शनिवार, 9 मई 2015

व्यापम घोटाले का सच

मध्य प्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव के बेटे शैलेष की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गयी। स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने शैलेष पर संविदा शिक्षक पद के 10 आवेदकों से पैसे लेकर पास कराने का आरोप लगाया था। पिछले महीने इस मामले में एसटीएफ ने शैलेष से पूछताछ के लिए राजभवन को नोटिस भेजा था। एसटीएफ से नोटिस जारी होने के बाद से ही राज्यपाल की हालत खराब होने लगी थी। लेकिन इससे पहले कि पूछताक्ष हो पाती, शैलेष की मौत कई बड़े सवालों को जन्म देती है। परिवार वालों ने मौत का कारण ब्रेन हैमरेज बताया। राज्यपाल परिवार ने मौत के कारण को छिपाने के लिए पोस्टमॉर्टम से मना कर दिया। इस बात से शक है कि कहीं न कहीं शैलेष भी व्यापम घोटाले से सीधे जुड़े थे।

व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) मध्य प्रदेश में व्यावसायिक परीक्षाओं का आयोजन कराता है। व्यापम भर्ती घोटाला इसी से जुड़ा हुआ है। मेडिकल और इंजीनियरिंग जैसी प्रतियोगी प्रवेश परीक्षाओं से लेकर सरकारी नौकरियों के लिए होने वाली प्रवेश परीक्षाओं में धांधली की पुष्टि हुई है। एसटीएफ की जाँच में संविदा आध्यापक, पुलिस आरक्षक, सब इंस्पेक्टर, खाद्य निरीक्षक, दुग्ध संघ भर्ती और वन रक्षक भर्ती परीक्षाओं में घोटाले का मामला सामने आया है। एसटीएफ की छानबीन से पता चला कि यह घोटाला इम्तहान से लेकर नतीजों के बीच बेरोकटोक जारी था। सिफारिश वाले परीक्षार्थियों से कहा जाता था कि अगर कोई प्रश्न नहीं आता तो उसे खाली छोड़ दो जिसे परीक्षा के बाद भर दिया जाता था। इतना ही नहीं कई लड़को के स्थान पर दूसरे मेधावी छात्र या अध्यापक से ही परीक्षा दिला दी जाती थी। इस फर्जीवाड़े में सबका हिस्सा तय होता था। कालेजों के प्रधानाचार्य, अध्यापक और ऊपर के आला अधिकारी भी इस घोटाले में सम्मलित थे।   

व्यापम घोटाले को लेकर मध्य प्रदेश में कई खुलासे सामने आये। इस घोटाले न केवल छोटी मछलियाँ बल्कि बड़ी मछलियों से लेकर मगरमच्छ तक शामिल हैं। एसटीएफ ने अपनी चार्जशीट में मध्यप्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव और उनके बेटे शैलेष यादव का उल्लेख किया है। कई साल पहले रामनरेश यादव उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री का पद हथियाने के लिए दलबदल और तोड़फोड़ की राजनीति में लिप्त थे। रामनरेश को 2011 में केंद्र की यूपीए सरकार ने मध्यप्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया था। जहाँ तक घोटाले की व्यापकता का सवाल है, इस घोटाले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह समेत तत्कालीन परिवहन मंत्री के निजी सचिव, जनअभियान परिषद् के अध्यक्ष, बीजेपी के दो सांसद, दो मंत्री और 25 से 30 आईएएस और 20 आईपीएस अफसरों के नाम भी शामिल है। स्वघोषित राष्ट्रभक्त और हिन्दुत्ववादी संगठन आरएसएस के कपड़े पर भी इस घोटाले के काले धब्बे बहुत गहरे हंै। आरएसएस पूर्व संघ संचालक के एस सुदर्शन के सेवक मिहिर कुमार और मौजूदा संघ संचालक मोहन भागवत के पर्सनल सेवकऔर उनके कई रिश्तेदारों ने भी अपनेअपने कैंडिडेट को परीक्षा में पास करवाने की सिफारिश की थी। आईपीएस अधिकारी आर के शिवहरे को भी एसटीएफ द्वारा गिरफ्तार किया गया। उन पर आरोप है कि उन्होंने अपनी बेटी नेहा को प्रीपीजी मेडिकल में फर्जी तरीके से भर्ती कराया था।

