदलने और इतिहास को आगे बढ़ाने में भौतिक
प्रोत्साहन के बजाय नैतिक प्रोत्साहन कहीं अधिक समर्थ होते हैं। मुझे यकीन है कि
वे हमारे दौर के महानतम आदर्शवादी हैं–-गेब्रियल गार्सिया मार्क्वेज
हमारे जैसे मार्क्सवादी वामपन्थियों के जीवन पर
इस बात की गहरी छाप है कि फिदेल कास्त्रो हमारे दौर में सक्रिय रहे और हम राजनीति
को हमेशा व्यवहारिक नैतिक शास्त्र की एक शाखा के रूप में ग्रहण करते हैं तथा
कम्युनिस्ट सरकारों को भी हम इन्हीं नैतिकताओं की रोशनी में परखते हैं। हमारे दौर
के किसी भी कम्युनिस्ट से अधिक फिदेल, हमें निरन्तर आगाह करते हैं कि हम जिसे
‘वैज्ञानिक समाजवाद’ कहते हैं, यह उनके शब्दों
में ‘नैतिक शास्त्र की एक शाखा’ भी है, वरना व्यर्थ है।
उनका यही पहलू गेब्रियल गार्सिया को 40 वर्षों से फिदेल का दोस्त बनाये हुए है,
जिनकी
नजर में फिदेल ‘महानतम नैतिकतावादियों में से एक’ हैं।
अमरीकी
सेना की गोला बारी के दायरे में आनेवाला एक छोटा सा टापू जो अपने दुश्मन के 84 वें
भाग के बराबर है-फ्लोरिडा के समुद्री तट से ठीक सामने बसा एक
गरीब टापू जो कई वर्षों से मानव इतिहस के सबसे ताकतवर साम्राज्य की धमकियों के
साये में जी रहा है-क्यों अमरीकी साम्राज्य का प्रतिरोध करना उसके
लिए एकदम जरूरी है ? भयावह भूचाल जब पाकिस्तान के उत्तरी इलाकों को
तहस–नहस करता है तो वहाँ क्यूबाई डॉक्टर भेजना क्यों जरूरी है जबकि
घेरेबन्दी के शिकार इस छोटे से देश क्यूबा का उस देश में या और कहीं भी कोई
भौगोलिक स्वार्थ नहीं है ?
पुर्तगाली
उपनिवेशवाद से आजाद हुए अंगोला के उ़पर जब उस दौर के नस्लवादी दक्षिण अफ्रीकी शासक
आक्रमण करते हैं तो अंगोला की आजादी की रक्षा के लिए क्यों असंख्य क्यूबाई वहाँ
अपनी जान कुर्बान करने जाते हैं? क्यों आज भी 18 देशों में क्यूबाई
स्वास्थ्य कर्मी सक्रिय हैं, जहाँ वे असंख्य लोगों की जान बचा रहे
हैं, जबकि वे उस देश से कोई सम्पत्ति तो क्या, अपनी तनख्वाह तक
नहीं लेते ? क्या कारण है कि 1990 के दशक में अपने
क्रान्तिकारी जीवन के कठिनतम दौर में भी क्यूबा की सरकार इस बात की गारण्टी के लिए
जान लड़ा देती है कि हर बच्चा स्कूल जाये और हरएक परिवार को विश्व स्वास्थ्य संगठन
द्वारा निर्धारित न्यूनतम स्वास्थ्य खुराक की भरपायी के लिए पर्याप्त कैलोरी और
प्रोटीन मुहैय्या किया जाये ? और यह भी सुनिश्चित करे कि देश के सभी
विक्लांग बच्चों को विशेष तरह के स्कूलों में या जरूरी हो तो उनके घर पर या
अस्पताल में जाकर ही शिक्षा दी जाये?
यह
क्यों जरूरी था कि जब अमरीकी शहर न्यू आर्लियान्स को समुद्री तूफान ने तबाह कर
दिया तो क्यूबा की ओर से वहाँ लगभग एक हजार डॉक्टर और कई टन दवाईयाँ भेजने का
प्रस्ताव दिया जाय, बावजूद इसके कि अमरीकी घेरेबन्दी के चलते
क्यूबा को खुद ही हजारों करोड़ डॉलर का नुकसान हो चुका है ?
ढेर
सारी बातों में से एक बात जो फिदेल के शासनकाल को इतिहास में इतना लाजवाब बनाती है।
वह यह कि वे इन व्यवहारिक सवालों को हमेशा नैतिकता से जोड़ते हैं। जो देश अपने हर
एक बच्चे को (ऐसे बच्चों को भी जो आत्मसम्मोहन जैसी हीनता के शिकार हो) स्कूल नहीं
भेजता, अपने सभी नागरिकों के लिए बुनियादी पोषक तत्वों की गारण्टी नहीं करता
या कुपोषण और साध्य बीमारियों को जड़ से नहीं मिटाता, वह उनकी नजर में
ने केवल वर्ग और नस्ल के लिहाज से बहुत गहराई तक बँटा हुआ समाज है, बल्कि
सीधे–सीधे वह एक अनैतिक राष्ट्र है। नैतिकता सांसारिक वस्तुओं में निहित
होती है तथा मार्ती और मार्क्स, दोनों से एक समान प्रभावित और उससे
निसृत उनकी अपनी ‘नैतिकशास्त्र की शाखा’-राष्ट्रवादी और
समाजवादी नैतिकता-‘‘संसार का समस्त गौरव मक्का के एक दाने के बराबर
है,’’ इसका तभी कोई मतलब है जब हर बच्चा पोषित और शिक्षित हो, चाहे
वह गाँव का हो या शहर का और जब हर राष्ट्र अपनी विपुल सम्पदा को जहाँ तक सम्भव हो,
उपहार
के रूप में दूसरे राष्ट्रों के साथ आपस में बाँटता हो।
फिदेल
को इस बात पर गर्व है कि क्यूबा के लोग उन ढेर सारी बीमारियों से नहीं मरते जो
तीसरी दुनिया के देशों को अपनी चपेट में लिये हुए हैं, बल्कि वे केवल
उन्हीं बीमारियों के कारण मरते हैं जो विकसित देशों में प्रचलित हैं, जिनमें
हृदय रोग, कैन्सर और आकस्मिक दुर्घटनाएँ प्रमुख हैं। लेकिन क्यूबा जैसा गरीब
देश धरती के दूर दराज के कोनों में अपने हजारों डॉक्टरों को वहाँ के लोगों की जान बचाने
के लिए क्यों भेजता है, जबकि बदले में वह कुछ लेता भी नहीं ? हाँ
फिदेल को जोस मार्ती की बातें दुहराने का शौक है। क्यूबाई राष्ट्रवाद और
साम्राज्यवाद विरोध के संस्थापक पुरखे जोस मार्ती के 28 खण्ड तो जैसे फिदेल को
कण्ठस्थ ही हैं-‘‘मानवता ही स्वदेश है।’’ एक ऐसा
राष्ट्रवाद जिसके केन्द्र में हमेशा सम्पूर्ण मानवता के प्रति कर्त्तव्य की गहरी
भावना है, अपने सर्वोत्तम भावों के साथ ‘सर्वहारा
अन्तरराष्ट्रीयतावाद।’’
नौजवान फिदेल |
1950
के दशक में एक नौजवान के रूप में अपने शुरुआती राजनीतिक विकास के दौरान फिदेल एक
राष्ट्रवादी थे (अपने द्वीप–देश के अमरीकी शोषण के विरूद्ध) तथा एक
पूँजीवादी जनवादी (एक धनी भूस्वामी के पुत्र, वकालत की पढ़ाई
किये हुए, बातिस्ता की तानाशाही के खिलाफ, लेकिन साम्यवाद
विरोधी भी)। फिदेल जब अपनी जवानी में एक पूर्णत% पूँजीवादी राजनीतिक पार्टी के
वामपक्ष के सदस्य थे, तब उनके छोटे भाई राउल (जो उनके बाद अब क्यूबा
के राष्ट्रपति बने हैं) अपने छात्र जीवन में साम्यवादी विचारों के प्रति आकर्षित
