अमरीका
द्वारा की जा रही पिछले 6 वर्षों से पूरे विश्व की निरंतर जासूसी का पर्दाफाश हुआ है।
"ग्लोबल हीट मैप संस्था" के अनुसार "राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी"
(एनएसए) ने केवल मार्च 2013 में कंप्यूटर नेटवर्क (माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, फेसबुक, याहू
आदि कार्यक्रमों) के माध्यम से पूरे विश्व की 97 अरब जानकारी गुप्त रूप से हासिल की।
जिसमें ईरान और भारत की जानकारी क्रमशः प्रथम और पाँचवे स्थान पर है।
हाल ही में हुए विभिन्न खुलासे अमरीका
की इन साजिशों को अत्यधिक प्रमाणित और जग-जाहिर करते हैं। इन खुलासों में डेनियल अल्स्बर्ग
ने पेंटागन दस्तावेज़ों को सार्वजनिक किया और उसके बाद ब्रॅड्ली मॅनिंग ने विकिलीक्स
को अमरीका के राजनयिक दस्तावेज़ों की जानकारी
हासिल करवाया। इस कड़ी में एड्वर्ड स्नोडन द्वारा किये गये खुलासे सर्वाधिक चर्चित
है। केन्द्रीय ख़ुफ़िया संस्था (सी.आई.ए)के पूर्व कंप्यूटर अभियंता, 29 वर्षीय एड्वर्ड
स्नोडन, पिछले कुछ समय से अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा संस्था (एन.एस.ए) की एक ठेकेदार
संस्था "बूज़ एलेन हॅमिल्टन" मे कार्यस्थ थे। जून 2013 में हॉन्गकॉन्ग स्थित
एक होटल में स्नोडन ने लन्दन के एक समाचार पत्र गार्जियन को एन.एस.ए से सम्बंधित अत्यधिक
गोपनीय दस्तावेज उपलब्ध कराये। गार्जियन ने इन सूचनाओं को एक श्रृंखला के रूप में सार्वजनिक
किया। जिसमें अमरीका और यूरोप के जासूसी कार्यक्रम इंटर्सेप्ट, प्रिज़म और टेम्पोरा
से जुड़ी जानकारियां शामिल थी। इससे साफ़ पता चलता है कि अमरीकी संस्था एन.एस.ए ने
कुछ वर्षों में गूगल, एपल, फेसबुक, याहू जैसी शीर्ष इंटरनेट कम्पनियों पर अपना नियंत्रण
कायम किया है और इन कम्पनियों का इस्तेमाल करके प्रिज़म जैसे कार्यक्रमों के द्वारा
दुनिया भर के उपभोक्ताओं की गुप्त जानकारीयाँ हासिल की।
अपने साक्षात्कर के दौरान स्नोडन ने
बताया कि उसकी नौकरी ने उसे अमरीकी गुप्तचरों और "सी.आई.ए" के विदेशी मुख्यालयों
जैसी अत्याधिक गोपनीय जानकारियों से अवगत कराया। लेकिन जब उसे यह एहसास हुआ कि वह एक
ऐसी संस्था का हिस्सा है जो मानव-हित की जगह मानवता के विनाश को बढ़ावा दे रहा है,
तो उसने अमरीकी संस्थाओं के खुफिया दस्तावेजों को सार्वजनिक करने का फैसला लिया और
इसी के अंतर्गत वह हॉन्गकॉन्ग आया। स्नोडन ने बताया कि अमरीका एन.एस.ए और सी.आई.ए जैसी संस्थाओं के जरिये इंटरनेट और दूरसंचार विभाग के
माध्यम से पूरे विश्व की गुप्त जानकारी हासिल कर रहा है। इन गुप्त जानकारियों में विभिन्न
देशों के नेताओं और राजनयिकों के निजी जिंदगी के आपराधिक रिकोर्ड भी हैं ताकि वह मौका
पड़ने पर इनकी बाहें मरोड़ सके और इनसे मनचाहे समझौते पर हस्ताक्षर करवा सके। इसके
अलावा किसी देश के रक्षा सम्बन्धी दस्तावेज हासिल कर उसके खिलाफ कार्यवाई की रणनीति
बनाना भी इसका एक हिस्सा है। इन हथकंडों से वह दुनिया पर प्रभुत्व स्थापित करने का
सपना देख रहा है।
इसके साथ ही स्नोडन ने अमरीका द्वारा
इराक़, अफ्गानिस्तान, लीबिया और सीरिया में सैन्य हस्तक्षेप के पीछे छिपी उसकी मंसा
का भी भंडाफोड़ किया और यह बताया कि अमरीका कितनी चालाकी से यह सब विश्व शांति स्थापना
की आड़ में करता है। सन् 2003 में इराक़ के खिलाफ युद्ध प्रशिक्षण के दौरान मिले अनुभवों
से उसने बताया कि अमरीकी सैनिकों को अरब के लोगों की मदद करने की जगह उन्हें मारने
के लिये प्रशिक्षण किया जाता है। यह अमरीका के साम्राज्यवादी मंसूबो को दर्शाता है
जो वह इन देशों में लोकतंत्र बहाली के नाम पर कर रहा है। इन खुलासों से स्पस्ट है कि
बुश की जासूसी करने वाली नीतियों को ओबामा ने हूबहू नक़ल किया है। सी.आई.ए के जरिये
अमरीका दुनिया के ईमानदार नेताओं की जासूसी करने और उन्हें रिश्वत देने या उनकी हत्या
करवाने का काम करता है। ऐसा संदेह है कि वेनेज़ुएला के सच्चे नेता ह्यूगो शावेज़ को
इलाज़ के दौरान कैंसर की दवा देने का काम इसी संस्था द्वारा किया गया था। जिसके कारण
उनकी मृत्यु हो गयी। दूसरी और एन.एस.ए दुनिया की सबसे गोपनीय संस्थाओ में शीर्ष पर
कायम है। एक आँकड़े के अनुसार इसका एक केन्द्र एक दिन मे ईमैल या दूरसंचार विभाग से
दुनिया की एक अरब गुप्त जानकारी हासिल करता है और इसके 20 ऐसे केन्द्र लगातार काम करते
है।
एक अन्य घटना में अमरीका के अपराध का
खुलासा करने के आरोप में मैनिंग को 35 साल की कैद की सजा दी गयी। वाह रे अमरीकी न्याय
व्यवस्था!!! जबकि ईराक में युद्ध भड़काने और लाखों लोगों का कत्लेआम करने वाले अमरीकी
अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं। स्नोडन के कदम ने रातों-रात दुनिया क़ी नज़र में उन्हें
नायक बना दिया। स्नोडन के खुलासे से बौखलाया अमरीका उन्हें गद्दार घोषित करके जेल की
दीवारों के पीछे कैद करना चाहता है। लेकिन स्नोडन ने इस बात से इंकार किया है कि वो
गद्दार है और कहा कि "वे 1945 मे घोषित नुरेमबर्ग सिद्धांत को मानते है। इस सिद्धांत
के अनुसार सभी व्यक्तियों का अंतराष्ट्रीय कर्तव्य है कि वह विश्वशांति के लिये अपनी
आज्ञाकारिता क़ी राष्ट्रीय जिम्मेदारी से ऊपर उठे और विश्वशांति के खिलाफ काम करने
वाली अपनी सरकार के विरोध में आवाज उठाये । इस हिसाब से कोई व्यक्ति विश्वशांति और
मानवता की रक्षा के लिए अपने देश मे अपराध रोकने के लिये बने घरेलू कानून का उल्लंघन
कर सकता है।"
हद तो तब हो गयी जब अमरीका और इंग्लेंड
ने अपने कुकर्मो को छुपाने के लिए गार्जियन समाचार पत्र पर दबाव डाला कि वह खुलासा
