(वर्षों पहले अमरीका के मार्क्सवादी विचारक ऐलन वुड्स शावेज से मिलने वेनेजुएला गए। लौटकर उन्होंने अपने इस अनुभव को एक लेख का विषय बनाया। कई मामलों में हम ऐलन वुड्स की बातों से असहमत हो सकते हैं लेकिन यह लेख अब ऐतिहासिक दस्तावेज बन चुका है जिससे न केवल शावेज के करिश्माई व्यक्तित्व का पता चलता है बल्कि वेनेजुएला के समाज की भी एक झलक मिलाती है। इस शानदार लेख का अनुवाद यहाँ दिया जा रहा है।)
-ऐलन वुड्स (लन्दन, 29 अप्रैल, 2004)
जैसा कि मार्क्सिस्ट डॉट कॉम के पाठक पहले से ही जानते होंगे, मैं पिछले सप्ताह वेनेजुएला की क्रान्ति के समर्थन में आयोजित द्वितीय अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन में शरीक होने के लिए काराकास गया था। यह सम्मेलन अप्रैल, 2002 में किये गये प्रतिक्रान्ति के प्रयासों को विफल किये जाने की दूसरी जयन्ती पर आयोजित किया गया था। व्यस्तता भरे इस एक सप्ताह के दौरान मैंने कई सभाओं को सम्बोधित किया जिनमें मुख्य रूप से बोलिवेरियाई आन्दोलन के कार्यकर्ताओं और वेनेजुएला की क्रान्ति के समर्थकों, मजदूरों और गरीब जनता के बीच मैंने मार्क्सवाद का पक्ष प्रस्तुत किया। मैं 12 अप्रैल की विशाल रैली में शामिल हुआ, जहाँ मुझे लोगों की उस क्रान्तिकारी सरगर्मी को देखने का प्रत्यक्ष मौका मिला जो जनता को प्रेरणा देती है और जिसने प्रतिक्रान्ति को उसी जगह रोक देने में उन्हें समर्थ बनाया था।
मुझे बोल्वेरियाई गणतन्त्र के राष्ट्रपति ह्यूगो शावेज से मिलने और बात करने का अवसर भी मिला। एक लेखक और मार्क्सवादी इतिहासकार होने के नाते मैं इतिहास बनाने वाले पुरुषों और स्त्रियों के बारे में तो लिखता ही रहता हूँ लेकिन ऐतिहासिक प्रक्रिया के किसी नायक को इतने करीब से देखने, उससे सवाल पूछने और केवल अखबारी रिर्पोटों के आधार पर ही नहीं बल्कि व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर उसके बारे में एक राय बनाने का मौका रोज-रोज नहीं मिलता।
मैं अपने विषय पर बात शुरू करने के पहले कुछ बातें स्पष्ट करना चाहूँगा। मैं वेनेजुएला की क्रान्ति को एक बाहरी दर्शक की नजर से नहीं देखता और एक चाटुकार के नजरिये से तो कतई नहीं। मैं उसे एक क्रान्तिकारी की नजर से देखता हूँ। चाटुकारिता क्रान्ति की दुश्मन है। क्रान्तियों के लिए सर्वोपरि जरूरत है सच्चाई को जानना। ‘‘क्रान्तिकारी पर्यटन’’ की परिघटना से मुझे सख्त घृणा है खास करके वेनेजुएला के मामले में इसके लिए कोई गुंजाइश नहीं है क्योंकि यहाँ क्रान्ति खतरों से घिरी हुई है। जो लोग ऐसे मूर्खतापूर्ण भाषण देते रहते हैं जिनमें बोलिवेरियाई क्रान्ति के चमत्कारों पर तो बराबर जोर दिया जाता है लेकिन उसके सामने आज भी मौजूद खतरों के सुविधाजनक ढंग से नजरन्दाज कर दिया जाता है, वे क्रान्ति के असली दोस्त नहीं हैं उन पर कोई भरोसा नहीं किया जा सकता।
मैं अपने विषय पर बात शुरू करने के पहले कुछ बातें स्पष्ट करना चाहूँगा। मैं वेनेजुएला की क्रान्ति को एक बाहरी दर्शक की नजर से नहीं देखता और एक चाटुकार के नजरिये से तो कतई नहीं। मैं उसे एक क्रान्तिकारी की नजर से देखता हूँ। चाटुकारिता क्रान्ति की दुश्मन है। क्रान्तियों के लिए सर्वोपरि जरूरत है सच्चाई को जानना। ‘‘क्रान्तिकारी पर्यटन’’ की परिघटना से मुझे सख्त घृणा है खास करके वेनेजुएला के मामले में इसके लिए कोई गुंजाइश नहीं है क्योंकि यहाँ क्रान्ति खतरों से घिरी हुई है। जो लोग ऐसे मूर्खतापूर्ण भाषण देते रहते हैं जिनमें बोलिवेरियाई क्रान्ति के चमत्कारों पर तो बराबर जोर दिया जाता है लेकिन उसके सामने आज भी मौजूद खतरों के सुविधाजनक ढंग से नजरन्दाज कर दिया जाता है, वे क्रान्ति के असली दोस्त नहीं हैं उन पर कोई भरोसा नहीं किया जा सकता।
किसी भी सफल क्रान्ति के कई; तथाकथित ‘दोस्त’ होते हैं । शहद की ओर जैसे मक्खियाँ आकर्षित होती हैं वैसे ही सत्ता के प्रति आकर्षित होने वाले वे मध्यवर्गीय तत्व, जो तब तक क्रान्ति का गुणगान करने के लिए तैयार रहते हैं जब तक वह सत्तासीन है लेकिन उसे दुश्मनों से बचाने के लिए कोई उपयोगी काम नहीं करते, जो उसका तख्ता पलट होने पर चन्द घड़ियाली आँसू बहाते हैं लेकिन दूसरे ही दिन से जिन्दगी के अगले कार्यक्रम को लागू करने में मगन हो जाते हैं। ऐसे ‘दोस्त’ दो टके के होते हैं। असली दोस्त वह नहीं है जो आपको हमेशा यह बताता रहे कि आप सही हैं असली दोस्त वह है जो आपसे सीधे नजर मिलाकर यह कहने में नहीं डरता कि आप गलत हैं।
वेनेजुएला की क्रान्ति के सबसे अच्छे दोस्त बल्कि एकमात्र वास्तविक दोस्त हैं दुनिया का मजदूर वर्ग और उसके सबसे सचेत प्रतिनिधि यानि मार्क्सवादी क्रान्तिकारी। यही वे लोग हैं जो वेनेजुएला की क्रान्ति को उसके दुश्मनों से बचाने के लिए जमीन-आसमान एक कर देंगे। लेकिन साथ-साथ क्रान्ति के ये सच्चे दोस्त, उसके ईमानदार और वफादार दोस्त, अपने मन की बात हमेशा निडर होकर कहेंगे। जहाँ हमें लगेगा कि सही रास्ता अपनाया जा रहा है, वहाँ हम प्रशंसा करेंगे और जहाँ हमें लगेगा कि गलतियाँ की जा रही हैं, वहाँ हम दोस्ताना मगर दृढ़ता से आलोचना रखेंगे। सच्चे क्रान्तिकारियों और अन्तरराष्ट्रवादियों से आखिर इससे भिन्न किस प्रकार के व्यवहार की उम्मीद की जानी चाहिए?