हुए थे। कहा जाता है कि उन्होंने ही फिदेल और थोड़े दिनों बाद चे ग्वेरा का भी
साम्यवाद से परिचय कराया था। केवल राउल और चे के साहचर्य में ही नहीं, बल्कि
निर्धनतम किसानों के बीच काम करते हुए भी फिदेल वामपंथ की दिशा में क्रमश: आगे
बढ़ते चले गये। यह उस महागाथात्मक क्रान्तिकारी युद्ध के दौर की बात है जिसे वे
1959 के पहले हफ्ते में विद्रोही सेना के प्रमुख के रूप में हवाना में प्रवेश करने
से पहले सियेरा मायेस्त्रा के पहाड़ी इलाकों में संचालित कर रहे थे। उस सेना का नाम
भी सांकेतिक था-वे अमरीका द्वारा प्रायोजित बातिस्ता की
तानाशाही के खिलाफ, ‘‘विद्रोही’’ थे। उस अवस्था
में भी उनकी पहचान एक वामपंथी लोकप्रियतावादी के रूप में ही थी।
वैचारिक रूपान्तरण
साम्राज्यवाद
विरोधी राष्ट्रवाद के प्रति अमरीका की चरम शत्रुता से ही फिदेल को यह सीख मिली कि
राष्ट्रवाद को अपनी वर्ग अन्तर्वस्तु तय करनी ही होगी। पूँजीवाद का ज्यों का त्यों
अनुसरण करते हुए साम्राज्यवादी वर्चस्व का विरोध नहीं किया जा सकता। साम्राज्यवाद
विरोधी होने के लिए समाजवादी भी होना जरूरी होगा।
सत्ता
में आने के लगभग 18 महीने बाद, अक्टूबर 1960 में ही उन्होंने समाजवाद
के बारे में बोलना शुरू किया। हालाँकि खुला और निर्णायक मोड़ बे ऑफ पिग्स पर अचानक
अमरीकी हमले से एक दिन पहले, 16 अप्रैल 1961 के उनके मशहूर भाषण में
ही आया। गुंजायमान आरोह–अवरोह के साथ उन्होंने कहा था कि, ‘‘साम्राज्यवादी,
हमारे
अस्तित्वमान रहने तक हमें बख्शेंगे नहीं–––मजदूर और किसान साथियों, यह
क्रान्ति जनसाधारण, जनसाधारण के सहारे और जनसाधरण के लिए समाजवादी
और जनवादी क्रान्ति है–––हमारे स्वदेश के शहीद जिन्दाबाद! हमारे
राष्ट्रनायक जिन्दाबाद! समाजवादी क्रान्ति जिन्दाबाद! आजाद क्यूबा जिन्दाबाद!
स्वदेश या मौत! स्वदेश या मौत!
फिदेल अपने मित्र चे ग्युवेरा के साथ |
(पैत्रिया
ओ मुएर्ते)-आने–वाले कई वर्षों तक भूमण्डल के एक छोर
से दूसरे छोर तक इस हुन्कार की अनुगूंज सुनाई देती रही। सबसे आकर्षक और सर्वाधिक
ऐतिहासिक महत्त्व की बात यह है कि समाजवाद के साथ प्रतिबद्धता का उद्भव भी
साम्राज्यवाद विरोधी राष्ट्रवाद के एकमात्र सम्भव तार्किक क्रियान्वयन के रूप में
हुआ। राष्ट्रवाद की आन्तरिक जरूरतों से ही एक नैतिक अनिवार्यता के रूप में समाजवाद
का उदय हुआ। यह प्रसंग क्यूबा की क्रान्ति के ऐतिहासिक दस्तावेज में बड़े ही साफ–साफ
शब्दों में आया है-फिदेल के 2 दिसम्बर 1961 के भाषण में जिसे आम
तौर पर, ‘‘मार्ती से मार्क्स तक’’ के नाम से जाना जाता है-एक
शानदार भाषण जिसमें अन्य बातों के अलावा कहा गया है कि ‘पूँजीवाद और
समाजवाद के बीच कोई बीच का रास्ता नहीं है। जो लोग तीसरे रास्ते की खोज करने का
दुराग्रह करते हैं, वे लुढ़कते हुए एक निहायत ही झूठी और काल्पनिक अवस्थिति
तक पहुँच जाते हैं। यह अपने आपको धोखा देने के समान है। इसका अर्थ साम्राज्यवाद का
सहअपराधी होना है। इस राजनीतिक और वैचारिक संक्रमण के बाद 1965 में जाकर ही,
आज
हम जिसे क्यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी के रूप में जानते हैं, उसके गठन की
तैयारी शुरू हुई।
फिदेल
क्यूबा की क्रान्ति के अपने नेतृत्व के दौरान कभी भी इस अवस्थिति से विचलित नहीं
हुए। लेकिन फिर भी समाजवाद और साम्राज्यवाद विरोधी राष्ट्रवाद दोनों को ही बराबर
महत्त्व देने के चलते क्यूबा की विदेश नीति दुनिया भर की जनता का एक विश्वव्यापी
क्रान्तिकारी मोर्चा बनाने के लिए ही नहीं, बल्कि सरकारों
को साथ लेकर जितने भी मंचों और जितने ही तरह के मुद्दों पर सम्भव हो, साम्राज्यवाद
विरोधी संयुक्त मोर्चा बनाने के लिए भी समर्पित थी। इस तरह, बावजूद इसके कि
पूँजीवाद और समाजवाद के बीच किसी ‘तीसरे रास्ते’ के बारे में किसी
भी बकवास को ‘झूठा और काल्पनिक’ तथा ‘साम्राज्यवाद
का सहअपराधी’ बताया गया, गुट निरपेक्ष
आन्दोलन के वास्तविक भौतिक रूप को अमरीकी साम्राज्यवाद के अत्यन्त आक्रामक तौर
तरीकों के खिलाफ सरकारों के एक व्यापक संयुक्त मोर्चे का एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण
उपाय माना गया और अंगोला से लेकर हैती, पाकिस्तान और वेनेजुएला तक विभिन्न
प्रकार के देशों में चाहे वहाँ जैसी भी व्यवस्था क्यों न हो, आपातकालीन
स्थितियों से निपटने के लिए क्यूबाई डॉक्टरों को रवाना किया गया। इन सभी बातों में
हमेशा यह विचार अन्तर्गुन्थित रहा कि दुनिया की जनता को और दुनिया की सरकारों को
भी अपने ठोस उदाहरण और इस विचार से प्रेरित करना क्यूबा के लिए जरूरी है जो इसके
राष्ट्रीय नायक ने निरुपित किया था कि ‘मानवता ही स्वदेश है।’
ऐतिहासिक रूपान्तरण
खुद
अपनी जनता की सेवा करने और दुनिया को प्रभुत्व के जरिये नहीं बल्कि सीधे सरल
उदाहरण के जरिये शिक्षित करने में ही यह तथ्य शामिल है कि क्यूबा एक मात्र लातिन
अमरीकी देश है, जहाँ कुपोषण बिल्कुल नहीं है और लगभग सौ–फीसदी
शिक्षा है, जहाँ प्राथमिक और निम्नमाध्यमिक स्कूलों में हर
20 छात्रों पर एक शिक्षक का मानदण्ड तय है, जो दुनिया के
किसी भी देश की तुलना में प्रति व्यक्ति कहीं ज्यादा डॉक्टर तैयार करता है,
जहाँ
राष्ट्र के तकनीकी और वैज्ञानिक कर्मियों में महिलाओं का बहुमत है, जहाँ
प्रति–हेक्टेयर कृषि उपज में इजाफा हुआ है। जबकि रसायनों के प्रयोग में कमी
आयी है और पर्यावरण को टिकाऊ बनाये रखने वाली प्राकृतिक लागतों के प्रयोग में
वृद्धि हुई है, तथा इसके हजारों चिकित्सा कर्मी दुनिया भर में
