पता है, लेखकों, फिल्म निर्माताओं और वैज्ञानिकों
द्वारा पुरस्कारों की वापसी अमरीका, सऊदी
अरब और पाकिस्तान द्वारा आपस में मिलकर रचा गया षडयंत्र था? ठीक है, अगर आपको नहीं पता तो आप कभी नहीं समझ पायेंगे कि आज अनुपम खेर की
मार्च फॉर इण्डिया रैली में उमड़े ‘‘सहिष्णुता’’ के सैलाब द्वारा एनडीटीवी की भैरवी
सिंह और आज तक की मौसमी सिंह का इतने घिनौने तरीके से अपमान और उन पर हमला क्यों
किया गया। आखिरकार, टीवी चैनलों और हर जगह पर अपने गुस्से
और हँसी का ढोंग करना नेताओं का काम है, लेकिन
आप आम लोगों को उन्मादी बनाये जाने का तरीका कैसे समझ पायेंगे? हिन्दुत्व के पैदल सिपाही क्या काम
करते हैं, वे (लड़का या लड़की) इस तरीके से क्यों
और कैसे करते हैं? मूलत:
उसे (लड़का, कभी–कभी लड़की) ऐसी चीजों पर विश्वास करने के लिए ही तैयार किया जाता है
जिन्हें अधिकांश लोग झूठ मानेंगे। ऐसा क्यों है कि लेखकों द्वारा पुरस्कार वापसी
का बिलकुल गैर–नुकसानदेह काम दुनिया में भारत की
हैसियत और मौजूदा सरकार की सत्ता के लिए इतना बड़ा खतरा बन जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि
यह कुछ लेखकों की अपनी अन्तरात्मा जाग उठने का साधारण मामला नहीं है, बल्कि अमरीका–सऊदी अरब–पाकिस्तान के गठबन्धन द्वारा पहले से
ही रचे गये अन्तरराष्ट्रीय षड्यंत्र का एक हिस्सा है!
आगे दी गयी सामग्री उस विवरण का अंश है
जो सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों पर वितरित की जा रही है। हमने मूल पाठ की टंकण और
मुद्रण सम्बन्धी गलतियों को छोड़ दिया है। अपनी अन्तरवस्तु में भ्रामक, यह उस तरीके को भी स्पष्ट करनेवाला है
जिससे आरएसएस की ‘‘अफवाह मशीन’’ झूठ का उत्पादन करती है। पुराने दिनों
में आरएसएस सुबह की शाखाओं में भाग लेनेवालों के बीच झूठ फैलाकर इसकी शुरुआत किया
करती थी। आजकल यह प्रकाश की गति से एक सोशल मीडिया मंच से दूसरे पर घूमता है।
आगे का विवरण जनहित में जारी करने की
जरूरत है, हालाँकि यह अरुचिकर है फिर भी
उल्लेखनीय है। इसे, शुरू–शुरू में (ऐसा लगता है), किसी
महाराष्ट्र निवासी विशाल द्वारा जारी किया गया है, इसका प्रारम्भिक सम्बोधन इस प्रकार है––
भारत को तोड़ने वाली ताकतों की पापी और
घृणित योजना का भण्डाफोड़। मोदी सरकार समर्थकों के लिए पढ़ना अनिवार्य। मूल में बड़े
अक्षर हैं। ‘भण्डाफोड़’ पर जोर देकर हिन्दुत्व के इच्छुक पाठक
पर यह प्रभाव छोड़ा गया है कि वह जो बात पढ़ने जा रहा/रही है वह किसी वास्तविक जाँच
और तथ्यों के रहस्योद्घाटन पर आधारित है।
और निश्चय ही, इस विवरण में किये गये दावों का
तथ्यात्मक स्तर बिलकुल शुरुआत में ही स्थापित कर दिया गया है यह ऐसी कोई चीज है जो
अधिकांश लोगों की साँस फुला देगी। यहाँ इसे हूबहू दिया गया है, (कोष्ठकों में हमारे अपने अवलोकन भी
दिये गये हैं।)
1– भारत
सरकार का गुप्तचर विभाग पुरस्कार वापसी की जाँच कर चुका है और शुरुआती रिपोर्ट
बताती है कि इसमें अमरीका–सऊदी अरब–पाकिस्तान का हाथ है।
ख्भारत सरकार के गुप्तचर विभाग ने जाँच
की है और निश्चय ही यह बेहद गुप्त सूचना है, इसे