वेनेजुएला में मेरे हर भाषण के दौरान, जिसमें टी.वी. पर दिये गये साक्षात्कार भी शामिल हैं, मुझसे बार-बार यह पूछा गया कि वेनेजुएला की क्रान्ति के बारे में मेरी क्या राय है? मेरा जवाब इस प्रकार था ‘‘ आपकी क्रान्ति दुनिया के मजदूरों के लिए प्रेरणा का स्रोत है, आपने चमत्कारिक उपलब्धियाँ हासिल की हैं, हालाँकि इस क्रान्ति की संचालक शक्ति मजदूर वर्ग और जनसाधारण हैं और उसकी भावी सफलता का राज भी यही है फिर भी अभी यह क्रान्ति पूर्णता तक नहीं पहुँची है और पहुँच भी नहीं सकती, जब तक कि बैंकरों और पूँजीपतियों की आर्थिक सत्ता को पूरी तरह से नष्ट नहीं किया जाता, यह करने के लिए जनता को हथियारों से लैस करना होगा और हर स्तर पर उसे संगठित करने के लिए एक्शन कमेटियाँ गठित करनी होंगी। मजदूरों के अपने स्वतन्त्र संगठन होने चाहिए और हमें मार्क्सवादी क्रान्तिकारी प्रवृत्ति का निर्माण करना चाहिए।’’
मैंने जहाँ कहीं भी बात रखी, इन विचारों को हर जगह पूरे जोशो-खरोश के साथ स्वीकारा गया। अपने विचारों में किसी भी तरह का फेरबदल करने के लिए मुझ पर कहीं, कभी भी कोई दबाव नहीं डाला गया। हर स्तर पर लोगों ने मार्क्सवादी धारणाओं में काफी रुचि दिखायी। चारों तरफ फैलाये जा रहे घृणित झूठ और लांछनों (सी.आई.ए. की थोड़ी सी मदद से) के विपरीत क्रान्तिकारी वेनेजुएला में पूर्ण लोकतन्त्र है। पूँजीवादी विपक्ष, जो जनतन्त्र के खिलाफ सतत षड्यन्त्र करता रहता है, को भी अपने विचार रखने की उतनी ही आजादी है जितनी की मुझे। दरअसल उन्हें ज्यादा आजादी है क्योंकि सारे मुख्य टी.वी. चैनलों का मालिकाना उन्हीं के हाथों में है और ये चैनल निरन्तर प्रतिक्रान्तिकारी प्रचार उगलते रहते हैं, यहाँ तक कि वे लोगों को तख्ता-पलट करने के लिए खुले रूप से भड़काते भी रहते हैं।
क्रान्ति के दुश्मनों का यह दावा कि शावेज एक तानाशाह है, विडम्बनापूर्ण है। व्हाईट-हाउस के वर्तमान निसी को कभी भी बहुमत से चुना नहीं गया था। वह इस पद की सुख-सुविधा का लुत्फ सिपर्फ इसलिए उठा रहा है क्योंकि उसने तीन-तिकड़म करके चुनाव जीता था, इसके विपरीत ह्यूगो शावेज ने कुल छह सालों की कालावधि में दो चुनावों को बहुमत से जीता है और पाँच अन्य चुनावी प्रक्रियाओं द्वारा उसके कार्यक्रम की पुष्टि हुई है। शावेज ने एक नया संविधान पेश किया है जिसका नितान्त जनवादी चरित्र ही उसकी लाक्षणिक विशेषता है। मजेदार बात यह है कि यही संविधान लोगों को यह अधिकार देता है कि वे जनमत-संग्रह करके किसी भी ऐसी अलोकप्रिय सरकार को बर्खास्त कर सकते हैं। इसी का इस्तेमाल करके विपक्ष शावेज सरकार को गिराने के, असफल ही सही, प्रयास कर रहा है। यानि दोनों पक्ष उन्हीं कानूनों तथा उसी संविधान की गुहार लगा रहे हैं।
शुरू में अल्पतन्त्र शावेज सरकार को समझ नहीं पा रहा था। उन्हें लगा कि यह सरकार किसी भी अन्य सरकार की तरह ही होगी। किसी भी ऐसे देश की तरह जहाँ औपचारिक लोकतन्त्र कायम है, वेनेजुएला में भी चुनी हुई सरकारें दूसरे देशों की तरह ही ‘माल’ होंगी, यानि उन्हें खुले रूप से खरीदा-बेचा जा सकता होगा, सिर्फ ठीक-ठीक दाम तय करने की ही बात है। ह्यूगो शावेज को तो लोग जानते ही नहीं थे लेकिन सोचते थे कि आखिर वह एक भूतपूर्व सेना अधिकारी था और देर-सवेर मान ही जायेगा। सत्ताधारी वर्ग के लिए चुनावी प्रचार सभाओं में नेताओं द्वारा दियें गये भाषण कोई मायने नहीं रखते हैं। उन्हें कोई गम्भीरता से नहीं लेता।
ब्रिटेन की कंजरवेटिव पार्टी के एक नेता ने एक बार एक समाजवादी से कहा था, ‘‘तुम कभी जीत नहीं सकते क्योंकि हम हमेशा तुम्हारे नेताओं को खरीद लेंगे।’’ इसी सिद्धान्त को लागू करते हुए अल्पतन्त्र ने नयी सरकार के साथ एक समझौता करने का प्रयास किया। उन्होंने ह्यूगो शावेज के पक्ष में लिखा भी। वेनेजुएला की राजनीति के पुराने मार्गदर्शक सिद्धान्त के अनुसार उन्होंने सोचा कि किसी सौहार्दपूर्ण समझौते पर पहुँचा जा सकेगा जो निम्नलिखित बिन्दुओं पर आधारित होगा। ‘‘देखो इस देश में ऊपर की आमदनी बहुत ज्यादा है, यहाँ हम सब के लिए पर्याप्त माल है। इसलिए बहस करने की वास्तव में कोई जरूरत ही नहीं है। आइये हम दो सभ्य व्यक्तियों की तरह एक समझौता कर लें। आप इतना हिस्सा लीजिए और बाकी हम लेंगे।’’