लोगों की जान बचा रहे हैं और अमरीका सहित उस पूरे गोलार्द्ध के डॉक्टरों को
प्रशिक्षित कर रहे हैं। यह सारा काम अमरीका के समस्त दबावों और तोड़–फोड़
की कार्रवाइयों के बावजूद हो रहा है। अमरीकियों ने क्यूबा के खिलाफ जो घेरेबन्दी
की है, उसके चलते इस द्वीप–देश को करोड़ों डॉलर का नुकसान उठाना
पड़ा है।
अपने
देश के इन ऐतिहासिक रूपान्तरणों की देखभाल करके फिदेल को भारी सन्तुष्टि हुई है और
खास तौर पर 1990 के दशक के दौरान सोवियत संघ के ध्वंस के बाद अपने समाजवादी राज्य
की हिफाजत करने में, जिसके चलते क्यूबा की अर्थव्यवस्था में ऐसी
अराजकता मची थी कि उसके कुछ क्षेत्र अवनति करके क्रान्ति से पहले के स्तर तक पहुँच
गये थे। इन सब की भारी पैमाने पर दुबारा क्षतिपूर्ति क्यूबा की अर्थव्यवस्था के
लिए एक चमत्कार रहा है। भले ही उसे व्यवस्थागत विकृतियों के रूप में इसकी कीमत
चुकानी पड़ी हो। फिदेल को इस बात का भी सन्तोष है कि उनके कुछ उत्तराधिकारी लातिन
अमरीका के दूसरे देशों में भी सत्तासीन हुए हैं, खास तौर पर
वेनेजुएला और बोलिविया में। ह्यूगो शावेज एक राष्ट्रवादी, लोकप्रियतावादी
और अर्धवामपन्थी सैनिक अधिकारी थे, जैसा कि फिदेल खुद अपनी युवावस्था में
थे, लेकिन फिदेल की देख–रेख में विकसित होकर, वे
निर्भीक क्रान्तिकारी बने। फिदेल का हाल ही में बीमारी का शिकार होना एक बड़ी उदासी
का सबब है जिससे शावेज को जल्दी ही लातिन अमरीकी क्रान्ति के इस महान बुजुर्ग के
मशवरे के बिना ही काम करना होगा। इवो मोरालेस भी बोलीविया के राष्ट्रपति चुने जाने
के बाद तुरन्त ऐसे मशवरे के लिए फिदेल के पास गये। मोरालेस के लिए अपने देश के
भीतर की कार्यनीति तय करने में ही नहीं, बल्कि एक तरफ बोलीविया और वेनेजुएला के
बीच तथा दूसरी तरफ बोलीविया और ब्राजील के बीच आपसी सम्बन्धों को तय करने में भी
फिदेल की केन्द्रीय भूमिका रही है। और यह देखकर हमेशा खुशी होती है कि लातिन
अमरीका की दो विराट अर्थव्यवस्थाओं अर्जेण्टीना और ब्राजील के राष्ट्रपति हाल के
वर्षों में बार–बार फिदेल का सम्मान करते हैं, जबकि
उनके साथ क्षणिक मेल मिलाप भी वाशिंगटन में बैठे बाहुबली का कोपभाजन बनने के लिए
काफी है।
फिदेल
लातिन अमरीका में अपने नैतिक प्राधिकार की पराकाष्ठा पर पहुँचकर अब अपनी कुछ
जिम्मेदारियों से खुद को अलग कर रहे हैं, लातिन अमरीका जो आज अपने महानतम नायक
के रूप में उनका आदर करता है। वहाँ सीमोन बोलिवार और जोस मार्ती जैसे नायक हुए।
फिदेल के एतिहासिक कद की तुलना इनमें से किससे की जाये?
फिदेल का इस्तीफा
अधिकांश
मानवता के लिए महान क्रान्तिकारी और अमरीकी साम्राज्यवाद के कट्टर विरोधी फिदेल
कास्त्रो के बारे में वैश्विक मीडिया अफवाह फैलाता है कि उन्होंने अपने पद से
इस्तीफा दे दिया। इस तरह के विचारों का सबसे जोरदार खण्डन किसी और ने नहीं,
बल्कि
ह्यूगो शावेज ने किया जो लातिन अमरीका के स्तर पर फिदेल के सच्चे उत्तराधिकारी हैं।
फिदेल जैसा प्रभावशाली व्यक्ति, ‘‘कभी अवकाश ग्रहण नहीं करता,’’ उन्होंने
कहा कि ‘‘फिदेल हमेशा नेतृत्वकारी भूमिका में रहेंगे।’’ सच्चाई इन दावों
के बीच कहीं न कहीं है जिसका समाहार न्यूज एजेन्सी प्रेन्सर लातिना के वाक्यांश
में अच्छी तरह किया गया है-‘‘फिदेल कास्त्रो के इस्तीफा न देने के
निर्णय को सरकार चलाने वाले नेताओं की उम्मीदवारी तक सीमित करना ठीक नहीं। यह एक
ऐसी राह खोलता है जिसे एक सुनार की सावधानी और सूक्ष्मता के साथ गढ़ा गया है।’’
यह
बात तकरीबन सही है। इसमें कोई शक नहीं कि फिदेल हमारे दौर के सबसे अधिक
स्वप्नदर्शी और निर्भीक क्रान्तिकारी हैं, लेकिन साथ ही वे पक्के यथार्थवादी भी
हैं। विस्तृत और यथातथ्य ब्यौरों के प्रति उनका अनुराग काफी हद तक उस ‘सुनार’
के
समान है जो अनमोल और बेहद कठोर धातु पर काम करता है। निश्चय ही इन कठोर धातुओं में
से कुछ तो खुद व्यक्ति विशेष का अपना ‘स्व’ ही होता है।
2007 के अन्त में राष्ट्रीय संसद में दिये गये अपने ताजा भाषण में उन्होंने
रेखांकित किया-‘‘अतल गहराई में, हर नागरिक अन्दर
ही अन्दर खुद को जिन्दा रखने के सहज–बोध से चिपके रहने की सहजात मानवीय
प्रवृत्ति के खिलाफ एक व्यक्तिगत लड़ाई लड़ता रहता है–––हम सभी लोगों पर
इस सहज–बोध की पैदाइशी छाप है–––इस मनोवृत्ति से सीधे टकराना फायेदमन्द
है क्योंकि यह हमें एक द्वन्द्वात्मक प्रक्रिया की ओर, एक अटल और
नि%स्वार्थ संघर्ष की दिशा में आगे बढ़ाता है, हमें मार्ती के करीब
लाता है और हमें सच्चा साम्यवादी बनाता है।’’ भाषण के इस अंश
पर थोड़ा ठहरकर चिन्तन–मनन करना चाहिए क्योंकि इन पंक्तियों में वे
मार्क्सवाद की अपनी दार्शनिक समझ के बारे में हमें कुछ बताते हैं कि अपनी खुद की
नैतिकता का वे किस तरीके से सामना करते हैं और अपनी खुद की नैतिकता के बरअक्स
उन्होंने क्यूबा के राजनीतिक संक्रमण की क्या रूपरेखा तैयार की है।
दार्शनिक
रूप से इन पंक्तियों में मानवीय अस्तित्व को जिन्दा बचे रहने की नितान्त
व्यक्तिवादी मनोवृत्ति के रूप में समझा गया है जिसकी जड़े पशुवत जैविक जरूरतों में
निहित हैं, जिसके खिलाफ फिदेल ‘अटल और
नि%स्वार्थ संघर्ष’ की बात करते हैं। दूसरी जड़ें नैतिकता और
राजनीति में हैं जो हमें साम्राज्यवाद विरोधी (मार्ती) और साम्यवाद (मार्क्स) के
करीब ला खड़ा करता है। इसका मतलब है बहुजन हिताय के लिए निजी हितों से उ़पर उठना।
लेकिन जो जैविकता हमें जिन्दा रहने की सहजात मनोवृत्ति प्रदान करती है वही हमारी
अपनी नैतिकता की सच्चाई में भी विश्वास जगाती है, कोई महानतम नेता
