खाद्य सुरक्षा बिल संसद में पास हो गया है। सरकार ने दावा किया कि इससे सार्वजनिक वितरण प्रणाली
के जरिये देश की 67% गरीब आबादी के प्रत्येक व्यक्ति को प्रति माह 5 किलो अनाज सस्ते दामों पर मिलेगा। खाद्य सुरक्षा बिल गरीबों के लिए लाभकारी सिद्ध
होगा और आधार कार्ड से भ्रष्टाचार का खतरा नहीं रहेगा क्योंकि हमारे देश की ज्यादातर आबादी भुखमरी और गरीबी की शिकार है और ज्यादातर बच्चे कुपोषण के शिकार हैं।
सरकार इन नीतियों
के जरिये आधार कार्ड से भ्रष्टाचार ख़त्म करने का दावा कर रहे हैं। इस बिल के बारे में
सरकारी मंसूबे को जानने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली को किस तरह तहस-नहस किया गया
इस पर नजर डालनी चाहिए। इसका दुस्प्रभाव जनता पर साफ दिखाई देता है।
वर्ष 2006 में सरकार
ने किसानों से गेहूँ कम खरीदा और सस्ते दामों में गोदामों में पहले से पड़ा
अनाज बेच दिया। इससे सरकारी गोदामों में अनाज की कमी हो गयी और उसका बुरा असर वितरण
प्रणाली पर पड़ा। गरीबों को सस्ता अनाज देने में कटौती की गयी। इससे सरकार की जनविरोधी चेहरा उजागर होता है। इसका फायदा निजी व्यापारियों को मिला। इन्होंने अनाजों के
दाम बढ़ाकर लोगों को जमकर लूटा। कांग्रेस ने इस बिल को चुनावी हथकंड़ा बना
लिया है। इन्हें किसानों की गरीबी तभी नजर आयी जब चुनाव शुरू होने वाला है।
सन 2009 में इन्होंने किसानों की ऋण माफी का चुनावी ढकोसला किया। जिससे
इन्होंने वर्ष 2009 के चुनाव में बाजी मार ली। कितनी बड़ी विडम्बना है कि सरकार लोगों को
रोजगार, शिक्षा और चिकित्सा की सुविधा देने के बजाये खैरात बाँटने का ढोंग कर रही
है और जनता को परमुखापेक्षी बनने की सीख दे रही है। जबकि देश की स्थिति यह है कि विश्व के
आधे भूख़े लोगों यानि 38 करोड़ भूखी जनता भारत में रहती है ।
क्या इस बिल से गरीबों
के जीवन की मूलभूत आवश्यकतायों को पूरा किया जा सकेगा। इससे प्रत्येक व्यक्ति
को 5 किलो अनाज प्रति माह मिलेगा। एक आदमी एक महीने में 13 से 14 किलो भोजन ग्रहण करता है और क्या उसे खाने में दाल, चीनी, दूध, सब्जी और फल नहीं चाहिए। इससे स्पष्ट है
कि सरकार की यह योजना आम आदमी की आवश्यकता से कम ही है। वह गरीबों को जिन्दा
रखो और उन्हें गरीब बनाये रखो की नीति का पालन कर रही है। अगर खाद्य पदार्थों की
शुद्धता और पौष्टिकता की बात करें तो महाराष्ट्र के मानवाधिकार आयोग ने राशन की दुकानों
पर बँटवाने वाले गेहूँ के 265 नमूनों की जाँच करवायी। जिसमें 229 नमूने
इंसानों के खाने के लायक नहीं थे। आयोग का कहना है कि जो गेहूँ जानवरों के खाने के लायक नहीं है, उन्हें देश की जनता को खिलाया जा रहा है ।
कुछ सालों पहले जब अमरीका से आयातित
आनाज गुणवक्ता के मानक पर खरा नहीं उतरा। तो सरकार ने अमरीकी व्यापारियों से
सांठ -गांठ करके गेहूँ को श्रीलंका से पीसकर भारत आयात किया। जिससे
सच्चाई का पता न चले। इसमें हम अंदाजा लगा सकते हैं कि सरकार हमारे लिए कितना शुद्ध खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराती है। राजनीतिक कुचक्र के द्वारा चुनावी हथियार के रूप में
खाद्य सुरक्षा बिल का इस्तेमाल सरकार की नीयत को जग जाहिर करती है।
-अजय कुमार
-अजय कुमार
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन अब रेलवे ऑनलाइन पूछताछ हुई और आसान - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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