कार्लोस मार्टिनेज– आप बातचीत के लिए राजी हो गये इसके लिए
धन्यवाद। आप सीरियाइ संघर्ष के बारे में लोगों को जानकारी देने में बहुत सक्रीय
रहे हैं। क्या आप बता सकते हैं कि आपने इस काम के लिए इतना अधिक समय और ऊर्जा खर्च
करना क्यों उचित समझा?
इस्सा चाएर– संघर्ष के शुरुआती कुछ हफ्तों के दौरान, विदेशों में रहनेवाले हम सीरियाई लोग
उन रिपोर्टों को असहाय होकर देख रहे थे जो विभिन्न अरबी समाचार एजेन्सियों से
हमारे पास आ रही थी। उसी समय, जो सूचना हमें सीरिया में रहनेवाले अपने परिवार के सदस्यों और
साथियों से मिल रही थी, वह एजेंन्सियों की खबरों के विपरीत थी। सीरिया यात्रा के दौरान हमारे
व्यक्तिगत अनुभव ने सीरिया के बारे में फैलायी जा रही समाचार एजेन्सियों की गलत
खबरों की पुष्टि की। यात्रा के दौरान हमने उनके झूठ को पकड़ा और इस निष्कर्ष पर
पहुँचे कि वास्तविक खबरें प्रसारित करने के बजाय ये मीडिया घराने अपनी खुद की खबरे
गढ़ रहे हैं और हमने देखा कि वे सीरिया को निशाना बनानेवाले एक बडे़ षड़यंत्र का
हिस्सा हैं। इसलिए, हमने ब्रिटेन में उन लाखों सीरियाई लोगों की आवाज बनने का फैसला किया
जिन्हें अन्तरराष्ट्रीय मीडिया अनदेखा कर रहा था। हमने इन्टरव्यू, धरना प्रर्दशन और अन्य उपायों से
सीरिया में जो हो रहा है उसकी सच्ची खबरें फैलाने का फैसला किया, ताकि सीरियाई जनता की शान्ति की
आकांक्षा को चिन्हित किया जा सके और सीरिया की अखण्डता और सुरक्षा को बनाये रखने
में सहयोग किया जा सके।
कार्लोस मार्टिनेज– विलियम ह्यूज ने फिर से घोषणा की है कि
ब्रिटेन की सरकार सीरिया में विरोधियों को ‘‘50 लाख पाउण्ड’’ की धनराशि फिर से मुहैया करायेगी। इसी
बीच, अमरीका
और ब्रिटेन ने सऊदी, बहरीन और कतर के शाही घराने से मधुर सम्बन्ध
बनाये रखा है। ये नेतृत्त्वकारी पश्चिमी राष्ट्र सीरिया के विद्रोह का क्यों
समर्थन करते हैं, जबकि बहरीन में उठे विद्रोह का विरोध करते हैं?
इस्सा चाएर- यह दोहरा मानदण्ड है। व्यवहार में, अब जो अरबी दुनिया में हो रहा है, वह 1916 के साइकेस–पिकोट समझौते का भूल सूधार है, उस समय औपनिवेशिक शक्तियाँ, बिट्रेन और फ्रांस ने अरब राज्यों की
सीमाएँ खींच दी थी और उनमें अपनी कठपुतली सरकार बैठा दी। सऊदी, बहरीन और कतर में किसी भी तरह के
लोकतन्त्र का अभाव है और इनके मानवाधिकार का लेखा–जोखा अत्यन्त नृशंसतापूर्ण है। फिर भी
पश्चिमी ताकतें इन देशों की सरकारों का समर्थन कर रही हैं क्योंकि ये उन्हें अपना
सहयोगी मानती हैं जो इस क्षेत्र में पश्चिमी ताकतों के वित्तीय, राजनीतिक और रणनीतिक स्वार्थों के
रक्षक हैं। दूसरी ओर, सीरिया एक प्रमुख स्थानीय खिलाड़ी के रूप में देखा जाता है जिसका
लेबनान के प्रतिरोध आन्दोलन (खास तौर से हिजबुल्लाह) और ईरान के साथ मजबूत सम्बन्ध
हैं। ये दोनों लम्बे समय से इजराइली रणनीति के रास्ते के खतरनाक काँटे हैं। ऐसे
में, आज
सीरिया मध्य पूर्व में उसकी एकमात्र रणनीतिक कड़ी है। इसके चलते पश्चिमी देशों ने
यह मौका ताड़ लिया और विरोधी गुटों का समर्थन करने के जरिये सीरिया को पश्चिम का
संश्रयकारी बनाने का प्रयास शुरू कर दिया। यह लक्ष्य पाते ही पश्चिमी ताकतों का इस
इलाके में पूरा वर्चस्व कायम हो जायेगा और वे ईरान को अलग–थलग करने में या उसकी सम्भावित सत्ता
पलटने में कामयाब हो जायेंगे।
इस नवउदारवादी योजना में यह भी शामिल
किया गया है। दो या अधिक अरब पार्टियाँ सीरिया के शासन पर आक्रमण करेंगी और यह
लडाई तब तक जारी रखेंगी, जब तक यह राज्य टूट न जाय और क्षेत्रवादी रास्ते पर बिखरकर 2–3 राज्यों में बदल न जाय। ऐसे देशों को
पश्चिमी ताकतें आसानी से नियन्त्रित कर लेंगी और सम्पदा की लूट के लिए वहाँ
औपनिवेशिक शासक बैठा दिये जायेंगे, यह उसी तरह से किया जायेगा जैसा मिस्टर
साइकेस और मोशिये पिकोट ने लगभग एक शताब्दी पहले सोचा था।
कार्लोस मार्टिनेज– ऐतिहासिक तौर पर सीरिया एक
धर्मनिरपेक्ष और सहिष्णु राष्ट्र के रूप में जाना जाता है। आज हम जो क्षेत्रवादी
हिंसा देख रहे हैं, उसकी जडें़ कहाँ हैं?