भी आखिर कब तक अपने पद पर जमा रहे और अपनी ही मृत्यु के लिए वह खुद को कैसे तैयार
करे ? इस संक्रमण की तैयारी आज से नहीं, बल्कि 10 साल
पहले 1997 की पार्टी काँग्रेस से ही शुरू हो गयी थी जब राउल कास्त्रो जो उनके छोटे
भाई हैं और 1953 में मोनकाडा बैरेक पर किये गये मशहूर हमले के संचालन में उनके
सहयोगी थे और तभी से जब उन दोनों की चे ग्वेरा से मुलाकात भी नहीं हुई थी उनके
सबसे करीबी कामरेड हैं, उनका जिक्र करते हुए फिदेल ने कहा था-‘‘राउल
मुझसे कम उम्र के हैं, मुझसे ज्यादा उ़र्जावान हैं। वे मेरी तुलना में
अधिक समय तक जीवित रहेंगे।’’ कम उम्र के नेताओं की पूरी जमात का
आमतौर पर जिक्र करते हुए फिदेल ने 1997 के उसी भाषण में कहा था कि ‘‘मेरे
पीछे दूसरे लोग हैं जो मुझसे कहीं ज्यादा रेडिकल हैं।’’
जिस
दस्तावेज को आज उनके ‘इस्तीफे’ के रूप में
व्याख्यायित किया जा रहा है उसी में उन्होंने अपने ‘31 जुलाई 2006
के अन्तरिम इस्तीफे’ का हवाला दिया है। वे एक लगभग जानलेवा शल्य
चिकित्सा के लिए जाने वाले थे और इसलिए उन्होंने शीर्षस्थ पद की व्यवहारिक जरूरतों
से खुद को अलग कर लिया था और अपना प्राधिकार राउल कास्त्रो की अगुआई में सात करीबी
कामरेडों के सामूहिक नेतृत्व को सौंप दिया था। राउल कास्त्रो 1959 में क्रान्ति
सम्पन्न होने के बाद से ही सशस्त्र बलों के प्रमुख हैं और न केवल पहले उप
राष्ट्रपति के रूप में, बल्कि क्यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित
ब्यूरों और केन्द्रीय कमेटी के उप–सचिव के रूप में भी काम कर रहे हैं।
जिस सामूहिक नेतृत्व को देश की जिम्मेदारी सौंपी गयी है उसमें पुराने कामरेड,
रैमीशे
वाल्देस जो 75 वर्ष के हैं और जिन्होंने फिदेल और राउल के साथ मोनकाडा बैरेक पर
हमले में हिस्सा लिया था। साथ ही इसमें कारलोस लेगे जैसे कम उम्र के लोग भी हैं।
56 वर्षीय लेगे ने 1990 के दशक में सोवियत संघ के पतन के बाद उत्पन्न संकट से
निपटने के लिए नयी आर्थिक नीति तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी।
इस
तरह पिछले डेढ़ वर्षों से ही क्यूबा एक सावधानी पूर्वक तैयार किये गये संक्रमण का
चश्मदीद गवाह रहा है जिसके बारे में फिदेल ने अपने इस दस्तावेज में कहा है कि ‘मेरा
पहला कर्त्तव्य यह था कि हम अपने लोगों को राजनीति और मनोवैज्ञानिक तौर पर इस बात
के लिए तैयार करें कि इतने सालों के संघर्ष के बाद अब वे हमारी अनुपस्थिति में भी
काम कर सकें।’
यह
दस्तावेज आज ही क्यों ? इसका सीधा तर्क है कि क्यूबाई समाज सितम्बर
2007 से संसदीय चुनाव की एक तीव्र प्रक्रिया से गुजर रहा है जिसके तहत 16 वर्ष से
अधिक उम्र के 96 फीसदी वैध मतदाताओं ने गुप्त मतदान किया और 92 फीसदी लोगों ने
महिलाओं, नौजवानों, छोटे किसानों और दूसरे अन्य लोगों की यूनियनों
और अन्य लोकप्रिय संगठनों द्वारा मिलजुल कर खड़े किये गये संयुक्त उम्मीदवारों को
चुना। 24 फरवरी 2008 को क्यूबा की राष्ट्रीय संसद, राज्य परिषद के
लिए 31 सदस्यों को गुप्त मतदान से चुनने वाली थी जिन्हें राष्ट्रपति का चुनाव करना
था। फिदेल का दस्तावेज राष्ट्रीय संसद की इसी महत्त्वपूर्ण बैठक को सीधे सम्बोधित
था जो इस तरह शुरू होता है-‘राज्य परिषद्, इसके राष्ट्रपति,
उप–राष्ट्रपति
और सचिव को मनोनीत करने और चुनने का क्षण आ गया है।’ इसके बाद
उन्होंने क्यूबा की वर्तमान परिस्थिति के कई पहलुओं का संक्षिप्त अवलोकन किया और
सन्तोष व्यक्त किया कि पार्टी के नेतृत्वकारी कार्यकर्ता आज लगातार तीन पीढ़ियों से
लिये गये हैं-60 साल पहले क्रान्ति की शुरुआत करने वालों से
लेकर क्रान्ति के बाद पैदा होने वालों तक। इस प्रक्रिया में फिदेल नें चार
महत्त्वपूर्ण, गोपनीय वक्तव्य दिये-(1) ‘राज्य
परिषद् के राष्ट्रपति या कमाण्डर इन चीफ के पद की न तो मुझे आकांक्षा है और न ही
मैं स्वीकार करूँगा।’ (2) ‘हमारा कर्त्तव्य पद से चिपके रहने या
नयी पीढ़ी के राह में रुकावट बनना नहीं है।’ (3) ‘यह
मेरी अन्तस्चेतना के साथ दगाबाजी होगी कि जिस काम के लिए इतना अधिक भाग दौड़ और
समर्पण जरूरी है जितना मेरा शरीर इजाजत नहीं देता, उस काम को मैं
स्वीकार करूँ।’ (4) ‘यह आपसे मेरी विदाई नहीं है। मेरी एक
मात्र इच्छा है कि विचारों की लड़ाई में एक सिपाही की तरह मैं लड़ता रहूँ।’ महत्त्वपूर्ण
यह है कि फिदेल ने यहाँ पार्टी मेंं अपनी स्थिति के बारे में कुछ नहीं कहा है।
अब, विचारों की लड़ाई
विचारों
की लड़ाई में एक योद्धा की उनकी भूमिका अब राष्ट्रीय समाचार पत्रों में खुलकर सामने
आ रही है जिनमें वे अपने जीवन के बारे में, क्यूबा की
क्रान्तिकारी प्रक्रिया के बारे में, साम्राज्यवादी रणनीति के बारे में,
लातिन
अमरीका के देशों की समस्याओं के बारे में और सारी मानवता के सामने मौजूद आम
समस्याओं के बारे में अपने विचार प्रकट करते हैं। उदाहरण के लिए फिदेल निस्सन्देह
दुनिया के पहले राष्ट्राध्यक्ष हैं जिन्होंने 1992 में ही कहा था कि मानव जाति का
भविष्य आज इन पारिस्थितिकीय आपदाओं के चलते दाँव पर लगा हुआ है जिसके लिए मुनाफे
पर आधारित औद्योगिक उत्पादन तथा इस उत्पादन और पूँजी संचय की जरूरत के रूप में
फैलायी गयी उपभोक्तावादी संस्कृति जिम्मेदार है। जीवन की गोधूलि बेला में उनकी
महत्त्वपूर्ण व्यस्तता यही है। समस्याएँ एक न एक रूप में सतह पर आती रहती हैं और
उनके लेखन में झलकती रहती हैं। इनमें से सबसे ताजा दस्तावेज क्यूबा की अपनी ही
राष्ट्रीय संसद को सम्बोधित है।