पिछले सालों व्यापम ने सरकारी पदों पर भर्ती और विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित करायी थी। जिसमे 1 लाख 47 हजार अभ्यर्थी सम्मिलित हुए थे। जांच के बाद जिनमें से 1000 अभ्यर्थी फर्जी पाये गये। विधानसभा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने सरकारी नौकरियों में हुए 1000 भर्ती में फर्जीवाड़े को खुद स्वीकार किया था। व्यापम घोटाले में राज्यपाल, मुख्यमंत्री, आईएएस, आईपीएस के साथ ही साथ इनके परिवारों और रिश्तेदारों ने अपनी पहँुच का बख़ूबी फायदा उठाया था। अथाह मेहनत और लगन से पढ़ने वाले विद्यार्थी और सरकारी नौकरियों मे जान की बाजी लगाने वाले नौजवानों को काबिलियत के बावजूद भी दरदर कि ठोकर खाने को मजबूर होना पड़ा, क्योंकि सभी प्रवेश परीक्षाओं के रिजल्ट पहले से ही तय था। सरकारी नौकरियों के आवेदन मे चयनित लोगांे की लिस्ट पहले से तैयार कर दी गयी। इसका मतलब योग्यता का आधार काबिलियत नहीं रिश्वत की मोटी रकम बन गयी। व्यापम का कार्यालय इसका मुख्य केंद्र था, जहाँ रिशवत लेकर नाकाबिल लोगों को पिछले दरवाजे से प्रतियोगी परक्षाओं मे प्रवेश और सरकारी नौकरियाँ दी गयी थी।            

व्यापम घोटाले की चार्जशीट एक एक्सेल शीट पर आधारित है। इस मामले की जाँच में एसटीएफ ने 101 लोगो पर आरोप तय किया था। जिसमंे से 14 बड़े नाम तथा 87 अभ्यर्थी सम्मिलित किये गये थे। कांग्रेस के दावों के अनुसार ऑरिजिनल एक्सेल शीट में कुल 131 नाम थे। किन्तु एक्सेल शीट मंे हेरफेर करके कई जगहों पर मुख्यमंत्री का नाम बदलकर मंत्री, राजभवन, उमा भारती और एमएस लिख दिया गया। यही नहीं एक्सेल शीट में और भी बहुत बदलाव किए गए। ओरिजिनल एक्सेल शीट मे 48 जगहों पर सीएम लिखा था। वहीं नयी शीट मे उनके नाम का उल्लेख कहीं नहीं मिलता। डुप्लिकेट शीट में 21 स्थानों पर सीएम के नाम की जगह मिनिस्टर लिख दिया गया है। इससे साफ पता चलता है की कहीं न कहीं एसटीएफ ने मुख्यमंत्री के दबाव मे आकर एक्सेल शीटों मे बदलाव किए थे। एसटीएफ, मुख्यमंत्री के अधीन होती है। एसटीएफ के मुखिया की सीआर मुख्यमंत्री ही लिखते हैं। इससे तो जगजाहिर है कि एसटीएफ पर पूरी तरह से  नियंत्रण प्रदेश के मुख्यमंत्री के हाथ मे है। ऐसे मे मुख्यमंत्री के खिलाफ निष्पक्ष जांच की आशा भी कैसे की जा सकती है। इससे साफ है कि एसटीएफ अपने निर्णय लेने मे स्वतंत्र नहीं है। अभी तक एसटीएफ ने जो भी आरोप तय किए है। वो पूरी तरह से मध्य प्रदेश हाईकोट की कड़ी निगरानी मे सम्भव हो पाया है। वरना प्रदेश सरकार तो खुद को और घोटाले मे लिप्त अधिकारियों को बचाने मे ही लगी थी। अदालत की कड़ी निगरानी का ही सबब है कि एसटीएफ को मुख्यमंत्री के चहेते और आरएसएस के करीबी पूर्व तकनीकी शिक्षामंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा की गिरफ्तारी करनी पड़ी। लक्ष्मीकान्त को शिक्षक भर्ती के मामले मे गिरफ्तार किया गया। खनन मंत्री रहते हुये भी लक्ष्मीकांत का नाम खनन घोटाले मे सामने आया था। लेकिन मुख्यमंत्री और आरएसएस सम्बन्/ा के चलते खनन घोटाले से वे बहुत ही बेशर्मी से बचा लिए गये थे। इस बार जांच की लपटे जब मुख्यमंत्री के तक पहुँच गयी। तब जाकर लक्ष्मीकांत शर्मा की गिरफ्तारी सम्भव हो पायी।

