हमारे देश के शासकों ने देशी-विदेशी पूँजीपतियों का नमक खाया है। अब वे
पूरे देश को उनका नमक खिलायेंगे।
सरकार ने 17 नवम्बर 2005 को एक अधिसूचना जारी करके देश में साधारण नमक
बेचने और खाने पर रोक लगा दी है। इसका सीधा असर उन करोड़ों गरीब लोगों पर पड़ेगा जो
अब तक सस्ते साधारण नमक पर गुजारा कर रहे थे। दूसरी ओर, महँगा आयोडीन नमक बनाने और
बेचने वाली देशी-विदेशी कम्पनियों के लिए यह एक अनमोल सरकारी तोहफा है जो पिछले दो
वर्षों से इसकी बिक्री में लगातार गिरावट से परेशान थे। यही नहीं, साधारण नमक का
2,000 करोड़ रुपये सालाना का कारोबार भी अब उन्हीं कम्पनियों की झोली में आ जायेगा
और वह भी कई गुना बड़ा होकर क्योंकि आयोडीन नमक की कीमत साधारण नमक से कई गुना अधिक
है।
अपने नये माल के लिए बाजार हथियाने या ग्राहकों पर उसे जबरन थोपने के
लिए पूँजीपति तरह-तरह के हथकण्डे अपनाते हैं। वे अपने जरखरीद विद्वानों से फर्जी शोधपत्र
लिखवाकर अपने प्रचार माध्यमों के जरिये लोगों के दिमाग में बैठा देते हैं कि फलाँ-फलाँ
चीज का सेवन करना उनकी जिन्दगी और मौत का सवाल है। राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं
और स्वंयसेवी संगठनों के धन्धेबाजों द्वारा अभियान चलवाये जाते हैं ताकि समाज में ऐसा
माहौल बन जाये कि उनकी मनगढ़न्त बातों को जनता अपने लिए निहायत जरूरी और सही मानकर
अपना ले। सरकार द्वारा अपने हित में फैसला करवाना इसका अगला चरण होता है क्योंकि तब
लोगों को वह बिल्कुल उचित और जनहित में लिया गया फैसला लगने लगता है। कल्पना करें कि
आज से 20 साल पहले यदि सरकार ने साधारण नमक पर प्रतिबन्ध लगाने का फैसला लिया होता
तो जनता में इसकी क्या प्रतिक्रिया होती? सरकार ने 1994 में जब एक विदेशी कम्पनी कारगिल
कार्पोरेशन को गुजरात में नमक बनाने की अनुमति दी थी तब देशभर में उसके खिलाफ आवाज
उठी थी और अन्ततः उस कम्पनी को भागना पड़ा था। लेकिन नमक से जुड़े इस जनविरोधी फैसले
के कई महीने बाद भी इस मुद्दे को लेकर कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं दिखाई दे रही है क्योंकि
पढ़े-लिखे लोगों पर पूँजीवादी मीडिया के प्रचार का काफी असर है।
बाजार पर कब्जा जमाने के लिए अफवाहें फैलाना भी पूँजीपतियों का पुराना
खेल है। अभी कुछ ही साल पहले की बात है जब देशभर में यह अफवाह फैलाया गयी थी कि सरसों
का तेल खाने से ड्रॉप्सी नामक बीमारी होती है। खासतौर पर शहरी पढ़े-लिखे लोगों ने डर
के मारे सरसों का तेल खाना छोड़कर उसकी जगह रिफाइण्ड तेल खाना शुरू कर दिया। इस अफवाह
के पीछे विदेशों से रिफाइण्ड तेल की भारी मात्रा में खरीद और देशी सरसों तेल के मुकाबले
उसकी बिक्री न होना था। जब सरसों पैदा करने वाले किसान और तेलघानी के कारोबार में लगे
लोग भाव गिरने से बर्बाद हो गये और विदेशी रिफाइण्ड तेल ने बाजार में जड़ जमा ली तो