लेकिन शासक वर्ग का दुर्भाग्य है कि हर कोई बिकाऊ नहीं होता। सरकार द्वारा नया संविधान पारित किये जाने के बावजूद अल्पतन्त्र निराश नहीं हुआ। नयी सरकार ने जो संविधान पारित किया है वह पूरे लातीन अमेरीका में सबसे ज्यादा जनवादी संविधान है और शायद पूरी दुनिया के पैमाने पर भी सबसे ज्यादा जनवादी हो। यह संविधान नस्ल, रंग या लिंगभेद किये बिना सबको समान अधिकार प्रदान करता है। यह स्वाभाविक था कि अल्पतन्त्र ने इसे गम्भीरता से नहीं लिया। आखिर, संविधान एक कागज के टुकड़े के अलावा और है ही क्या? अल्पतन्त्र का तर्क बिल्कुल त्रुटिहीन था और औपचारिक पूँजीवादी लोकतन्त्र के समस्त कानूनों और संविधानों की सच्चाई को दर्शाता था। वास्तव में गम्भीरता से लेने लायक होते ही नहीं। वे तो सिपर्फ बहुमत के ऊपर सम्पन्न अल्पमत के वर्चस्व को बदस्तूर कायम रखने के लिए और वस्तुस्थिति पर पर्दा डालने के लिए बनाये गये आभूषण हैं।
सत्ताधारी वर्ग-लोकतन्त्र, संसद, चुनाव, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता तथा ट्रेड यूनियनों को एक ऐसी अनिवार्य बुराई के रूप में देखता है जिसे तब तक बर्दाश्त किया जा सकता है जब तक यह बैंकों और इजारेदारियों की तानाशाही के लिए खतरा नहीं बनती। लेकिन जैसे ही लोकतन्त्र की इस मशीनरी को जनता द्वारा समाज में एक बुनियादी बदलाव लाने के लिए इस्तेमाल किया जाने लगता है, वैसे ही सत्ताधारीवर्ग का इसके प्रति रवैया बदल जाता हैं फिर भले ही सरकार भारी बहुमत से क्यों न चुनी गयी हो, जैसा कि वेनेजुएला में हुआ, वे उसे तानाशाही की संज्ञा देकर चीख-पुकार मचाने लगते हैं। जनवादी तरीके से चुनी गयी सरकार को परेशान करने, गुप्त रूप से उसे नुकसान पहुँचाने तथा उसकी जडं़े काटने के लिए वे अपने अर्थिक बल, राष्ट्र के आर्थिक जीवन में अपने दखल, प्रचार-प्रसार के साधनों पर और न्यायपालिका में अपने हस्तक्षेप तक का सहारा लेते हैं। यानि सरकार का तख्ता-पल्ट करने के लिए वे गैर-संसदीय तरीकों का इस्तेमाल करते हैं।
कोई अगर ये सोचता है कि एसी परिस्थितियों में संविधान के माध्यम से सरकार को बचाया जा सकता है तो यह भोलेपन की हद होगी। संविधान की गुहार लगाकर या संसद में भाषण देकर सत्ताधारी वर्ग के गैर-संसदीय क्रियाकलापों से निपटा नहीं जा सकता। उन्हें सिपर्फ जनता द्वारा की गयी गैर-संसदीय कार्रवाइयों द्वारा ही परास्त किया जा सकता हैं वेनेजुएला की क्रान्ति का अनुभव इस बात को सौ पफीसदी सही साबित करता है, क्यांेकि बहुमत को सारे अधिकार प्रदान करने वाले संविधान का समर्थन करना एक बात है और इन अधिकारों को सच्चाई में तब्दील करना बिल्कुल दूसरी बात है। बहुलांश आबादी के पक्ष में काम करने के लिए पहले अल्पतन्त्र के निहित स्वार्थांे से टकराना होगा। यह काम एक व्यापक संघर्ष की माँग करता है।
11अप्रैल का तख्ता-पलटः
जैसे ही अल्पतन्त्र को यह समझ में आया कि शावेज के साथ कोई समझौता मुमकिन नहीं है और उसे खरीदा नहीं जा सकता, वैसे ही उन्होंने उस पर हमला बोल दिया। अभिजात वर्ग ने अपनी ताकतों को संगठित करना और उनकी लामबन्दी करना शुरू कर दिया। प्रचार तन्त्र पर अपने नियन्त्रण को उन्होंने मध्यम वर्ग में उन्माद पैदा करने के लिए इस्तेमाल किया। चिली में साल्वादोर अलेन्दे की सरकार के खिलाफ कराई गयी ट्रक ड्राइवरों की हड़ताल का अनुकरण करते हुए, उसी तरह की प्रतिक्रियावादी हड़ताल करवाने के लिए उन्होंने सी.आई.ए. के जरिये कुछ भ्रष्ट ट्रेड यूनियन नेताओं को घूस दिलवायी। निवेशकों की एक हड़ताल के जरिये अरबों की सम्पत्ति मियामी के बैक खातों में पहुँचा दी गयी। वे 11 अप्रैल, 2002 के प्रतिक्रान्तिकारी तख्ता-पलट के लिए जमीन तैयार कर रहे थे।
यह बताने की जरूरत ही नहीं है कि इस षड़यन्त्र की लगाम वाशिंगटन के हाथों में थी। अमरीकी साम्राज्यवाद शावेज से इतनी नफरत क्यों करता है? वह बोलिवेरियाई क्रान्ति से इतना डरता क्यों है? अभी तक तो शावेज ने वेनेजुएला में स्थित बड़ी-बड़ी अमरीकी कम्पनियों की सम्पत्ति जब्त नहीं की है। अमरीका को की जा रही तेल की आपूर्ति पर भी अभी उसने प्रतिबन्ध नहीं लगाया है। अल्पतन्त्र की सम्पत्ति का राष्ट्रीयकरण भी उसने अभी नहीं किया है।
