खाद्य
और उपभोक्ता मामलों के मन्त्री श्री के वी थॉमस ने लोकसभा में एक सवाल के लिखित जबाब में बताया कि सितम्बर में समाप्त हो रहे कारोबारी
वर्ष 2012-2013 में गन्ना किसानों का 5821 करोड रुपये से भी ज्यादा चीनी मिलों पर
बकाया है। उन्होंने कहा कि यह बताना सम्भंव नहीं है कि किसानों को कब तक भुगतान किया
जायेगा?
विडम्बना देखिए गन्ना मूल्य निर्धारण
भी मिल मालिक और सरकार मिलकर करते हैं। खेतों से मिलों तक गन्ना ढुलाई भाड़ा भी गन्ने
के मूल्य से काटा जाता है। सड़क निर्माण के नाम पर उनके भुगतान से कटौती की जाती है।
इसके बावजूद भी किसानों को भुगतान के लिए आन्दोलन का सहारा लेना पडता है और मिल मालिक
फिरभी सालों-साल भुगतान नही करतें। हाल ही में बागपत जिले के मोदी गन्ना मिल में
एक राजनेता के हिस्सेदारी की खबर सुर्खियों में थी। मिल के गेट पर भुगतान की
मॉग को लेकर किसान लगभग 70-75 दिनों तक धरना और प्रर्दशन करते रहे। आन्दोलन के तीखे
तेवर को भॉपते हुए शासन ने मिल मैनेजर को निर्देश दिया कि किसानों के साथ बातचीत करके
कुछ भुगतान के चेक देकर आन्दोलन समाप्त करा दो। लेकिन आन्दोलन समाप्त होने के बाद भी
बैंक खाते में पैसा नहीं पहुँचा। चेक बाउंस हो गये। आन्दोलन फिर शुरू हो गया लेकिन
किसानों के संघर्ष की धार कुंद करने के लिए शासन ने चीनी को नीलाम करके भुगतान करने
का वादा किया या कहा कि मिल मालिकों के खिलाफ एफ आई आर दर्ज किया जायेगा। लेकिन प्रशासन
आज तक कोई स्थाई समाधान न दे सका।
गौरतलब है कि मिल प्रबंधन और प्रशासन
की मिलीभगत से न मिल की आरसी जारी हुई। न मोदी को गिरफ्तार किया गया और न ही कोई राजनीतिक
पार्टी का कोई नेता किसानों के पक्ष में आया। आज भी आन्दोलन जारी है। राजनीतिक पार्टियों
के कुछ नेता कभी-कभी आकर भाषणबाजी करते हैं कि जब तक किसानों की पाई-पाई का
भुगतान नहीं होता हम चैन से नहीं बैठेंगे। लेकिन उन्हें बेचैन नहीं देखा गया। स्पष्ट
है पक्ष-विपक्ष की पार्टियां जनता का साथ छोड़कर देशी-विदेशी सरमायदारों के पक्ष में
चली गयी हैं।
सरकार बिजली बिल बकाया होने पर किसानों
के कनेक्सन काट देती है। बैंकों की बकाया बसूली के लिए उनकी जमीने नीलाम कर देती है
लेकिन किसानों का बकाया बसूली के लिए मिल मालिकों के खिलाफ कोई कार्यवाही क्यों नहीं
करती?
काबिले गौर है किसान पूरे साल भोजन,
बच्चों की शिक्षा, चिकित्सा और अन्य खर्चों के लिए बैंकों और साहूकारों से कर्ज लेता
रहता है। इस उम्मीद पर कि गन्ना भुगतान आने पर लौटा दूंगा लेकिन सारा गन्ना मिलों
में पहुँचने के बाद भी उसको एक मुश्त भुगतान नहीं मिल पाता। इसी के चलते किसान लगातार
कर्ज के बोझ से दबता जाता है।
कई संस्थाओं के आँकड़ों से पता चलाता है
कि देश के 80 फीसदी किसान कर्ज में डूबे हुए हैं और 40 फीसदी को वैकल्पिक रोजगार मिले
तो वे खेती छोड़ने को तैयार हैं। नेशनल क्राइम ब्यूरो के अनुसार हर 37 मिनट में एक किसान
आत्महत्या करता है। 1995 से 2011 तक 290740 किसान कर्ज और गरीबी से तंग आकर आत्महत्याएं
कर चुके हैं। पिछले दिनों पंजाब के किसानों ने गाँव के बाहर 'गाँव बिकाउ है' का बोर्ड
लगाकर सरकार से खरीददार भेजने की माँग की थी। यहाँ किसानों ने एक मेला लगाकर राष्ट्रपति
से गुहार लगायी थी कि हम अपनी किडनी बेचना चाहते हैं।
हाल ही में झारखंड के दूर के गाँव में
एक किसान हल्दी की खेती में बर्वाद हो गया। उसने नुकसान की भरपाई के लिए कम्पनी और
सरकार का दरवाजा खटकाया। अन्त में कही सुनवाई न होने के चलते आत्महत्या कर ली। गोंडा,
चतरा और पलामू जिलों में नियमित सूखा पड़ता है। यहाँ आन्दोलन करके किसानों ने कहा कि
पानी नही देती सरकार तो इच्छा मृत्यु ही दे दे।
छोटा प्रदेश होने के चलते जिस हरियाणा को
खुशहाली का तमगा मिला है। वहां किसान हर संभव उपाय आजमाने के बाद भी बैंकों
से लिया गया कर्ज नहीं चुका पाये। चारों ओर से मायूस होकर किसानों ने कुरूक्षेत्र में
एक जनसभा करके प्रधानमंत्री से अपने शरीर के महत्वपूर्ण अंग बेचने की अनुमति मांगी
है। शायद ये किसान अंग बेचकर कर्ज चुकाने
के बाद कुछ और साल जी सकें और अपने परिवार का भरणपोषण कर पायें। गुजरात में किसानों सें जमीनें छीन कर देशी-विदेशी कम्पनियों को दी जा रही हैं। 40 गाँव
के किसान संगठित होकर अपनी जमीनों को बचाने का आंदोलन चला रहे हैं।
देश का अन्नदाता अब किस बात पर गर्व
करे, जब पूरे देश में अपनी जमीनें बचाने, फसलों का उचित दाम और भुगतान के साथ-साथ अपना
अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। दैत्याकार विदेशी कम्पनियों और देशी पूँजीपतियों के साथ मिलीभगत करके सरकार किसानों के भयावह शोषण और अमानवीय दमन के नये-नये कानून और
हथकंडे अपना रही है। ये लोग किसानों को नरकीय जीवन जीने, आत्महत्या करने के साथ ही शरीर
के अंग बेचने को विवश कर रहे हैं। मेहनतकश जनता का एक देशव्यापी संगठन
बनाकर इन अमानवीय अत्याचारों को रोका जा सकता है।
-महेश त्यागी
http://www.hindustantimes.com/India-news/Haryana/Debt-ridden-farmers-seek-permission-to-sell-organs/Article1-1103701.aspx
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें