हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रशिक्षु आईएएस
दुर्गाशक्ति नागपाल को निलंबित कर दिया। यह लोगों के बीच गहरे विवाद का विषय बन गया
है। इस मामले में लोगों की राय बँटी हुई है। इसके पीछे दो कारण सामने आये हैं। पहला खनन माफिया के खिलाफ की गयी कार्यवाही और दूसरा कादलपुर गाँव में मस्जिद की दीवार
गिराने का आरोप। अगर हम सीधे तौर पर पहले मामले को देखें तो हमें यही समझ में आता है
कि उत्तर प्रदेश सरकार का फैसला खनन माफिया के पक्ष में है और इन्हें बचने के लिए सरकार ने दुर्गाशक्ति नागपाल को निलंबित कर दिया क्योंकि दुर्गा ने खनन माफिया के खिलाफ संवैधानिक दायरे में कारवाही की थी। जबकि दूसरे मामले पर ध्यान
दें तो उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि मस्जिद की दीवार गिराने से साम्प्रदायिक
दंगें हो सकते थे जिसके चलते दुर्गा को निलंबित किया गया। इसलिए दुर्गा ने मस्जिद की दीवार गिराकर दंगे भड़काने का काम किया है।
इन दोनों मामलों पर
तथ्यों के साथ विशलेषण करें तो पता चलता है कि खनन या बालू माफियाओं का अरबों
रुपये का काला कारोबार ऐसे ही बेधड़क नहीं चल रहा है। सफेदपोश, नेता, नौकरशाह और पुलिस
सभी इस कारोबार में लिप्त हैं। इस काले कारोबार से होने
वाली अवैध कमाई ठेकेदारों, खनन विभाग से जुड़े सरकारी अफसरों, चौकियों पर तैनात पुलिस
अफसरों, बड़े पुलिस अफसरों और इस धंधे को संरक्षण देने वाले नेताओं तक पहुँचती है। जबकि
काली कमाई का एक बड़ा हिस्सा अघौषित तौर पर इन धंधों में लिप्त मंत्रियों तक जाता
है । उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री आजम खान ने व्यंग्य किया कि
"प्राक्रतिक संसाधनों पर सबका हक़ है"। "राम नाम की लूट है लूट सकें
तो लूट"। इसका आशय क्या है? यह समझना मुश्किल नहीं।
एक खबर के अनुसार एक ट्रक
में 25 घनमीटर बालू आता है जिस पर 32 रुपए प्रति घंटा के हिसाब से 800 रुपये रौअल्टी कटती है। कुल रायल्टी का
30 प्रतिशत यानि 225 रुपये वैट लगता है। ट्रक में दुलाई और लदाई का खर्च 1000 रुपये
आता है। एक ट्रक बालू की कीमत सिर्फ 2025 रुपये होती है । लेकिन सच यह है कि प्रत्येक
ट्रक पर 75 घनमीटर बालू लादा जाता है । 2025 रुपये के ट्रक का बालू बाजार में 30 से
35 हजार रुपये में बिकता है। खनन माफिया एक ट्रक से करीब 30 हजार रुपये की काली
कमाई करते हैं।
कानूनी तौर पर एक एकड़ में
12 हजार घन मीटर खुदाई की जा सकती है। लेकिन सरकरी रिपोर्ट के मुताबिक हमीरपुर के बैड़ा
दरिया घाट, भौड़ी जलालपुर, चित्रकूट के ओरा, बाँदा के भुरेड़ा सहित कई हजारों
घाटों में एक एकड़ में 1.5 लाख घनमीटर से भी ज्यादा मौरम बालू निकाली गयी। सरकारी आकड़ो
के मुताबिक उत्तरप्रदेश में हर साल 954 करोड़ रुपये का खनन कारोबार होता है।
जबकि करीब 2797 करोड़ रुपये के अवैध कारोबार की कोई हिसाब नही।
इस तथाकथित लोकतान्त्रिक
देश में प्राकृतिक संसाधनों की बेलगाम लूट में उत्तरप्रदेश प्रशासन और नेता किसी
से पीछे नही हैं। क्योंकि यदि इस लूट में
निर्धारित हिस्सा मिलता रहे तो कानून के रखवालों (आईएएस) को कोई आपत्ति नही होती है। लूट का
कारोबार बढ़ने के साथ-साथ इन माफियायों की काली कमाई बढ़ती जाती है। जाहिर है कि प्रशासन