शावेज के प्रति वाशिंगटन के शत्रुतापूर्ण रवैये का एक कारण है। अमरीकी साम्राज्यवाद द्वारा थोपी जा रहीं बातों का उग्र विरोध करने का शावेज का दृढ़ संकल्प। वह शुरू से ही तेल की उफँची कीमत बनाये रखने का ठोस समर्थक रहा है। यह नीति मन्दी से बाहर आने के लिए जूझ रहे अमरीकी पूँजीवाद के हितों को नुकसान पहुँचाती है जो तेल की कीमतों में गिरावट चाहता है। शावेज सरकार के पहले जो सरकार काराकास में सत्ता में थी, उसे अपने हिसाब से मोड़ना वाशिंगटन के लिए आसान था। थोड़े से पैसे के लिए यह सरकार अमरीका के अनुकूल नीति बनाने के लिए तैयार हो जाती थी। हालाँकि वेनेजुएला की तेल कम्पनी पी.डी.वी.एस.ए. का औपचारिक तौर पर राष्ट्रीयकरण हो चुका था फिर भी यह भ्रष्ट नौकरशाहों के कब्जे में थी, जो उसे किसी भी अन्य पूँजीवादी उद्योग की तरह चलाते थे और जिनकी अमरीका की बड़ी तेल कम्पनियों के साथ कुछ ज्यादा ही साँठगाँठ थी।
लेकिन शावेज के प्रति अमरीकी साम्राज्यवाद की अमिट नफरत के वास्तविक कारणों को हमें कहीं और खोजना हो गा वर्तमान समय में मियेरा देल फ्रयूगो से लेकर रायो ग्राण्डे तक कोई भी ऐसा पूँजीवादी राष्ट्र नहीं मिलगा जिसमें स्थायित्व हो। पूरे लातीन अमरीकी महाद्वीप में क्रान्तिकारी संघर्षों की एक लहर उमड़ पड़ी है जो राजधानी वाशिंगटन में बैठे पूँजीवादी रणनीति बनाने वालों के दिलों में भविष्य की चिन्ता और खौफ पैदा कर रही है। दुनिया की निगाहें मध्यपूर्व पर गड़ी हुई हैं जो अमरीकी साम्राज्यवाद के लिए आर्थिक तथा सामरिक रूप से अत्यन्त महत्वपूर्ण इलाका है। लेकिन लातिन अमरीका को अमरीका का पिछवाड़ा समझा जाता है। दक्षिण में घटने वाली कोई भी घटना अमरीका को सीधे प्रभावित करती है।
ह्यूगो शावेज की बोलिवेरियाई क्रान्ति भी अमरीकी साम्राज्यवाद के लिए प्रत्यक्ष खतरा पेश कर रही है क्योंकि वह लातिन अमरीका के बाकी देशों की उत्पीड़ित जनता के लिए एक मिसाल पेश करती है। इसने लोगों को अपनी दीर्घकालीन शीत-निद्रा से जगाकर लड़ने के लिए प्रेनित किया है। इस क्रान्ति की व्यावहारिक ;ठोसद्ध उपलब्धियों की सूची कापफी प्रभावशाली है। इसके तहत मजदूरो और गरीबों के हित में कुछ गम्भीर सुधार किये गये हैं। लगभग 15 लाख लोगों को पढ़ना-लिखना सिखाया गया है। और लगभग 30 लाख लोगों को विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक योजनाओं में शामिल किया गया है। क्यूबा से आये डॉक्टरों को गाँवों में तथा शहरों की झुग्गी-झोपड़ियों में भेजा गया है जिससे ऐसे लगभग 1 करोड़ 20 लाख लोगों को इलाज की सुविधा प्राप्त हुई जिन्होंने कभी डॉक्टर का मुँह नहीं देखा था। 20 लाख हेक्टयेर जमीन किसानों को आवंटित की गयी है।
ये वास्तविक उपलब्धियाँ हैं लेकिन इस क्रान्ति की जो असली उपलब्धि है, वह इससे ज्यादा महत्वपूर्ण और अमूर्त है। उसे तौला नहीं जा सकता, नापा नहीं जा सकता और गिना भी नहीं जा सकता, लेकिन वही निर्णायक है। इस क्रान्ति ने जनसाधारण में मानवीय गरिमा की भावना जगायी है, उनमें न्याय की गहरी भावना और अपनी सत्ता का नया बोध पैदा किया है और एक नया आत्मविश्वास जगाया है। उन्हें इससे भविष्य के लिए एक नई उम्मीद मिली है। सत्ताधारी वर्ग और साम्राज्यवाद के हिसाब से ये सारी बातें एक घातक खतरे का प्रतिनिधित्व करती हैं।
वर्तमान समय में वर्ग-शक्तियों का सन्तुलन क्रान्ति के हित में है। शावेज की व्यक्तिगत लोकप्रियता को चुनौती देने वाला कोई नहीं है। चुनाव मेंु उसे 60 प्रतिशत से भी ज्यादा वोट मिलते हैं। लेकिन अगर हम उसका समर्थन करने वाली सभी ताकतों को ध्यान में रखें तो वास्तव में उसे बहुत व्यापक जनसमर्थन प्राप्त है। वेनेजुएला में जो कुछ भी जिन्दा है, सृजनशीन है और जिसमें जीवन स्पन्दित हो रहा है, वह क्रान्ति के साथ है। दूसरी ओर जो कुछ भी पतित, भ्रष्ट और सड़ा हुआ है, वह प्रतिक्रियावादी और दकियानूसी ताकतों के साथ है।
वेनेजुएला के लगभग 200 सालों के इतिहास में पहली बार जनता को यह महसूस हो रहा है कि सरकार ऐसे लोगों के हाथ में है जो उनके हितों की रक्षा करना चाहते हैं। अतीत में हमेशा ही सरकार एक परायी ताकत हुआ करती थी जो उनके खिलाफ खड़ी होती थी। वे उन पुरानी भ्रष्ट पार्टियों की वापसी नहीं चाहते।
‘रूसी क्रान्ति का इतिहास’ किताब में ट्राट्स्की समझाते हैं कि क्रान्ति ऐसी स्थिति को कहते हैं जिसमें लोग अपनी किस्मत को अपने हाथों में ले लेते हैं। आज वेनेजुएला में निश्चित तौर पर ऐसा ही हो रहा है। जनता का जागृत होना और राजनीति में उसकी सक्रिय भागीदारी वेनेजुएला की क्रान्ति का सबसे निर्णायक लक्षण है तथा उसकी कामयाबी का राज भी।