हालाँकि
‘विचारों की लड़ाई में एक योद्धा’ के रूप में उनकी
भूमिका केवल इतनी ही नहीं है। पिछले 18 महीनों से जो संयुक्त नेतृत्व वहाँ काम कर
रहा है। उसने कई बार बताया है कि फिदेल हर नीतिगत फैसले के बारे में उन्हें
आलोचनात्मक सुझाव और राय देते हैं, दूसरी ओर लातिन अमरीका के अन्य नेताओं
जैसे, वेनेजुएला के शावेज, बोलीविया के इवो मोरालेस, ब्राजील
के लुइस इनासियो द सिल्वा लूला और अन्य लोगों के साथ व्यावहारिक मसलों पर विचार–विमर्श
करते हैं। इसलिए शावेज का यह दावा तथ्यत% सही है कि फिदेल सेवानिवृत नहीं हुए हैं
और अभी भी ‘नेतृत्व दे रहे हैं, हालाँकि आगे ले
जाने के लिए मशाल, अब एक हाथ से दूसरे हाथ में थमायी जा रही है
तथा राष्ट्रीय और महाद्वीपीय स्तर पर नेतृत्व के इस अबाध संक्रमण की वे खुद
निगरानी कर रहे हैं। अगर क्यूबा में अगले राष्ट्रपति के रूप में राउल का मनोनयन
होने वाला है तो पूरे लातिन अमरीका में शावेज को पहले ही उस गोलार्द्ध में फिदेल
का उत्तराधिकारी और उत्तरवर्ती माना जा रहा है। हालाँकि राष्ट्र के भीतर संक्रमण
की यह प्रक्रिया कुछ वर्ष और चलेगी, जब तक 1959 के पुराने अनुभवी लोग नई
पीढ़ी के नेताओं को अन्तिम रूप सेे मशाल न थमा दें, जो मूल क्रान्ति
को सम्पन्न करने वाले नहीं है बल्कि उसकी पैदाइश हैं।
हर
एक क्रान्ति निश्चय ही अपनी मौलिकता का आविष्कार करती है। चीनी क्रान्ति बोल्शेविक
क्रान्ति की अनुकृति नहीं थी और न ही वियतनामी क्रान्ति चीनी क्रान्ति की अनुकृति
थी। फिदेल ने जिस क्रान्ति का सूत्रपात किया था, वह बोल्शेविक
क्रान्ति को छोड़कर अन्य क्रान्तियों से कहीं अधिक मौलिक थी। जिन लोगों ने सियेरा
मायेस्त्रा के दूर दराज के पहाड़ी दुर्गों में गुरिल्ला आधार क्षेत्र तैयार किये थे,
वे
आपस में क्रान्तिकारी भाईचारे से बँधे थे लेकिन किसी पाटी संगठन से नहीं जुड़े थे,
हालाँकि
फिदेल को शुरू से ही बराबर के लोगों में प्रथम माना जाता था। दूर दराज के छुटपुट
और घटिया खेती के इलाकों में बातिस्ता के सशस्त्र सैनिकों से लड़ते हुए, अपना
आधार फैलाते हुए, वे बचे रहे तो इसका श्रेय निर्धनतम किसानों में
उन्होंने जो विश्वास पैदा किया था, उसे ही है, जबकि उनमें से
अधिकांश लोग खुद शहरी मध्यम वर्ग के थे। वे अपने आप ही सीखे हुए विद्रोही सेना के
सिपाही थे। फिदेल के बाद इस सेना में दूसरे नम्बर पर सर्वाधिक प्रतिष्ठित और
प्रभावी व्यक्तित्व अर्जेण्टीना में जन्मे चे ग्वेरा थे। विद्रोही सेना के अधिकांश
सिपाही, काडर थे, चीन और वियतनाम की तरह किसान जन–समुदाय
नहीं।
फिदेल
1953 में अदालत में दिये गये अपने महत्त्वपूर्ण विद्रोही भाषण के बाद ही महानायक
बन गये थे। वह भाषण ‘इतिहास मुझे सही साबित करेगा’ के
नाम से छपा और उसकी हजारों प्रतियाँ बँटी। यह महागाथा तब विराट से विराट होती गयी,
जब
पहाड़ों में चलने वाला गुरिल्ला युद्ध शहरों तक पहुँचा, जहाँ गुप्त
स्रोतों से उन्हें भरपूर सहायता प्राप्त हुई और जब 8 जनवरी को विद्रोही सेना ने
हवाना मार्च किया तो वहाँ एक बड़े पैमाने की हड़ताल शुरू हो गयी तब तक तानाशाह
बातिस्ता देश छोड़कर भाग गया था और हवाना के रास्ते भर लड़ते आ रहे गुरिल्लाओं ने
बिना एक भी गोली दागे सत्ता पर कब्जा कर लिया। इतना सब होने तक वे किसी भी चरण में
शहर की किसी राजनीतिक पार्टी से नहीं जुड़े थे और खुद पर भरोसा करते हुए ही,
सादी–स्लेट
से उन्होंने अपना खुद का राज्य और अपनी राजनीति को संगठित करना शुरू किया।
क्यूबा
की क्रान्ति कम्युनिस्ट क्रान्तियों में शायद सबसे कट्टर कम्युनिस्ट क्रान्ति रही
है, लेकिन जिन नेताओं ने उसे समाजवाद की ओर आगे बढ़ाया, वे
क्रान्ति करते समय खुद ही कम्युनिस्ट या सैद्धान्तिक मार्क्सवादी भी नहीं थे। उनकी
कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना क्रान्ति से पहले नहीं, बल्कि सत्ता पर
कब्जा करने के छ: साल बाद हुई। उन्होंने उद्योगों का और साथ ही कृषि का भी तत्काल
और व्यापक पैमाने पर राष्ट्रीयकरण किया। लेकिन उनके दो प्रमुख नेताओं, फिदेल
और चे की राय में साम्यवाद के लिए ‘उत्पादक शक्तियों’ के
विकास से कहीं ज्यादा जरूरी था, उत्पादन के सामाजिक सम्बन्धों का
रूपान्तरण और एक नये प्रकार की अन्तस्चेतना का निर्माण। इसे ही चे ग्वेरा ‘नये
समाजवादी मनुष्य’ का निर्माण कहा करते थे।
फिदेल
अपनी नौजवानी के शुरुआती वर्षों से ही एक रैडिकल विद्रोही, विद्रोही
राष्ट्रवादी थे, लेकिन बोलीवार और मार्ती की महान परम्परा में
इस राष्ट्रवाद का उनके युवावस्था के पूरे दौर में देशों की सीमाओं से परे, सम्पूर्ण
लातिन अमरीका के प्रति सामूहिक देश भक्ति के साथ बेजोड़ संयोजन हुआ था। 1947 में,
जब
फिदेल बामुश्किल 18 साल के थे और अभी पढ़ ही रहे थे, तभी वे डोमिनिकल
रिपब्लिक में ट्रजिलो की तानाशाही के खिलाफ एक सशस्त्र बगावत के वालंटियर बने थे
हालाँकि वह बगावत हो नहीं पायी थी। उनकी अगली राजनीतिक कार्रवाई बोलीविया, पनामा
और वेनेजुएला का उनका दौरा था जिसका मकसद अमरीका द्वारा प्रायोजित अमरीकी सरकारों
के संगठन (ओ– ए– एस–) के पहले सम्मेलन
के जवाब में साम्राज्यवाद–विरोधी लातिन अमरीकी छात्र सम्मेलन के
आयोजन की मदद करना था। जब वे कोलम्बिया में थे, तभी उन्होंने
राजधानी बगोटा में अप्रैल 1948 में हुए विद्रोह में हिस्सेदारी की थी। बाद के कुछ
वर्ष उन्होंने क्यूबा में बातिस्ता की तानाशही के खिलाफ विभिन्न प्रकार के विरोधों
का संगठन करने में बिताये, जो 1953 में उठ खड़ा हुआ था।
महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जब उन्होंने विद्रोही सेना के संगठन का प्रयास शुरू
किया तो तैयारी की अवधि के दौरान पीछे हटकर, वे क्यूबा के
दूर देहात के इलाके में जाने के बजाय मैक्सिको गये थे।
जहाँ
तक चे की बात है, वे अर्जेण्टीना के उच्च वर्ग में पैदा हुए थे
और कास्त्रो बन्धुओं से मुलाकात से पहले उन्होंने लातिन अमरीका के एक छोेर से
दूसरे छोर तक खुद यात्रा की थी। क्यूबाई क्रान्ति में वे पूरे मनोयोग से कूद पड़े,
अफ्रीका
में क्रान्ति के लिए लड़े और बहुत कम उम्र में ही बोलीविया मे क्रान्ति संगठित करने
की कोशिश के दौरान उनकी मृत्यु हुई। जब हाल ही में इवो मोरालेस ने राष्ट्रपति का
चुनाव जीता और कार्यभार ग्रहण करने से पहले ही, फिदेल के पास
उनके प्रति सम्मान प्रकट करने गये तो उन्होंने कहा कि चे ग्वेरा ने जिस काम की
शुरुआत की थी, उसे ही पूरा करने की जिम्मेदारी वे और उनके
साथी आज निभा रहे हैं। फिदेल और चे हमेशा ही कयूबा की क्रान्ति को समग्र लातिन
अमरीकी क्रान्ति की दिशा में बढ़ाया गया पहला कदम मानते थे। लेकिन महज लातिन अमरीका
ही नहीं।
सत्ता
में आने के तत्काल बाद, फिदेल ने इस बात पर जोर देना शुरू किया था कि
क्यूबा केवल एक कैरीबियाई या लातिन अमरीकी देश नहीं, बल्कि अफ्रीका
के साथ भी यह खून के रिश्ते और जिम्मेदारी से बँधा है क्योंकि गुलामों का व्यापार
करने वाले उपनिवेशवादी असंख्य अफ्रीकी लोगों को जन्जीरों में बाँधकर गोरे लोगों के
प्लाण्टेशन में काम करने के लिए वहाँ ले आये थे। जब अंगोला, इथोपिया और
कांगो के मुक्ति युद्ध में लड़ने के लिए क्यूबा ने अपने सैनिक भेजे तो फिदेल का
कहना था कि अफ्रीका की मुक्ति के लिए क्यूबा के लोेगों द्वारा अपना खून बहाना तो
हमारे उ़पर अफ्रीकी महाद्वीप की जो देनदारी है, उसका एक तुच्छ
भाग है, क्योंकि एक जमाने में हमारे देश में अफ्रीकी गुलाम मजदूरों का शोषण
होता रहा है।
लातिन
अमरीका और अफ्रीका से भी आगे, मार्ती ने एक व्यापक विचार व्यक्त किया
था और फिदेल ने उसे अपनाया-‘‘मानवता ही स्वदेश है।’’ फ्रांस
की नाराजगी मोल लेकर भी अल्जीरिया में लड़ने के लिए और फिर मोरक्कों के अतिक्रमण से
अल्जीरियाई भूभाग की हिफाजत के लिए वहाँ सैनिक भेजना पुराने उपनिवेशों के साथ
भाईचारे की एक शुरुआती कार्रवाई थी और बहुत कम ही लोग जानते हैं कि 1973 में
इजराइल के साथ युद्ध के दौरान क्यूबा के सैनिक गोलान पहाड़ियों के पार, सीरिया
के पक्ष में तैनात थे। चे ने जिस नारे का उद्घघोष किया था-‘‘दो, तीन,
कई–कई
वियतनाम,’’ वह कोई खोखला शब्दजाल नहीं था। वे गम्भीरता से
यह सोचते थे कि अमरीकी आक्रमण के खिलाफ हिन्द चीन की जनता के साथ भाईचारा निभाने
का सबसे बढ़िया तरीका यह है कि दुनिया के अन्य भागों में इसके खिलाफ सैनिक मोर्चा
खोल दिया जाये और इसी दृढ़ आस्था को कायम रखने के लिए वे बोलीविया में ऐसा ही
मोर्चा खोलने गये थे।
दुनिया
के किसी भी देश ने वैसा नहीं किया जैसा चारों ओर से घिरे और प्रतिबन्धित, एक
छोटा सा टापू, अमरीकी घेरेबन्दी और अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय
संस्थाओं की उपेक्षा के बावजूद अपने विकास के लिए संघर्षरत फिदेल के क्यूबा ने कर
दिखाया। किसी भी सच्चे साम्राज्यवाद–विरोधी राष्ट्रवाद के लिए यह अनिवार्य
है कि वह एक दृढ़ अन्तरराष्ट्रीयतावादी हो। क्यूबा ने जिस अन्तरराष्ट्रीयतावाद को
व्यवहार में लागू किया, वह निश्चय ही समाजवादी सिद्धान्तों पर आधारित
था। हालाँकि यह समाजवादी अन्तरराष्ट्रीयतावाद भी क्यूबाई छाप लिये हुए, दूसरे,
तीसरे
और चोथे इण्टरनेशनल से काफी अलग रहा है।
अन्तरराष्ट्रीयतावाद और ‘‘मानवीय
हस्तक्षेप’’
‘‘मानवीय
हस्तक्षेप,’’ के नाम पर साम्राज्यवादियों द्वारा किये गये
कुकृत्यों ने इसे गाली का रूप दे दिया है। लेकिन अगर इसे देशों की सरहद से परे
मानवीय जिम्मेदारियों के समाजवादी संस्करण में ढाला जाये तो इसका क्या अर्थ हो
सकता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण है, 18 देशों में हजारों क्यूबाई डॉक्टरों
का अन्तरराष्ट्रीय भाईचारे की भावना से नि%स्वार्थ सेवा करना हालाँकि फिदेल के
स्वप्नदर्शी मार्गदर्शन में आज जो काम हो रहे हैं उनकी तुलना में यह काम भी फीका
है। 2005 में मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने वालों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने जो
भाषण दिया था, उसके कुछ अंशों में इन बातों की झलक मिलती है।
वे कहते हैं-
‘‘लातिन
अमरीकी स्कूल और मेडिसिन से अपनी पढ़ाई पूरी करने वाले दक्षिण, मध्य
और उत्तरी अमरीका के देशों से आने वाले लातिन अमरीकी और कैरीबियाई छात्रों की कुल
संख्या में, यदि आज अपनी पढ़ाई पूरी करके निकल रहे क्यूबाई
नौजवानों की संख्या को भी जोड़ दे, तो कुल मिलाकर 3,515 नये डॉक्टर हो
जायेंगे, जो हमारी जनता और पूरी दुनिया की सेवा करने जायेंगे।
यह
संख्या तब तक बढ़ायी जायेंगी जब तक वह हर साल 10,000 डॉक्टरों तक न पहुँच जाये। 10
वर्षों में क्यूबा से एक लाख लातिन अमरीकी और केरीबियाई डॉक्टरों को प्रशिक्षित
करने की हमारी इस वचनबद्धता के लिए यह जरूरी है और जो क्यूबा और वेनेजुएला के बीच
सम्पन्न एएलबीए (लातिन अमरीका और कैरीबियन के लिए बोलिवेरियाई विकल्प) के
सिद्धान्तों के अनुरूप है। हमारी जनता की एकता के मजबूत प्रयास के लिए यह योगदान
जरूरी है।’’
इसके
बाद उन्होंने क्रान्ति के बाद अब तक क्यूबा द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र
