हमारे देश के शासक वर्ग, उनके समर्थक अर्थशास्त्री और मीडिया अक्सर यह दावा करते हैं कि भारत 2020 तक आर्थिक महाशक्ति बन
जायेगा। इसके लिए वे ऊँची आर्थिक विकास दर, भारी-भरकम विदेशी मुद्रा भण्डार और बढ़ते विदेशी निवेश का बखान करते हैं।
जनता को आर्थिक
महाशक्ति की अफीम पिलानेवाले इन कड़वी सच्चाइयों से मुँह चुराते हैं कि देश की लगभग 84 करोड़
जनता 20 रुपये रोज पर गुजारा करती है, पिछले 10 वर्षों में डेढ़ लाख से
ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है। हर साल 5 लाख लोग टी.बी. से मर जाते हैं और 46 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। जिस देश की 80 फीसदी जतना भूख, बीमारी और कंगाली के नरक में पड़ी हो, उसे महाशक्ति बनाने की बात करने
का भला क्या मतलब है? महाशक्ति बनने की यह खुशफहमी उस साजिशाना और शातिराना रिपोर्ट पर आधारित है जिसे
सी.आई.ए. की थिंक टैंक राष्ट्रीय गुप्तचर परिषद्
ने गढ़ा है। ‘दुनिया के भविष्य की योजना’ नामक इस रिपोर्ट के अनुसार 2020 तक भारत और चीन एक बड़ी वैश्विक ताकत के रूप में उभरेंगे। वे दुनिया के सामने चुनौती पेश करेंगे और
अमरीका को भी उनकी चुनौतियों का सामना करना
पड़ेगा। इसी रिपोर्ट के आधार पर भारतीय
मीडिया जनता
में सुखबोध जगाने, उन्हें झूठे सपने दिखाने और जन-मानस
की सोच को प्रभावित करने का प्रयास कर रहा
है। वास्तव में ऐसी रिपोर्टों का मकसद
असली मुद्दों
से जनता का ध्यान हटाना और उसमें भ्रम फैलाना होता है। लेकिन इनका मकसद इससे कहीं ज्यादा होता है। अमरीका ऐसी बातों को
क्यों हवा देता है?