ड्रॉप्सी का भूत न जाने कहाँ गायब हो गया।
आयोडीन नमक के धन्धे में लगे पूँजीपति भी अपने कुतर्कों पर वैज्ञानिक
शोध की कलई चढ़ाकर लोगों को काफी समय से बरगलाते आ रहे हैं। सरकारी तन्त्र और मीडिया
से जुड़े कुछ लोग भी उनके इस प्रपंच में शामिल हैं। वर्षों से यह प्रचारित किया जा
रहा है कि आयोडीन की कमी से थायराइड होने की सम्भावना होती है। कई देशों में जहाँ पहले
आयोडीन नमक खाना अनिवार्य किया गया था वहाँ बाद में इस फैसले को पलटना पड़ा क्योंकि
आयोडीन की अधिकता से लोगों को नयी-नयी बीमारियाँ होने लगीं। हमारे देश के कुछ इलाकों
में भी, जहाँ आयोडीन नमक का उपयोग जरूरी बनाया गया, वहाँ थायराइड के मामले पहले से
भी अधिक पाये गये। आयोडीन की कमी दूर करने के नाम पर एक अरब से भी अधिक लोगों को लगातार,
गैरजरूरी रूप से और जबरन आयोडीन नमक खिलाने का भला क्या तुक है। आयोडीन की कमी की जाँच
करके यदि जरूरी हो तो उचित मात्रा में उसका सेवन करना ही बचाव का सही तरीका हो सकता
है, न कि अन्धाधुन्ध आयोडीन खा-खाकर नये रोगों को बुलावा देना। लेकिन बीमारी आयोडीन
की कमी तो है नहीं, असली बीमारी है मुनापफे की कमी जिससे पूँजीपति हमेशा पीड़ित रहते
हैं। सरकार को भी दरअसल उन्हीं की चिन्ता है। जनता के स्वास्थ्य की उसे कितनी परवाह
है यह तो इनसेपफेलाइटिस, डेंगू, रतौंधी और गैस्ट्रो जैसी महामारियों के प्रति सरकारी
रवैये को देखने से साफ जाहिर होता है।
हमारे देश के शासक आज अपने अंग्रेज पुरखों के नक्शेकदम पर चल रहे हैं।
उन्होंने भी 1930 में नमक कानून लागू किया था जिसके खिलाफ गाँधी जी ने डांडी यात्रा
शुरू की थी और नमक-कानून तोड़ा था। कैसा मजाक है कि पिछले वर्ष डांडी यात्रा की 75वीं
सालगिरह उन्हीं लोगों ने बड़े धूमधाम से मनायी जिन्होंने जनता को देशी नमक से वंचित
करने में अंग्रेजों को भी मात दे दी। कम से कम अंग्रेजों ने साधारण नमक खाने पर प्रतिबन्ध
नहीं लगाया था।
नमक के विदेशीकरण की कार्रवाई राव-मनमोहन की सरकार ने ’90 के दशक में
ही शुरू की थी जब ‘‘थायरायड से लड़ो अभियान’’ चलाकर 641 कम्पनियों को आयोडीन नमक बनाने
का लाइसेंस दिया था। सरकार ने बहुराष्ट्रीय कम्पनी कारगिल को उसी दौरान गुजरात के सतसैदा
द्वीप पर नमक बनाने की इजाजत दी थी, जहाँ किसी भी तरह का उद्योग लगाना पहले वर्जित
था। बाद में जनता के प्रबल प्रतिरोध के चलते उस कम्पनी को पीछे हटना पड़ा था।
देशी-विदेशी पूँजीपति अपनी घिनौनी साजिशों के जरिये हमारी जिन्दगी की
बेहद जरूरी चीजें भी हमसे एक-एक कर छीनते जा रहे हैं। हमारी उदासीनता और निष्क्रियता
से उनका मनोबल लगातार बढ़ता जा रहा है। साधारण देशी नमक पर प्रतिबन्ध लगाया जाना इसी
बात का प्रमाण है।
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