में किये गये अद्भुत कारनामों का तथ्यत% समाहार किया जो विश्व स्वास्थ्य संगठन ने
सत्यापित किया है और फिर उन्होंनें क्यूबा–वेनेजुएला सहकार के बारे में शावेज के
साथ चल रही अपनी बातचीत का हवाला देते हुए कहा-
‘‘हम
दोनों, वेनेजुएला और क्यूबा की जनता के नाम पर, अपने क्षेत्र
में मानवीयता और अखण्डता के अवयवों को मजबूत बनाने के लिए स्वास्थ्य सेवा, साक्षरता,
शिक्षा,
मिशन
चमत्कार, पेट्रोकेराइब, इलेक्ट्रोकेराइब, एच
आई वी के खिलाफ संघर्ष तथा अन्य सामाजिक और आर्थिक कार्यक्रमों मे सहयोग देने के
लिए गम्भीरता पूर्वक वचनबद्ध हैं।
मिशन
चमत्कार के तहत 60 लाख लातिन अमरीकी और कैरीबीयाई जनता की आँखों की रोशनी बचाने और
ठीक करने तथा 10 वर्षों में 2 लाख स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षित करने की यह
भारी जिम्मेदारी एकदम अभूतपूर्व है।
फिर
भी मुझे विश्वास है कि ये कार्यक्रम अच्छी तरह पूरे होंगे। 30 जून को यह सुझाव आया
कि मिशन चमत्कार को दूसरे कैरीबाई देशों में भी फैलाया जाये। आज 81 दिन बाद हम कह
सकते हैं कि 4,212 कैरीबायाई लोगों की आँखों का ऑप्रेशन हुआ है और वेनेजुएला के
हमारे 79,450 बहनों और भाइयों की आँखों का ऑप्रेशन हुआ है। इस तरह कुल 83,662
रोगियों की आँखों का इस साल इलाज हुआ है।
हमारे
देश ने इस दिशा में जो प्रगति की है वह हमारे दूसरे देशों में भी उन डॉक्टरों
द्वारा पहुँचायी जाएगी जो आज लातिन अमरीकी स्कूल ऑफ मेडिसिन में पढ़ना शुरू कर रहे
हैं।
इसके
बाद फिदेल ने पहले से गठित आपातकालीन परिस्थितियों और गम्भीर महामारियों के लिए
विशेष रूप से प्रशिक्षित डॉक्टरों के अन्तरराष्ट्रीय दल की चर्चा की जिसमें 1500
स्वास्थ्यकर्मी हैं और जो हैैती और पाकिस्तान जैसे विविधतापूर्ण देशों में क्यूबाई
डॉक्टरों के अनुभवों से सीखते हैं और अब क्यूबा की क्रान्ति में लड़ते हुए मरनेवाले
एक अमरीकी के सम्मान में इसका नाम बदलकर ‘‘हेनरीरीव दल’’ कर दिया गया है।
फिर इसके विस्तार की योजना पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा-
‘‘शुरुआत
में यह ब्रिगेड पहले से मौजूद बल से ही इस नये नाम से काम करेगा। आनेवाले समय में
200 स्वयंसेवक इस साल के नये डॉक्टरों में से आयेंगे, 200 डॉक्टर 2003–04
में पढ़ाई पूरी करनेवालों में से होंगे, 600 डॉक्टर 2005–06 के सत्र में
छठे वर्ष के छात्रों मे से होंगे, और 800 डॉक्टर उसी सत्र के पाँचवें वर्ष
के छात्र होंगे। बाद में दूसरे नये डॉक्टर आयेंगे। कोई भी अपने को वंचित न समझे।
हजारों की संख्या में कम्प्रेहेन्सिव जनरल मेडिसिन (आम चिकित्सा) के विशेषज्ञों के
अलावा कयूबाई नर्सिंग स्नातक और स्वास्थ्यकर्मी जो आज विदेशों में मिशन पर तैनात
हैं या जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा कर लिया है, वे हेनरीरीव दल
के विपुल भण्डार हैं।’’
दुनिया
का कोई भी देश अपनी सरहद के पार मानवता की भलाई के लिए अपने संसाधनों का इतना बड़ा
हिस्सा नहीं लगाता। यह अवधारणा ही ‘मानवीय हस्तक्षेप’ की
उस धारणा को शर्मसार करने के लिए काफी हैय जिसके बारे में पश्चिमी पूँजीवादी
भूराजनीतिक रणनीतिकारों और नैतिकता के दार्शनिकों के बीच बड़ी–बड़ी
बातें होती हैं, लेकिन वे हमेशा अपने सैनिक हस्तक्षेप को जायज
ठहराने के लिए, चाहे वह दूरस्थ बाल्कन क्षेत्र का अतिक्रमण हो
या हॉर्न ऑफ अफ्रीका, इराक और अफगानिस्तान तो कहना ही क्या।
साम्राज्यवाद के क्रोध का सामना
फिदेल
के क्यूबा ने जो असंख्य दूसरी उपलब्धियाँ हासिल की हैं उनकी चर्चा हम यहाँ
स्थानाभाव के कारण नहीं कर पा रहे हैं, जैसे–खाद्य
सम्प्रभुता, लोक शिक्षा, स्त्री–पुरुष
और विभिन्न नस्लों के बीच की समानता, टिकाऊ वैकल्पिक टेक्नोलोजी का विकास
(खास तौर पर खेती के क्षेत्र में) और 1990 की आर्थिक तबाही से क्यूबा को उबारना
इत्यादि।
यही
कहना पर्याप्त है कि इन उपलब्धियों के कीर्तिमान और राष्ट्रों के जीवन को
अनुप्राणित करने में क्यूबा की भूमिका को देखते हुए हम शायद यह भूल जाते हैं और
लगभग सहज भाव से हम उन्हें एक मूर्तिमान विश्व नेता समझने लगते हैं, जिस
मानदण्ड पर भारत, ब्राजील या दक्षिण अफ्रीका के किसी वर्तमान
नेता की कोई उनसे तुलना भी नहीं करना चाहता। कम से कम लातिन अमरीका में उन्हें
प्राय: सार्वभौम सम्मान प्राप्त है और शायद ही कोई लातिन अमरीकी नेता हो जो उनकी
राय–सलाह न लेता हो।
बाएं फिदेल कास्त्रो और दाहिने उनके छोटे भाई राउल कास्त्रो |
फिर
भी इन उपलब्धियों के वास्तविक परिणाम का तब तक अन्दाजा लगाना सम्भव नहीं जब तक हम
यह नहीं देखते कि किस तरह क्यूबात अपने साम्राज्यवादी पड़ोसी के विद्वेष और लगतार
हमलों का सामना कर रहा है। 1960 में अमरीका ने उस पर आंशिक प्रतिबन्ध लगाया और
1962 में पूरी तरह व्यापार प्रतिबन्ध लगा दिया। इसके चलते केवल 2006 में ही उसे
8900 करोड़ डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा। इस नीति के प्रत्यक्ष दुष्परिणाम के चलते
क्यूबा को 400 करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ था। इन नीतियों का जनसंहारक अभिप्राय शुरू
से ही स्पष्ट रहा है। 6 अप्रैल 1960 को ही अमरीका के अन्तर–अमरीकी मामलों
के उप–सहसचिव लेस्टर डी मैलोरी ने अपने उप सचिव को जो ज्ञापन भेजा था उसमें
इसकी पूरी रूपरेखा दी गयी है।
क्यूबा
की अधिकांश जनता कास्त्रो का समर्थन करती है। वहाँ कोई प्रभावी रानजीतिक विरोधी
नहीं है–इस आन्तरिक समर्थन को दूर करने का एक ही सम्भावित साधन है कि असन्तोष