इस्सा चाएर– पिछले दस सालों के दौरान इस पूरे इलाके
में कई तत्त्वों ने क्षेत्रवाद को प्रभावित किया है और जो सीरिया में भी प्रवेश कर
चुका है–
1– इराक युद्ध के बाद क्षेत्रवाद इस पूरे
इलाके में फिर से भड़क उठा। राजनीतिक स्वामी, मुख्य औपनिवेशिक ताकतें तथा अपनों की
सेवा में लीन सऊदी और कतर के अलोकतांत्रिक शाही घरानें इलाके में इसे उकसा रहे हैं
और तुर्की व अलकायदा के धड़े गुपचुप तरीके से इनकी सहायता कर रहे हैं।
2– मुस्लिम ब्रदरहुड के पुरोहित जो 1980
में सीरिया भाग गये थे, वे भी पिछले दस सालों में (इराक युद्ध के बाद) सऊदी अरब के वहाबी
सम्प्रदाय के साथ खूब फले–फूले हैं। सऊदी की सब्सिडी पाकर उन्होंने काफी सक्रियता से टीवी
चैनलों और प्रकाशन कम्पनियों को स्थापित किया है जो धार्मिक किताबें छापकर
अल्पसंख्यकों और ईसाइयों के खिलाफ नफरत फैला रहे हैं। ऐसे प्रोपगेण्डा बिना सुराग
के सीरिया में प्रवेश कर गये और उन्हें हथियार उठाने के लिए प्रोत्साहित करने मे
इस्तेमाल किये गये।
3– संकीर्णतावादी विरासतवाले कुछ मौलवियों
ने यही काम पश्चिमी देशों जैसे– इंग्लैण्ड, जर्मनी, हॉलैण्ड, फ्रांस और बेल्जियम में किया। यहाँ वे बराबरी और विविधता जैसे
कानूनों के तहत बनी कुछ मस्जिदों में पहली पीढ़ी के अप्रवासियों और उनके बच्चों को
क्षेत्रवाद और घृणा का उपदेश देते हैं। लेकिन इनमें से एक, जिसका अन्तरराष्ट्रीय प्रभाव है और जो
अलकायदा और उसके अन्य गुटों से जुड़ा है, उसने शुरुआती मीडिया सुर्खियों के
जरिये ख्याति हासिल की और अपनी क्षेत्रवादी विचारधारा को दुनिया में फैलाने के लिए
डिजिटल मीडिया तकनीक का इस्तेमाल किया। दुर्भाग्य से लेबनान, जॉर्डन, सीरिया, इराक, सऊदी और तुर्की के कुछ नौजवान उनके जाल
में फँस गये।
कार्लोस मार्टिनेज– क्या सीरिया की सरकार गिर सकती है? इसके बाद आप के हिसाब से विरोध पक्ष का
कौन सा धड़ा इस सत्ता के खालीपन को भर सकता है?
इस्सा चाएर– विरोधी गुट अभी बैठे हुए हैं और विरोध
के कुछ गुटों की अतिवादी विचारधारा किसी भी मैत्रीपूर्ण एकता को बाधित करती है या
मध्यममार्गी गुटों को नेतृत्त्व करने से रोकती है। इसलिए यदि सरकार गिरती है, हम आनेवाले 2–3 सालों के दौरान हिंसा में उभार
देखेंगे और यह हिंसा स्थानीय रूप से लेबनान, तुर्की और इराक में भी फैल जाएँगी, दृश्यपटल पर बाहरी सम्पर्कों वाले नये
गुट उभरेंगे। बाथ पार्टी की सरकार गिरने की स्थिति में लेबनानी मॉडल पर आधारित
गठबन्धन की सरकार ही एक मात्र समाधान होगा। लेकिन इसमें काफी समय लगेगा।
कार्लोस मार्टिनेज– सीरिया की स्थिति पर इजराइल लगभग चुप
है। आपके हिसाब से वह इस परिस्थिति को कैसे देखता है?