केवल अनौपचारिक माध्यमों द्वारा ही प्रचारित किया जा सकता है, ऐसे लोगों के माध्यम से जो इससे सीधे
जुड़े हों। अपील केवल ‘मोदी सरकार समर्थकों’ को सम्बोधित करती है, पैदल सिपाहियों के दिमाग में थोड़ा सन्देह
है कि इस गुप्त चैनल के माध्यम से उसे ऐसी सूचना का संसर्गी बनाया जा रहा है, जो कोई और नहीं बल्कि सरकार के समर्थक
ही हासिल कर सकते हैं। उसे जो वह हमें प्रतीत होता है (एक लठैत) उससे मानसिक रूप
से ऊँचा उठा दिया गया है। (भारत को तोड़ने के लिए किये गये एक अन्तरराष्ट्रीय
षडयंत्र के खिलाफ एक लड़ाका),
2– यह
तब शुरू हुआ जब कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी, जेएनयू
प्रोफेसर, वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार मिले और
इन लेखकों को दादरी घटना को एक आसान मुद्दे के रूप में इस्तेमाल करने के लिए राजी
किया गया।
3– पहली
मीटिंग जेएनयू में हुई और बाद में इंडिया इंटरनेशनल सेन्टर और हैबिटेट सेन्टर में।
शुरू में ये साहित्यकार नकारात्मक प्रतिक्रिया के भय से खुलकर सामने आने को राजी
नहीं थे, लेकिन फिर उन्हें कांग्रेस से
मिलनेवाली सहूलियतों के बारे में बताया गया।
(ध्यान दीजिए ‘तथ्यात्मक’ रजिस्टर कितने ढृढ़ निश्चय से कैसे बात
करता है– पहली मीटिंग जेएनयू में हुई थी और बाद
में आईसी और आईएचसी में। कोष्ठक में यह
कहा जाना चाहिए कि जो घटनाओं पर निगाह रख रहा था उसे पता होना चाहिए था कि लेखक
उदय प्रकाश ने वास्तव में अपना पुरस्कार विरोध की एक नितान्त निजी कार्रवाई के रूप
में लौटाया था और लम्बे समय तक किसी और ने ऐसा नहीं किया, यहाँ दादरी एक मकसद बन गया, जिसने बहुतों को इसी तरह का
प्रतीकात्मक विरोध करने के बारे में सोचने के लिए प्रेरीत किया।)
4– उन्हें
समझाया गया कि उन्हें पुरस्कार, सहूलियत
कैसे मिले और मोदी का खतरा व कोष की कमी (वाक्य अधूरा और गलत)। बाद में नयनतारा
सहगल को लाया गया और विरोध का नेतृत्व करने के लिए तैयार किया गया
5– नयनतारा
सहगल नेहरू से सम्बन्ध के चलते परिवर्तन बिन्दु थी और सबको मीडिया, कांग्रेस और अन्तरराष्ट्रीय अवसर के
पूर्ण समर्थन का भरोसा दिलाया गया था।
6– वैश्विक
स्तर पर 150 लेखक और पत्रकार पुरस्कार वापसी पर लेख लिखने और मोदी के शासन में
भारत की छवि ‘‘असहिष्णु’’ के रूप में बनाने के लिए किराये पर
लिये गये थे।
7– पाक–अमरीका–सऊदी, फोर्ड फाउन्डेसन और ग्रीन पीस को बढ़ावा
देने और लाभ पहुँचाने के लिए एक अन्तरराष्ट्रीय पीआर फर्म किराये पर ली गयी और फीस
व फायदों के रूप में लाखों खर्च किये गये।
(यह एक बार फिर जोड़–गाँठवाले तथ्यों का प्रभाव छोड़ता है
क्योंकि इसमें फोर्ड फाउन्डेसन और ग्रीन पीस को भी शामिल कर लिया गया है– लेकिन आश्चर्यजनक ढंग से पीआर फर्म का
नाम नहीं बताया गया है और उम्मीद की गयी है कि इस पर कोई ध्यान नहीं देगा।)
8– लेखक, कवि, नारायणमूर्ति,
रघुराम राजन, फिल्म निर्माता––– इन सभी ने एक ही शब्द– का इस्तेमाल किया है जो हर बयान में
समान है ‘‘असहिष्णु’’। यह कैसे सम्भव है कि सभी एक ही शब्द का इस्तेमाल करें यहाँ तक कि एक
ही असुरक्षित टिप्पणी करके पकड़ में आये?