मुख्यमंत्री ने खुद को बचाने के के लिये व्यापम के पूर्व सिस्टेम एनालिस्ट और इसके मुख्य आरोपी नितिन मोहिंद्रा के हार्डडिस्क और एक्सेल शीट मे फेरबदल करायी थी। इस मामले मे एसटीएफ की लपरवाहियों को देखा जाए तो इससे साफ पता चलता है कि एसटीएफ भी कहीं न कहीं सरकार के खास लोगों को बचाने मे ही लगी हुई है। मामले में ढिलाई दिखाते हुए एसटीएफ ने आरोपी मोहिंद्रा का लैपटाप और कम्प्यूटर को जब्त नहीं किया केवल हार्डडिस्क ही जब्त की गयी थी। हार्डडिस्क जब्त करने के 11दिन बाद हार्डडिस्क को रिकवर किया गया। जो लापरवाही को साफतौर पर दिखाता है। हार्डडिस्क की जांच के लिए केंद्र से मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला हैदराबाद या फिर चंडीगढ़ न भेजकर हार्डडिस्क जांच केलिए गुजरात भेजी गयी। देश का सबसे बड़ा भर्ती घोटाले के बावजूद व्यापम के सर्वर को ठप नहीं किया किया गया। व्यापम के अ/िाकारियों ने स्वीकार किया कि इस मामले मे मोहिंद्रा से जब्त हार्डडिस्क नकली थी। इसे आँकड़ों मे फेरबदल करके दुबारा से तैयार किया गया था।

एसटीएफ भी आरोपियों को पूरी तरह से बचाने मे लिप्ल है। एक तरफ जहां एक्सेल शीट के आधार पर कुछ अधिकारी गिरफ्तार कर लिए गये। दूसरे उन्ही सबूतों के आधार पर कुछ चयनित लोगांे को हवा मंे जहर घोलने के लिए छोड़ दिया गया। एसटीएफ ने अभी तक इससे जुड़े आरोपियों के कॉल डिटेल्स तक बारीकी से नहीं जाँचें। कांग्रेस ने फिर से फोन नम्बर, आईएमईआई नम्बर की लिस्ट सबूत के तौर पर एसटीएफ को सौपी थी। किन्तु एसटीएफ ने इसे भी अन्य सबूतों की तरह से दबा दिया। एसटीएफ के जांच प्रकरण को देख कर लगता है कि मामला सुलझाने के बजाए उल्टे और उलझता जा रहा है। मामले के पेचीदेपन को देखते हुए, सीबीआई जांच की मांग कई बार उठाई गयी। किन्तु मुख्यमंत्री ने बड़ी ही लच्क्षेदार भाषा में यह कह कर इस मुद्दे को टाल दिया कि एसटीएफ भी कोर्ट के आदेश पर ही इस मामले की जांच कर रही है। इस मामले में सीबीआई जांच की जरूरत नहीं है। अगर सीबीआई जांच कर भी दे तो किसे सजा मिलने वाली है ? आज तक किसी नेता को भ्रष्टाचार के मामले में सजा हुई है ?

अब भाजपा की सरकारें भी भ्रष्टाचार के मामले में कांग्रेस का मुँह मार रही हैं। दरअसल भ्रष्टाचार को  किसी चुनावी पार्टी के अपराध के रूप में समझना ठीक नहीं है क्योंकि पूँजीवादी व्यवस्था ऐसी है कि इस काजल की कोठरी में कितनो ही सयानो जाये, एक बूँद कालिख की लागिहै पे जैहे लागि। पूँजीवादी व्यवस्था में भ्रष्टाचार ही शिष्टाचार होता है। अलगअलग पार्टियाँ तो बस इस व्यवस्था के मुखौटे हैं।  पूँजीवादी व्यवस्था किसानोंमजदूरों के शोषण पर फूलतीफलती है। इसकी जड़ में भ्रष्टाचार का रोग लग चुका है। वहीं से इसे खाद और पानी मिलता है। इस व्यवस्था के रहते भ्रष्टाचार पर काबू पाना असम्भव है। भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए इसकी जड़ में मट्ठा डालना होगा।
अनुराग

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