दो साल पहले जनता के स्वतःस्पफूर्त आन्दोलन ने प्रतिक्रान्ति को पराजित कर दिया। इसी घटना ने पूरी प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाया। लेकिन अब दो साल बाद लोगों की मनोदशा में कुछ नये बदलाव नजर आ रहे हैं। लोगों में निराशा और असन्तोष का भाव दिखायी दे रहा हैं उनकी आकांक्षाएँ पूरी नहीं हुई हैं। वे आगे बढ़ना चाहते हैं। वे प्रतिक्रान्तिकारी ताकतों का सामना करके उन्हें परास्त करना चाहते हैं और इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए लोग लगातार आगे बढ़ रहे हैं।
लेेकिन उफपर के तबकों में कुछ ऐसे लोग हैं जो यह सोचते हैं कि यह क्रान्ति हद से ज्यादा आगे बढ़ गयी है। ये वे लोग हैं जो एक तरफ तो जनता से डरते हैं और दूसरी तरफ साम्राज्यवाद से। ये आन्दोलन को रोकना चाहते हैं। इन दो अन्तरविरोधी प्रवृत्तियों का ज्यादा समय तक सह-अस्तित्व नहीं रह सकता। इनमें से एक को जीतना होगा। क्रान्ति का भविष्य इसी आन्तरिक संघर्ष के नतीजे पर निर्भर है।
यह केन्द्रीय अन्तरविरोध हर स्तर पर यानि समाज में, आन्दोलन में, सरकार में, मीराफ्रलोरेंस के राजमहल में और खुद राष्ट्रपति के भीतर भी प्रतिबिम्बित होता है।
शावेज और जनताः
कई दशकों तक वेनेजुएला में भ्रष्ट और पतित अल्पतन्त्र की सत्ता रही। वह एक दो दलीय व्यवस्था थी जिसमें दोनों पार्टियाँ उसी अल्पतन्त्र का प्रतिनिधित्व करती थीं। शावेज ने जब बोलिवेरियाई आन्दोलन की नीव रखीं तब उसने वेनेजुएला के राजनीतिक जीवन की सड़ांध को साफ करने का प्रयास किया। यह एक मर्यादित और सीमित उद्देश्य था। फिर भी उसके इन प्रयासों का सत्ताधारी अल्पतन्त्र और उसके नुमाइन्दों द्वारा तीखा विरोध हुआ।
दो साल पहले 11 अप्रैल को वाशिंगटन के सक्रिय समर्थन से अल्पतन्त्र ने तख्ता पलट करके शावेज को सत्ताच्युत करने का प्रयास किया। शावेज को पहले गिरफ्रतार किया गया और फिर से अगवा करके मिराफ्रलोरेंस के राजमहल में बन्दी बनाकर रखा गया। लेकिन 48 घण्टों के भीतर ही जनता के स्वतःस्पफूर्त विद्रोह ने उन्हें उखाड़ पफेंका। सेना की टुकड़ियाँ जो शावेज के प्रति वपफादार थीं, जनता के साथ मिल गयीं और अल्पतन्त्र के इस तख्ता पलट के प्रयास की बुरी तरह भद्द पिट गयी।
वेनेजुएला की क्रान्ति के समर्थन में आयोजित दूसरे अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन में मेरे अनुमान से लगभग 150 विदेशी प्रतिनिधि थे, जिनमें से ज्यादा दक्षिण और मध्य अमरीका से आये थे। 13 अप्रैल की शाम को हम सब तख्ता पलट की पराजय की यादगार के रूप में आयोजित विशाल प्रदर्शन देखने के लिये मध्य काराकास में स्थित मीराफ्रलोरेंस राजमहल के ठीक बाहर मंच पर एकत्रित हुए। वह एक अचम्भित करने वाला दृश्य था। लाल कमीज और बेसबॉल की टोपियाँ पहने, शावेज के दसियों हजार समर्थक झण्डे और तख्तियाँ लहराते हुए पफैक्टरियों तथा गरीब बस्तियों से निकलकर सड़क पर उमड़ पड़े थे। यही वे लोग थे जिन्होंने दो साल पहले प्रतिक्रान्ति को पराजित किया था और आज भी क्रान्ति के प्रति उनकी उमंग, उनके जोश में कोई कमी नहीं आयी थी।
माहौल में कुछ गर्माहट पैदा करने के लिये दिये गये चन्द भाषणों और संगीत के साथ सभा शुरू हुई। शावेज और जनसाधारण के बीच के रिश्ते देखना कापफी दिलचस्प था। इन्हें देखकर यह लग रहा था कि गरीब और पद्दलित जनता की इस आदमी के प्रति प्रबल निष्ठा के बारे में शक की कोई गुंजाइश नहीं हो सकती। पहली बार कोई इन दबे-कुचले लोगों की आवाज, उनकी उम्मीद बनकर आया था। शावेज के प्रति उनकी असाधारण आस्था और निष्ठा का राज यही है। उसने उन्हें जिन्दगी दी और अब वे अपने आपको उसमें देखते हैं। इसी वजह से शावेज को धनी और शक्तिशाली तबके की अमिट नफरत मिली है और आम लोगों की वपफा और उनका प्यार।
सत्ताधारी वर्ग की शावेज के प्रति घोर नफरत के पीछे भी यही कारण है। यह वह नफरत है जो अमीरों में गरीबों के प्रति और शोषकों में शोषितों के प्रति होती है। इस नफरत के पीछे छुपा हुआ है भय। अपनी सम्पत्ति अपनी ताकत और विशेषाधिकारों को खोने का भय। यह ऐसी खाई है जो सुन्दर शब्दों से पाटी नहीं जा सकती। यह समाज का बुनियादी वर्गभेद है। तख्तापलट की हार से उसका खात्मा नहीं हुआ है, न ही उसके बाद की गयी उच्च अधिकारियों की तालाबन्दी से। बल्कि यह और ज्यादा तीव्र हो गया है।