(अब यह उत्कृष्ट विश्लेषण है! यह कैसे
हो सकता है कि सभी ने एक ही शब्द इस्तेमाल किया असहिष्णुता!। इसका केवल एक ही अर्थ
है कि उन्हें एक ही स्रोत से धन दिया गया था– हालाँकि
स्रोत निश्चय ही पागल था जो उन्हें नेट सर्च करकेे कुछ समानार्थी शब्द ढूँढने के
लिए नहीं कहा हो सकता है पकड़ में आ जाना चाहता था। कौन जानता है?)
ख्इसके बाद वैश्विक षडयंत्र के वास्तव
मे जटिल पहलू पर आते हैं। कुछ शरीर मनोविज्ञानी/मनोविश्लेषकों को इस काल्पनिक
दृक्ष्य लेख का ‘वास्तविक अर्थ’ समझने में निश्चय ही हमारी मद्द करनी
पडे़गी।,
9– बिहार
चुनाव केवल बोनस है। शुरुआत बिन्दु अमरीका–पाक–साउदी (यूपीएस) सुरक्षा परिषद में
स्थायी सीट की भारत की कोशिश को रोकना चाहते है। अचम्भे की बात नहीं, कांग्रेस भी इसमें हिस्सेदार है।
पश्चिम में ताजा रिपोर्टों के अनुसार भी, अमरीका
भी अपने लोगों के हिन्दुत्व की ओर जाने से चिन्तित है और वेटिकन भी ईसाइयत के
भविष्य को लेकर चिन्तित है। यह स्पष्ट करता है कि मोदी की यात्रा के दौरान पोप
अमरीका में क्यों था। निश्चय ही वह संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत और पाकिस्तान
विकास योजना को सुनने नहीं आया था।
10– यूपीएस
ने भारत को मोदी के शासन में दूसरे धर्मों के लिए ‘असहिष्णु’, हिन्दू आतंक को बढ़ावा देनेवाले एक देश
के रूप में दिखाने के लिए ‘‘मानवाधिकारों’’ के चक्रव्यूह का खाका बनाया है। पीआर
फर्म (भारत सरकार के गुप्तचर स्रोतों के बावजूद भी पीआर फर्म का नाम अभी तक नहीं
आया) और प्रेसटिट्यूट (साधुवाद! यह वही शब्द है जिसे वी के सिंह ने प्रेस के लिए
इस्तेमाल किया था, उसी तरह जैसा एनडीटीवी रिपोर्टर भैरवी
सिंह को अपमानित करने के लिए जुलूस में शामिल लोगोें ने किया था) सभी इसे वैश्विक
प्रेस के माध्यम से विश्व में ले जाना चाहते हैं। सऊदी अरब, यूएनएचआर आयोग का अध्यक्ष है, पाकिस्तान दोस्त है और बहुत जल्दी ही
पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत में मानवाधिकार हनन पर सवाल उठाने जा रहा है। इस पर
नजर रखिये, यह आ रहा है।
11– यह
रिपोर्ट मोदी सरकार के पास है और मोदी का यूएई का दौरा इसकी काट करने के लिए तुरूप
का पत्ता था। भारत सरकार की जाँच में, यह
सामने आ चुका है कि पीआर फर्म ने बहुत से प्रेसटिट्यूटों, प्रिंट, टीवी, लेखकों, फिल्म संघों और निर्माताओं की आर्थिक मद्द की।
ख्विवरण का अन्तिम पैरा बिहार चुनाव
परिणामों के सम्भावित राजनीतिक परिणाम को बताता है– क्या हो सकता है अगर भाजपा हारती है और तब क्या हो सकता है अगर जीतनी
है– और यह धमकी कि अगर भाजपा जीतती है तब