इस्सा चाएर– सीरिया में संघर्ष से इजराइज को सीधे
फायदा हो रहा है और मैं मानता हूँ कि वे संघर्ष को लम्बा खीचने की भरसक कोशिश
करेंगे क्योंकि उनकी नजर में इससे सीरिया की सेना कमजोर होगी और इस तरह इलाके में
लम्बे समय से चला आ रहा, कुछ हद तक सफल इजराइल– विरोधी गठबन्धन भी कमजोर हो जायेगा यह
इलाके में विभाजन को और अधिक बढ़ावा दे सकता है जो इजराइल के विस्तार के लिए दरवाजे
खोल सकता है।
कार्लोस मार्टिनेज– शान्तिपूर्ण समाधान की दिशा मेंे ईरान
नेतृत्त्व में ताजा अन्तरराष्ट्रीय पहलकदमी को पश्चिमी मीडिया ने आम तौर पर अनदेखा
किया। क्या आप सोचते हैं कि इस पहलकदमी की सफलता की कोई सम्भावना है?
इस्सा चाएर– ईरान द्वारा संघर्ष के सम्बन्ध में
प्रस्तावित सभी विचार तार्किक हैं और सीरिया में राजनीतिक समाधान को आगे बढ़ाने के
प्रयास के लिए ईरान सम्मान का अधिकारी है। ईरान ने सभी भागीदार देशों को एक
मध्यस्थ समूह स्थापित करने का सूझबूझ भरा प्रस्ताव दिया, जिसका उद्देश्य हिंसा को खत्म करना तथा
सीरियाई सरकार और विरोधियों के बीच आपस में मिलकर वार्ता शुरू करना है। अगर इसे
इलाकाई समर्थन मिला तो यह उस समानान्तर प्रक्रिया की तरह सफल हो सकेगा, जिसे संयुक्त राष्ट्रª के नये राजदूत, अल–अखदर अल–इब्राहिमी ने शुरू किया था। युद्ध को
खत्म करने की दिशा में ऐसी पहलकदमी पश्चिमी देशों के उस प्रयास की तुलना में अधिक
सहायक है जिसमें सीधे विरोधियों का साथ दिया गया। (हथियार, धन और प्रोपागेंडा के जरिये)
कार्लोस मार्टिनेज– सीरिया के विरुद्ध ताकतों की आश्चर्यजनक
Üाृंखला
है, जिसमें
अमरीका, फ्रांस, ब्रिटेन, सऊदी अरब, कतर और किसी भी समय आक्रमण के लिए
तैयार इजराइल शामिल हैं। क्या लीबिया और इराक जैसे भविष्य से सीरिया बच सकता है?
इस्सा चाएर– सीरिया की भौगोलिक संरचना और घटना का
समय लीबिया की घटना के दुहराव के लिए पूरी तरह प्रतिकूल है। पश्चिमी देश छद्म
तरीके से युद्ध जारी रखेंगे, जबकि नवम्बर में अमरीकी जमीनी सैन्य टुकड़ी को शामिल करने की नयी
रणनीति के बारे में सोच सकते हैं। लेकिन इसमें सहमति की जरूरत पड़ेगी और यह एक
खतरनाक चाल साबित हो सकती है क्यांेकि इराक और अफगानिस्तान के युद्धों के
दुष्परिणामों को जनता भूल नहीं पायी है।
कार्लोस मार्टिनेज– क्या सीरिया की सरकार ने सीरिया में
अपना महत्त्वपूर्ण समर्थन आधार बरकरार रखा है?
इस्सा चाएर– सीरिया में निवास करनेवाले सीरियाई
लोगों के बीच बहस का मुख्य मुद्दा आज वही शान्ति और सुरक्षा है, जिसके वे पिछले 30–40 सालों से अभ्यस्त हैं– यही सबसे महत्त्वपूर्ण चीज है जिसकी ओर
वे वापसी चाहेंगे। इसलिए सीरिया की सरकार का समर्थन काफी हद तक आज जनता की इस खोई
सुरक्षा को बहाल करने की सरकार और सेना की योग्यता पर निर्भर है। जब तक सेना मजबूत
है और जब तक उसका वर्चस्व है, लोकप्रिय समर्थन जारी रहेगा।
कार्लोस मार्टिनेज– क्या ऐसा कुछ है जिससे हम पश्चिम के
लोग सीरिया का अधिक प्रभावशाली तरीके से सहयोग कर सकें तथा खूनखराबे और विनाश को
आगे बढ़ने से रोक सकें।
इस्सा चाएर– मैं सोचता हूँ कि संघर्ष को भड़कानेवाले
मुख्य कारक कुछ मीडिया स्टेशन हैं और सबसे बढ़िया काम जो हम कर सकते हैं, वह है सीरिया की उस बहुसंख्यक जनता के
लिए एक अभियान चलायें जिसकी चीख–पुकार और तकलीफें पश्चिमी अन्तरराष्ट्रीय मीडिया की रिपोर्टों में नहीं आती
और जिसकी मुख्य आकांक्षा है– शान्ति और सामान्य परिस्थितियों की बहाली। मैं यह भी सोचता हूँ कि
मीडिया स्टेशन पर पक्षपात न करने तथा अप्रमाणित किस्से–कहानियों और आँकड़ों की रिपोर्टिंग न
करने के लिए दबाव बनाना जरूरी है।
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