हमेशा की तरह शावेज ने कई राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय मुद्दो को समेटते हुए विस्तार से अपनी बात रखी। खास तौर पर, अपनी बात में उसने अमरीका की सरकार और अमरीका की जनता के बीच एक सुस्पष्ट विभाजन रेखा खींची और अमरीका की जनता से बुश के और साम्राज्यवदियों के खिलाफ लड़ाई में समर्थन की अपील की। शावेज जब भाषण दे रहा था तब उसके पीछे लगे हुए बड़े पर्दे पर मुझे लोगों की प्रतिक्रिया दिखायी दे रही थी। बूढ़े और नौजवान, आदमी और औरतें, मजदूर वर्ग की लगभग पूरी आबादी, सब पूरा ध्यान लगाकर सुन रहे थे और हर शब्द सुनने का प्रयास कर रहे थे। वहाँ खड़ी हुई भीड़ में लोग तालियाँ बजा रहे थे जयघोष कर रहे थे, हँस रहे थे और रो भी रहे थे। यह ऐसे जनसमुदाय का चेहरा था जो जाग उठा है, जो ऐतिहासिक प्रक्रिया में अपनी भूमिका के बारे में सचेत हो चुका है। यह क्रान्ति का चेहरा था।
और शावेज? शावेज की ताकत का आधार इसी जनसाधारण का समर्थन है, जिनके साथ वह घनिष्ठ एकता महसूस करता है। इसके बात रखने के अंदाज से भी, जो बिल्कुल स्वतःस्पूफर्त है और जिसमें कहीं भी एक पेशेवर राजनीतिज्ञ की सख्त औपचारिकता नहीं झलकती लोग उससे जुड़ाव महसूस करते हैं। यदि कभी बातचीत में स्पष्टता की कमी दिखायी देती है तो वह भी जन-आन्दोलन जिस दौर से गुजर रहा है उसे दर्शाती है। यह एक मुकम्मिल पहचान है।
पहला सामनाः
जनसभा के तुरन्त बाद अन्तरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों को मीराफ्रलोरंेस के राजमहल में आयोजित स्वागत समारोह में निमन्त्रिात किया गया। इस जगह में प्रवेश करना तथा बाहर निकलना दोनों ही बहुत कठिन काम है। हत्या के खतरे के बने रहने की वजह से सुरक्षा व्यवस्था बहुत चुस्त है। किसी के भी सामान की बार-बार जाँच होती है। पासपोर्ट भी बड़ी बारीकी से देखा जाता है। आइना लिए हुए सिपाही सभी गाड़ियों की नीचे की सतहों का भी निरीक्षण करते हैं। इसमें समय बहुत लगता है लेकिन ये सारी सावधानियाँ बहुत आवश्यक हैं।
अन्दर पहुँचने पर शावेज ने फिर सभा को सम्बोधित किया। न जाने इतनी उफर्जा उसको कहाँ से मिलती है। तख्ता पलट के दिन के बारे में विस्तार से बताते हुए उसने अपनी गिरफ्रतारी की बात बतायी और कुछ ऐसे तथ्य बताये जो उस क्षण तक किसी को भी मालूम नहीं थे। बाद में उससे हाथ मिलाने और दो-चार बात करने के लिए लोगों ने उसे घेर लिया। लग रहा था जैसे सब रग्बी मैच खेलने के लिए जा रहे हों लेकिन आखिर मुझे शावेज के पास जाकर अपना परिचय देने का मौका मिला। ‘‘मै लन्दन से ऐलन वुड्स हूँ, ‘रीजन इन रिवोल्ट’ का लेखक’’ मैने कहा।
मेरे बढ़ाये हुए हाथ को मजबूती से अपने हाथ में लेते हुए उसने कौतूहलपूर्ण नजरों से मुझे देखा और पूछा ‘‘कौन-सी किताब का नाम लिया आपने?’’
मैने देहराया ‘रीजन इन रिवोल्ट।’’
उसके चेहरे पर मुस्कुराहट खिल गयी और उसने कहा ‘‘वह तो अद्भुत किताब है! मैं आपको बधाई देता हूँ।’’ फिर अपने इर्द-गिर्द। के लोगों को देखते हुए उसने घोषणा की, ‘‘आप सबको यह किताब पढ़नी चाहिए।’’
कई लोग अभी उससे मिलने का इन्तजार कर रहे थे इसलिए और समय जाया किये बिना मैंने पूछ लिया कि क्या हम दुबारा मिल सकते हैं? बगल में खड़े एक नौजवान की ओर इशारा करते हुए उसने कहा, ‘‘ हमें जरूर मिलना चाहिए, आप मेरे सेक्रेटरी से बात कीजिये’’ सेक्रेटरी ने तुरन्त बताया कि वह मुझसे सम्पर्क में रहेगा।
मैं निकलने ही वाला था ताकि और लोग राष्ट्रपति से मिल सकें, तभी उसने मुझे रोक लिया। अब वह इर्द-गिर्द के माहौल से बेखबर लग रहा था और पूरे उत्साह से मुझे सम्बोधित करते हुए उसने कहा, ‘‘जानते हो, वह किताब मेरे बिस्तर के पास रखी हुई है और मैं उसे रोज रात को पढ़ता हूँ। मैं ‘द मॉलिक्यूलर प्रोसेस ऑफ रेवोल्यूशन’ वाले चैप्टर तक पहुँचा हूँ, यानि जहाँ तुमने ‘गिब्बस की उफर्जा के बारे में लिखा है। ’’ लगता है किताब के इस हिस्से से वह कापफी प्रभावित है क्योंकि अपने हर भाषण में वह उसे उद्धृत करता रहता है। मिस्टर गिब्बस पहले कभी इतने मशहूर नहीं हुए होंगे।