को भी बड़ा हिस्सा चाहिए। चोरी से किये गये अरबों रुपयों की कमाई की बंदरबांट में नेता, अफसर और पुलिस सभी शामिल होते हैं। संभावना यह भी है कि दुर्गा का इन माफियाओं से सौदा नही पट पाया हो।
एक खबर के अनुसार २ जुलाई
को कादलपुर गाँव के एक धार्मिक स्थल की दीवार को दुर्गा ने गिरवा दिया था। सरकर ने माहौल बिगड़ने की आशंका से दुर्गा को निलम्बित कर दिया। जबकि इस गाँव के लोगों
में 70 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है, धार्मिक सदभावना बिगड़ने के
दावे को सिरे से ख़ारिज किया। गाँव के लोगों का कहना है कि धार्मिक स्थल का निर्माण
गाँव के सभी धर्मों के लोगों की सहमति से ही हो रहा था, इसलिए दंगा भड़कने की सम्भावना
का सवाल ही नहीं उठता है। कुछ लोगों का मानना है कि उत्तरप्रदेश सरकार दंगों की आड़
में अपराधियों को बचाने में लगी हुई है। विवाद का विषय यही है।
दोनों ख़बरों में सच कौन सी है। हम लोगों में से कोई भी नहीं जानता। लेकिन हम इस बात के लिए मजबूर हैं कि मीडिया द्वारा उड़ाई गयी इन दोनों ख़बरों में से इस या उस बात पर विश्वास करके अपनी राय बनाये और शासक वर्ग के एक खेमें में खड़े हो जाए।
दरअसल दुर्गानागपाल जैसे
सभी आईएएस अधिकारीयों की जिंदगी सुख-सुविधाओं और वैभव-विलास से भरपूर है। व्यवस्था
से मिली शानो-शौकत और अय्यासी भरी जिंदगी और समाज में देवता जैसी स्थिति किसी आईएएस अधिकारी को जनता की जिंदगी से काट देने के लिए पर्याप्त है। यही हाल नेता का भी है लेकिन नेता दिखावे के लिए
ही सही पाँच साल में हाथ जोड़कर जनता के सामने वोट माँगने के लिए उपस्थित होते हैं।
लेकिन ईमानदार आईएएस अधिकारी जनता को जाहिल और उन्मादी भीड़ समझता है।
वह मजदूर किसानों के आन्दोलनों
पर गोली चलाने से हिचकता नहीं है। हमारा इतिहास इस बात का गवाह है। ये जनता को अपनी जूती
की नौक पर रखते हैं। लोग निजी जिंदगियों से जुडी समस्याओं को लेकर महीनों सरकारी दफ्तर
के चक्कर लगाते हैं। सरकारी बाबू बदनाम होते हैं और सब खेल खेलें गोसाई अपुना रहैं दास की नाई की तर्ज पर ये अधिकारी जनसेवक बने रहते हैं। यही अधिकारी उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण की नीतियाँ बनाकर जनता का खून चूसते हैं। नेताओं के भाषण और
उनकी कार्यवाहियों के मार्गदर्शक यही हैं। यही लोग देश की शासन व्यवस्था चला रहे हैं। नेता, पूँजीपति और अधिकारियों का गठजोड़ देश को लूट रहा है।
लेकिन जब इनके बीच का समीकरण
बिगड़ जाता है तो ये लोग अपनी लड़ाई जनता के अखाड़े में लड़ते हैं। कोई धर्मनिरपेक्ष होने की डींग भरता है तो कोई ईमानदार बनने की। सीधे-सादे लोग नेताओं और अफसरों
के आपसी विवाद निपटारे के मोहरे बन जाते हैं। दरअसल इन दोनों में किसी को भी मेहनतकश
जनता की जिंदगी और संघर्ष से कोई लेना-देना नहीं है। इनमें से कोई भी इस सड़ी व्यवस्था, जनता के ऊपर होने वाले अन्याय
और शोषण के खिलाफ जन-आन्दोलनों में लोगों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर लड़ता दिखाई नहीं देता है। ये लोग किस तरह हमारे खिलाफ साजिश रच रहे हैं इस बात को समझाना होगा।
-सुनील कुमार
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