मुकेश अम्बानी की कम्पनी रिलायंस इंडस्ट्री ने वित्तीय बाजीगरी के जरिये हजारों करोड़ का वारा-न्यारा किया। दुनिया भर में इस कंपनी की रेटिंग भारत देश की शाख से भी ऊपर है। सन 2012 में इस कम्पनी ने अपनी इस स्थिति का फायदा उठाते हुए विदेशों से बहुत कम ब्याज दर पर 72266 रुपये कर्ज लिया। भारत में कर्ज पर ब्याज दर अधिक है। बिना किसी उत्पादक कार्रवाई में भाग लिए इसने उसी धन को ऊँचे ब्याज दर पर कर्ज देकर खूब मुनाफ़ा कमाया।
रिलायंस जैसी 54 अन्य कंपनियों ने विदेशों से कम ब्याज दर पर उधार लेकर भारत में निवेश किया। इनकी बढती परिजीविता का आलम यह है कि सन 2007 से 2011 में भूमि और उद्योग जैसी स्थाई सम्पत्ति में निवेश 38.5 प्रतिशत से गिरकर 33 प्रतिशत पर आ गया जबकि कर्ज और वित्तीय उपकरणों में निवेश बढ़कर 40.5 प्रतिशत से 45.7 प्रतिशत तक पहुँच गया। इन कंपनियों के विशेषज्ञ शेयर बाजार के अनुकूल निवेश पर नजरें गड़ाये रहते हैं और गैर कानूनी तरीका भी इस्तेमाल करके मुनाफ़ा कमाने से बाज नहीं आते। क़ानून के चोर दरवाजे से निकलकर भागने में ये कुशल होते हैं। इस तरह ये बड़े निगम अनुत्पादक कार्रवाइयों में निवेश करके मुनाफा कमाते हैं। इन कंपनियों के पास पूँजी की कोई कमी नहीं होती लेकिन उत्पादन में मुनाफे की दर कम होने के कारण ये इसमें निवेश से हमेशा कतराती हैं। यही है कि बड़ी संख्या में रोजगार देने वाले लघु उद्योग पूँजी की कमी से जूझ रहे हैं।
कुल उत्पादन में गैर संगठित क्षेत्र का योगदान 27 प्रतिशत है जिसमें उत्पादन क्षेत्र के 80 प्रतिशत मजदूर काम करते हैं। इतनी बड़ी संख्या में मजदूरों को रोजगार देने वाली अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्र की अपंजीकृत उत्पादक इकाई में 2004 के 9.7 प्रतिशत निवेश की तुलना में 2011 में निवेश मात्र 3 प्रतिशत रह गया। उत्पादन क्षेत्र संकट ग्रस्त होने के कारण इनमें काम करने वाले मजदूरों की स्थिति खराब चल रही है। किसी देश की धन-सम्पदा में बढ़ोत्तरी का सीधा सम्बन्ध उत्पादन में वृद्धि से है। इससे साफ़ जाहिर है कि बड़े निगमों द्वारा उत्पादन में निवेश घटाने के कारण असली अर्थव्यवस्था संकट का शिकार बनती जा रही है और बेरोजगारी बढ़ रही है क्योंकि वित्तीय क्षेत्र में विकास रोजगारविहीन होता है।
ये बड़े निगम उन अमीर किसानों जैसे हैं जो क्रेडिट कार्ड पर बैंकों से सस्ते दर पर कर्ज लेकर गरीबों को 10 गुनी ऊँची ब्याज दर उठा देते हैं और बिना कुछ किये लोगों का खून चूसकर मुनाफ़ा कमाते हैं।
सन 2012 में इस कम्पनी ने अपनी इस स्थिति का फायदा उठाते हुए विदेशों से बहुत कम ब्याज दर पर 72266 रुपये कर्ज लिया। Ther is a fault in this statistic.
जवाब देंहटाएंMumbai: As the cost of rupee funds remains too high, 11 companies have raised a record USD 7.5 billion in foreign debt this year via bonds, which is 75 percent of what India Inc had mopped up in the entire 2012.
Reliance, the most cash-rich company in the country sitting over a Rs 84,000-crore cash mount, is planning to raise further USD 2 billion to fund its capex plan.