और आर्थिक कठिनाइयों के जरिये मोहभंग और निराशा पैदा की जाय–हमें
जल्दी से जल्दी कोई सम्भव तरीका अपनाना चाहिए–जो भुखमरी हताशा
और सरकार को उलटने का कारण बने।
दूसरे
राष्ट्र में भुखमरी लाना एक जनसंहारक कार्रवाई है और अन्तरराष्ट्रीय कानूनों में
इस पर पूरी तरह रोक है। ‘सत्तापरिवर्तन’ बुश के शासन काल
के दौरान एक फैशनेबल जुमला बन गया है लेकिन यह कई–कई दशकों से
अमरीका की सोची–समझी नीति रही है और क्यूबा के सन्दर्भ में वे
बड़े ही खूँखार तरीके से इस मन्सूबे को आगे बढ़ते रहे हैं। फिदेल को मारने के लिए
सीआईए द्वारा बनाये गये 20 षड्यन्त्रों के दस्तावेजी सबूत मौजूद हैं जिनमें से
सौभाग्यवश एक भी सफल नहीं हुआ। इस प्रक्रिया में मियामी ने दुनिया भर से अनेकानेक
सुप्रशिक्षित, हथियारों से सुसज्जित हत्यारों को जुटाया।
क्यूबा का गला घोंटने के लिए न केवल उस पर हमला किया गया बल्कि जितने तरह के
षड्यन्त्रों की कल्पना की जा सकती है, सबको आजमाया गया।
अमरीकी
विदेश मन्त्रालय में क्यूबा संक्रमण निदेशक के नाम से एक वरिष्ठ अधिकारी का पद है
जिसका एक ही काम है, क्यूबा की सरकार को उखाड़ फेंकने की योजना बनाना।
अमरीकी
संसद ने हाल ही में 890 लाख डॉलर केवल इसी काम के लिए आवण्टित किये हैं। इस कोष का
एक भाग क्यूबा के अन्दर फिदेल विरोधी गुटों को खुलेआम बाँटा गया है।
निश्चय
ही जब शीत युद्ध समाप्त हुआ और सोवियत संघ के पतन के चलते क्यूबा की अर्थव्यवस्था
पूरी तरह संकटग्रस्त हो गयी तो अमरीका ने इसे सुनहरा मौका मानकर अपना प्रतिबन्ध
कठोर कर दिया और आन्तरिक तोड़फोड़ की कार्रवाई भी काफी तेज कर दी।
1996
का हेल्मस–बर्टन बिल जिसके तहत सभी क्रूरतापूर्ण कारनामों को भारी पैमाने पर
फैलाया गया था, उसे बिल क्लिण्टन ने कानूनी रूप दे दिया।
2005
में फिदेल जिस वक्त लातिन अमरीकी जनता के लिए स्वास्थ्य और उनकी आँखों की रोशनी
सुनिश्चित करने मे क्यूबा की भूमिका पर अपना प्रेरणास्पद भाषण दे रहे थे तभी सीआईए
की राष्ट्रीय गुप्तचर परिषद ने क्यूबा को उन देशों की गुप्त सूची में शामिल किया
था, जहाँ अमरीका निकट भविष्य में सैनिक हस्तक्षेप कर सकता है।
यह
सूची अन्तहीन है और इस विषय पर कई खण्ड लिखे जा सकते हैं। इसी साम्राज्यवादी आँधी–तूफान
के आगे फिदेल 50 वर्षों तक सर उठाकर खड़े रहे और उनकी नैतिक कल्पनाशीलता अटल रही।
इस प्रक्रिया में वे 10 अमरीकी राष्ट्रपतियों, 23 अमरीकी
सांसदों और कहने की बात नहीं कि असंख्य सीआईए प्रधानों को झेलकर भी जिन्दा रहे।
लातिन
अमरीका में भी इस बीच असंख्य सरकारें और नेता, अलेन्दे से लेकर
अरिस्टाइड तक, सान्दिनिस्ता से ह्यूगो शावेज तक मोरालेस से
किर्चनर और लूला तक-छोटे बड़े हर देश में-लातिन अमरीकी
क्रान्ति के इस महान बुजुर्ग की ओर अचरज भरी निगाहों से देखते रहे, भले
ही इनमें से कुछ एक लोगों के अन्दर उनके पदचिह्नों पर चलने का दमखम नहीं है।
- एजाज अहमद (फ्रण्ट लाइन, मार्च, 2008 से साभार), हिंदी में देश विदेश-7, मई 2008 में छपा
संगठित लोग, न्यायकारी
विचारों से लैस लोग
यह लातिन अमरीकी देशों का दायित्व है कि वे
बिना एक क्षण गँवाये आपस में संगठित होंय अफ्रीकियों को भी यही करने की कोशिश करनी
चाहिए। दक्षिण पूर्व एशिया में आसियान य।ेमंदद्ध हैं और वे एक नये आर्थिक एकीकरण
की ओर मुखातिब हैं। यूरोप ने इसे द्रुत गति से कर दिखाया है। इस तरह विश्व में
उसके कई हिस्सों में उप–प्रादेशिक गठबन्धन होंगे। (1999)
-फिदेल कास्त्रो
कुछ
विश्लेषणों के अनुसार क्यूबा और वेनेजुएला लातिन अमरीका के संगठित होने की ओर एक
बढ़ा हुआ कदम है, एक ऐसा क्षेत्र जो संयुक्त राज्य से अधिक स्वतन्त्र है। वेनेजुएला मेरकोर यडमतब्वनतद्ध में सम्मिलित हो चुका है। मेरकोर
दक्षिण अमरीकी सीमाकर संगठन है, जिसे अर्जेंटीना के राष्ट्रपति नेस्टर
क्रिचनर ने क्षेत्र के विकास में ‘एक मील का पत्थर’ माना
है। ब्राजीली राष्ट्रपति लूला इनसियों डि सिल्वा ने इसका यह कहकर स्वागत किया कि ‘यह
हमारे एकीकरण की ओर एक नया अ/याय’ है। स्वतन्त्र विश्लेषक कहते हैं कि
वेनेजुएला के इस संघ में शामिल होने से मेरकोर के द्वारा प्रसारित भू–राजनीतिक
दृष्टिकोण इस पूरे क्षेत्र (लातिन अमरीका) में प्रसारित होगा। एक बैठक में
वेनेजुएला के राष्ट्रपति ह्यूगो शावेज ने वेनेजुएला द्वारा मेरकोर में शामिल होने
के बाद चिह्नित किया, ‘हम इसे केवल एक आर्थिक परियोजना नहीं मान सकते,
न
ही यह स्वीकार करेंगे कि यह अभिजात्यों और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों हेतु हो सकती है’। यह
संयुक्त राज्य द्वारा प्रायोजित ‘अमरीका हेतु मुक्त बाजार समझौता
यथ्जंंद्ध पर कोई अप्रत्यक्ष (नहीं, बल्कि सीधी) टिप्पणी थी, जिसका
जनमत द्वारा बहुत सख्त विरोध हो चुका है।’ (2006)
-प्रो– नोम चोम्स्मी
इस
पूरे विश्व का दूसरा पक्ष लातिन अमरीका में हो रहे व्यापक आंदोलन हैं। वे न तो ‘आतंकवादी’
हैं,
न
ही विपत्तिकारक राज्य’ हैंय इस तरह से वे किसी मनगढ़ंत (बहाने से) हमले
का निशाना भी नहीं है। साथ ही साथ वे साम्यवाद के पे्रत भी नहीं हैं। करोड़ों गरीब
लोग समानता, न्याय और संपत्ति के पुनर्वितरण हेतु संघर्षरत
हैं। यहाँ उस तरह का धार्मिक सहस्त्राब्दवाद, संप्रदायवादी
संघर्ष और जातीय विभाजन भी नहीं हैं जैसे कि मुस्लिम दुनिया में हैं। लेकिन
वास्तविकता में (यह) नव–उदारवाद और साम्राज्यवाद के विरुद्ध एवं
वास्तविक सीधा विद्रोह है। (2007)
-एजाज अहमद
Nice sir
जवाब देंहटाएं