बिहार चुनाव परिणामों के बाद, भारत
सरकार पुरस्कार वापसी गैंग के इन दृष्ट तत्त्वों के साथ पूरे जोर–शोर से निपटेगी।,
12– आर्थिक
मदद की शर्त है–– ‘‘5 नवम्बर तक दादरी और पुरस्कार वापसी
इत्यादि मुद्दों को हर कीमत पर जीवित रखना और ऐसी घटनाओं को ढूँढकर निकालना जिन्हें
थोड़े दिनांे के लिए इस घटना से जोड़ा जा सकता है।’’
13– अगर
भाजपा बिहार चुनाव में हारती है तो सरकार को संयुक्त राष्ट्र समेत अन्तरराष्ट्रीय
मंचों पर एक ऐसी सरकार के रूप में पेश किया जायेगा जो मानवाधिकारों को कुचल रही है।
यह बाकी शासन काल कि लिए मेक इन इंडिया और एफडीआई निवेश को रोककर मोदी विकास को
पटरी से उतार देगा। धारा 370 को हटाना और समान नागरिक संहिता भी ठंडे बस्ते में
चले जायेंगे।
14– अगर
भाजपा बिहार चुनाव जीतती है तब देशव्यापी बड़े दंगों की योजना बनायी गयी है ताकि
भारत सरकार इसमें 2019 तक उलझ जाये और मोदी को एक ऐसे अयोग्य प्रधानमंत्री के रूप
में प्रचारित कर दे जिसने देश को दंगे और अस्थिरता में झोंक दिया। हार्दिक पटेल के
रूप में एक अच्छी कोशिश की थी लेकिन सोशल मीडिया और भारत सरकार ने इसे फुस्स कर
दिया।
15– बिहार
चुनाव के बाद जैसा कि अमित शाह ने अर्णब को दिये इन्टरव्यू में इशारा किया था, भारत सरकार दुष्ट और देशद्रोही षडयंत्र
का प्रतिकार करके इसकी पूरी तरह गर्दन दबोचेगी और पुरस्कार वापसी गिरोह की पूरी
जाँच करेगी।
ख्अन्तिम बिन्दु, बिन्दु 16 यह उद्घाटित करनेवाला है कि
हिन्दू दक्षिणपन्थ वास्तव में कितना असुरक्षित महसूस कर रहा है कि इसे अपने
समर्थकों के लिए यह अपील जारी करनी पड़ती है।,
16– सभी
मोदी सरकार समर्थकों से गुजारिश है, कृपया
जाल में न फँसे। मीडिया, राजनीतिज्ञों, सेक्यूलर लोगों का भंडाफोड़ करें, लेकिन तथ्यों के साथ। फोटोशॉप तस्वीरों
की जाँच करें। आप सभी मोदी सरकार की रक्षा की पहली पंक्ति हैं। आपने उन्हें 5
सालों के लिए चुना है। उन पर भरोसा करें। पृथ्वी पर उनका काम सबसे कठिन है।
ध्यान दें कि अब भी ‘‘मीडिया’’ और ‘‘सेक्यूलरों’’ का तथ्यों के साथ ‘‘भंडाफोड’’ करने की अपील की गयी है। इस पर भी ध्यान दें कि आम
आदमियों को एक बार फिर अपने नेता की रक्षा के लिए युद्ध में घसीटा गया है– आप
मोदी सरकार की रक्षा की पहली कतार हो। पैदल सिपाहियों को यह एहसास करवाया जा रहा
है कि वह दुर्बल नेता के अपराजेय सैनिक हैं, जो अब अन्तरराष्ट्रीय षड्यंत्र का ‘शिकार’ है और
जहाँ सबके सब आन्तरिक शत्रु उसके विदेशी शत्रुओं के साथ मिल गये हैं!–आदित्य निगम
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