की कंप्यूटर फाईलों को नष्ट कर दे। एक नाटकीय घटना में गार्जियन ने उसे नष्ट भी कर
दिया लेकिन समाचारपत्र ने कहा कि संभव है स्नोडन ने अपने मित्रों के जरिये इसकी प्रतियाँ
ब्राज़ील या अमरीका मे छिपा रखी हो। यह अमरीका और इंग्लेंड मे अभिव्यक्ति की आज़ादी
की असलियत को दिखाता है। अमरीका की इन्हीं साजिशों से बचने के लिए स्नोडन को भूमिगत
होना पड़ा। जब उन्होंने रूस में शरण लेनी चाही तो शुरू में रूस के राष्ट्रपति पुतिन
ने कहा कि "अगर स्नोडन अमरीका को नुकसान ना पहुँचाये तो उसे रूस में शरण दी जाएगी"
इससे साफ जाहिर है कि रूस कितना अमरीका विरोधी है और स्नोदें के लिए यह एक कड़ी शर्त
थी, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। लेकिन रूस की जनता उनसे लगाव रखती है और वे उनकी तुलना
परमाणु बम के कारण अमरीका की दादागिरी को खत्म करने के लिए अपने प्राण न्योछावर करने
वाले ऐथेल और रोजेनबेर्ग दम्पति और द्वितीय विश्व युद्ध में देश के लिए मर मिटे जासूसों
से करते है। लेकिन अमरीका और यूरोप न तो मानवता और न ही किसी देश की सम्प्रभुता की
कदर करते हैं क्योंकि जब बोलिविया के राष्ट्रपति एवो मोरालेस मास्को से अपने देश जा
रहे थे, तो यूंरोप मे उनके हवाई जहाज को उतारकर तलाशी ली गयी, कि कही उसमें छिपकर स्नोडन
ना भाग रहे हों। उनके हाथ कुछ भी नहीं लगा लेकिन इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अमरीका
की बहुत फजीहत हुई। तब इससे खार खाये अमरीका ने ऐसा करने वाले लातिन अमरीकी देशों को
गम्भीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी। इसके विरोध में सभी लातिन अमरीकी देश एकजुट हो
गये हैं और उन्होंने अमरीका को सख्त चतावनी दी है कि वह अपनी धूर्तताओं से बाज आये।
इससे साफ जाहिर है कि दुनिया हमेशा साम्राज्यवादियों
के हिसाब से नहीं चलती। अफगानिस्तान, ईराक, और लेबनान में अमरीका और उसके नाटो सहयोगियों
को भारी पराजय का मुँह देखना पड़ा है। आश्चर्य है कि अमरीका और उसके सहयोगी देशों द्वारा
अपने सारे साधन लगाकर भी अफ़गानिस्तान पर अपना आधिपत्य कायम नहीं किया जा सका। दो साल
पहले अमरीका में वाल स्ट्रीट आन्दोलन ने प्रशासन को हिला दिया था। आज पूरे विश्व में
अमरीका द्वारा थोपी गयीं उदारीकरण और निजीकरण की नीतियों का विरोध हो रहा है। चाहे
अमरीका अपने साम्राज्यवादी मंसूबो को पूरा करने के लिए कितने ही हथकंडे अपना ले पर
व़ह इंसानियत का दमन कर कभी अपने मंसूबो में कामयाब नहीं होगा। स्नोडन, मॅनिंग, विकिलीक्स
के जासूसी कारनामें और अमरीकी अन्याय के खिलाफ दुनियाभर में जनांदोलन की लहरें इसी
दिशा में संकेत कर रही है।
-मोहित पुंडीर
Thank you.....
जवाब देंहटाएंpata nahi America kahan jaa raha hai.... kya abke ye puri duniya ko phir se apna upnivesh banaana chahta hai ?