लेकिन यह महज एक इत्तपफाक नहीं हैं वेनेजुएला की क्रान्ति एक ऐसे नाजुक मोड़ पर पहुँच चुकी है जहाँ से आगे किसी न किसी तरह का निश्चित परिणाम आना चहिए। वह जिस चैप्टर का जिक्र कर रहा था वह ‘केमेस्ट्री’ के ऐसे ही एक निर्णायक बिन्दू की बात करता है, जहाँ उफर्जा की एक निश्चित मात्र, जिसे गिब्ब्स एनर्जी कहते हैं, गुणात्मक परिवर्तन लाने के लिए आवश्यक होती है। शावेज ने इस बात को समझ लिया है कि क्रान्ति को अब गुणात्मक छलांग लगाने की जरूरत है और इसी वजह से किताब के इस हिस्से ने उसका ध्यान आकर्षित कर लिया हैं
अगले दिन मैं बहुत व्यस्त रहा। इस क्रान्ति की बुनियादी समस्याओं पर चल रही बहस में शिरकत करते हुए मैंने लगभग सौ लोगों की एक सभा में अपनी बात रखी। इसमें मैंने अल्पतन्त्र की सम्पत्ति को जब्त करने, लोगों को हथियारबन्द करने तथा मजदूरों के हाथों में नियन्त्रण और प्रबन्धन सौंपने की वकालत की। मैंन मजदूरों की सत्ता के लिये लेनिन द्वारा बतायी गयी चार आवश्यक शर्तों को उद्धृत किया। इसमें से अधिकारियों के वेतन को सीमित करने वाला हिस्सा लोगों के बीच खासा लोकप्रिय हो गया।
मेरी बात का जवाब कोलम्बिया के एक सांसद ने दिया। उसने पूर्णतया सुधारवादी अवस्थिति रखी। यह अतीत में गुरिल्ला लड़ाई में शामिल रहा है ;ये सबसे उग्र सुधारवादी होते हैंद्ध मैंने उसका दृढ़तापूर्वक जवाब दिया जिसे सुनकर श्रोतागण कापफी प्रपफुल्लित हो उठे। मैंने टॉवनी के मशहूर कथन को उद्धृत किया कि ‘‘आप प्याज को परत दर परत छील सकते हैं मगर बाघ की चमड़ी नाखून दर नाखून नहीं उतार सकते।’’ अन्त में वह बेचारा कापफी संभ्रमित सा हो गया था।
शाम को पाकिस्तान से आये हुए मार्क्सवादी सांसद मंसूर अहमद मेरे साथ हो लिए। बेचारे मंसूर 33 घण्टे का थकाने वाला सफर तय करके अभी-अभी हवाई जहाज से उतरे थे। इसके बावजूद, जब उन्होंने मुख्य अधिवेशन में प्रेरणादायी भाषण दिया, जिसमें उन्होंने वेनेज्यूएला की क्रान्ति और पाकिस्तान की 1968-69 की क्रान्ति की तुलना की तो वे कापफी तरोताजा लग रहे थे।
जब मंसूर यह बाता रहे थे कि क्रान्ति को अन्त तक ले जाने में भुट्टो के असफल रहने पर क्या-क्या स्थितियाँ पैदा हुई तो मैं वहाँ इकट्ठा हुए लोगों के चेहरे देख रहा था। उनमें से ज्यादातर बोलिवेरियाई घेरे के मजदूर कार्यकर्ता थे। मंसूर की बातें सुनकर वे कापफी खुश हो रहे थे और बीच-बीच में यह भी कह रहे थे ‘‘ठीक है, यही तो हम चाहते है! सही समय आ गया है। अब ये बातें नहीं कही जायेंगी तो कब कही जायेंगी। आखिर जब मंसूर ने यह निष्कर्ष निकालते हुए अपनी बात समाप्त की कि ‘‘आप आधी-अधूरी क्रान्ति नहीं कर सकते इसे अपने अंजाम तक पहुँचाना होगा’’ तो तालियों की गड़गड़ाहट के साथ लोगों ने इसका समर्थन किया। मंसूर एकमात्र व्यक्ति थे जिनके सम्मान में उस शाम लोगों ने खडे़ होकर जयघोष किया।
मेरी दूसरी मुलाकातः
दूसरे दिन मैंने मुलाकात का समय तय करनेके लिए शावेज के सेक्रेटरी को फोन किया। जवाब उम्मीद बँधाने वाला नहीं था। ‘‘राष्ट्रपति बहुत व्यस्त हैं, बहुत से व्यक्ति उनसे मिलना चाहते हैं।’’
‘‘खैर मुझे ये स्पष्ट बता दें कि मुलाकात होगी या नहीं?’’
‘‘मुझे लगता है सम्भव नहीं हो पायेगा।’’
मतलब बहुत साफ था। इसके बाद मैं पुएर्टो ला क्रूज से आये हुए दो तेल मजदूर नेताओं के साथ बात करने के लिए उनके साथ खाना खाने चला गया।
खाने के बीच में फरनाण्डो बोसी ने होटल में प्रवेश किया और हमारी टेबल की ओर आया। उसे देखकर मुझे आश्चर्य हुआ। वह अर्जेण्टीना का है और पूरे लातीन अमरीका में लोकप्रिय होती जा रही बोलिवेरियाई पीपुल्स कांग्रेस का अध्यक्ष है।
उसने मेरी तरफ देखकर कहा, ‘‘ ऐलन साढ़े पाँच बजे तक तैयार हो जाना। राष्ट्रपति तुमसे साढ़े छह बजे मिलेंगे।’’
मिराफ्रलोरेंस का राजमहल एक सुरुचिपूर्ण ढंग से बनी हुई नव-क्लासिकीय इमारत है, यह स्पेनी औपनिवेशिक काल की याद दिलाती है। बीच में एक बड़ा सा आँगन है जो स्तम्भों से घिरा हुआ है। यद्यपि, मीटिंग पहले साढ़े छह बजे तय हुई थी फिर भी जब मुझे बुलावा आया तब दस से भी ज्यादा बज चुके थे। मैं जब इन्तजार में वहाँ खड़ा था तो मुझे झींगुरों की कर्कश ध्वनि को सुनना पड़ रहा था, जो स्पेन के झींगुरों की तुलना में ज्यादा कर्कश थी।
मुझे बताया गया था कि मैं 20 से 30 मिनट के साक्षात्कार की उम्मीद करूँ। मुझे भी यह पर्याप्त समय लग रहा था। मुझसे पहले जो आदमी राष्ट्रपति से मिलकर निकला वह हाइन्ज डाइटरिक नाम का जर्मन था जो अब मेक्सिको में रहता है और शावेज का पुराना मित्र रह चुका है। वह राष्ट्रपति के साथ 40 मिनट तक था और निकलते ही उसने मुझसे तहे दिल से मापफी माँगी कि मुझे इतनी देर तक इन्तजार करवाया। मैंने उसे बताया कि मुझे इससे कोई नाराजगी नहीं थी। उसके बाद मुझे और देर तक रुके रहना पड़ा और कापफी समय बाद अन्दर बुलाया गया। मैं यह मानकर चल रहा था कि शावेज दिन-भर की गतिविधियों के बाद थके होंगे और आराम करना चाह रहे होंगे या फिर कुछ अल्पाहार ले रहे होंगे।
मेरे ये सारे अनुमान गलत निकले, मुझे बाद में पता चला कि ह्यूगो शावेज इतनी जल्दी थकने वाले आदमी नहीं हैं। वे रोज सुबह आठ बजे से पहले काम करना शुरू करते हैं और भोर में लगभग तीन बजे तक काम करते रहते हैं। उसके बाद वे पढ़ते हैं ;वे पढ़न के अत्यन्त शौकीन हैंद्ध। पता नहीं वे सोते कब हैं? इसके बावजूद वे हमेशा उफर्जा से ओतप्रोत और विभिन्न विषयों पर अथक बात करते हुए नजर आते हैं। उनकी इस आदत की वजह से उनके साथ काम करना कोई आसान बात नहीं है। उनके निजी सचिव ने मुझे बताया कि ‘‘मैं उनके लिए कुछ भी कर सकता हूँ लेकिन मुझे एक मिनट की भी शान्ति नहीं मिल पाती। यहाँ तक की कभी-कभी तो मैं पेशाब करने भी नहीं जा पाता। मैं जैसे ही उस दिशा में चलता हूँ कोई चिल्लाता है, ‘‘राष्ट्रपति आप को याद कर रहे हैं।’’
मुझसे इसलिए इन्तजार करवाया गया था क्योंकि राष्ट्रपति, ‘वेनेजुएला से दूर रहो’ ;हैन्ड्स ऑफ वेनेजुएला अभियान से सम्बन्धित सारी सामग्री पढ़ जाना चाहते थे। जब मैंने उनके ऑफिस में प्रवेश किया तब वे अपनी मेज पर बैठ्र हुए थे और उनके पीछे सिमोन बोलिवार की बड़ी सी तस्वीर टँगी हुई थी, मेज पर मुझे ‘रीजन इन रिवोल्ट’ की एक प्रति और मेरे द्वारा उन्हें भेजा गया एक पत्र भी नजर आया। पत्र की बहुत सी पंक्तियों को गहरी नीली स्याही से रेखांकित किया गया था।
शावज ने गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया। यहाँ किसी तरह का ‘‘शिष्टाचार’’ नहीं था सिपर्फ एक खुलापन और साफगोई थी। उन्होंने बातचीत करते हुए वेल्स और मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में जानना चाहा ;मैंने बताया कि मैं एक मजदूर वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखता हूँ। इस पर उन्होंने बताया कि वे एक किसन परिवार से हैं। उन्हांेने मुझसे पूछा, ‘‘तब ऐलन तुम क्या सोचते हो? कुछ हम भी सुनें।’’ वास्तव में मैं तो उनकी बात सुनने में ज्यादा दिलचस्पी रखता था, जो ज्यादा रोचक होती।
पहले मैंने उन्हें दो किताबे उपहारस्वरूप दीं। मेरे द्वारा लिखा गया बोल्शेविक पार्टी का इतिहास, ‘‘ वोल्शेविज्म, द रोड टू रिवोल्यूशन’’ और ट्रेड ग्राण्ट की किताब, ‘‘रूस क्रान्ति से प्रतिक्रान्ति तक।’’ किताबें देखकर वे बहुत प्रसन्न हुए। ‘‘मुझे किताबें बेहद पसन्द हैं’’ उन्होंने कहा। ‘‘अगर अच्छी किताबें है तो मुझे उनसे और ज्यादा लगाव होता है लेकिन अगर किताबें बुरी हैं तब भी मुझे उनसे लगाव तो होता ही है।’’
बोल्शेविज्म के बारे में लिखी गयी किताब खोलते हुए उन्होंने मेरे द्वारा लिखे गये ‘समपर्ण’ वाले हिस्से को पढ़ा। लिखा था, ‘‘ राष्ट्रपति ह्यूगो शावेज को, मेरी हार्दिक शुभेच्छओं सहित। क्रान्ति का रास्ता-मार्क्सवादी धारणाओं, कार्यक्रमों तथा परम्पराओं से होकर गुजरता है। हम विजय की ओर अग्रसर हों।’’
उन्होंने कहा यह तो बहुत प्रशंसनिय समपर्ण लिखा है तुमने। धन्यवाद, ऐलन।’’ वे किताब के पन्ने पलटने लगे और फिर रुके।
‘‘मैं देख रहा हूँ तुमने प्लेखानोव के बारे में लिखा है।’’
‘‘ठीक कह रहे हैं आप, मैंने कहा।
‘‘मैंने बहुत पहले प्लेखानोव द्वारा लिखी गयी एक किताब पढ़ी थी जिसका नाम था, ‘द रोल ऑफ दी इन्डीविज्युअल इन हिस्ट्री’ ;इतिहास में व्यक्ति की भूमिकाद्ध। तुम जानते हो इस किताब के बारे में? मैं तो उससे बहुत प्रभावित हुआ था।’’
मैंने हामी भरी कि मैं भी उस किताब को जानता था।
‘‘इतिहास में व्यक्ति की भूमिका’’उन्होंने उस पर सोचते हुए दोहराया। फिर बोले ‘‘खैर, यह बात तो मैं जानता हूँ कि हम में से कोई भी क्रान्ति के लिए अनिवार्य नहीं है। यानि हमारे बिना भी क्रान्ति होगी।’’
मैंने कहा, ‘‘यह पूर्ण रूप से सही नहीं है। इतिहास में कुछ ऐसे मोड आते हैं जब कोई व्यक्ति भी बुनियादी फर्क डाल सकता है।’’
‘‘हाँ मुझे यह देखकर खुशी हुई कि ‘रीजन इन रिवोल्ट’ में तुमने कहा है कि ‘‘ मार्क्सवाद को महज आर्थिक कारकों तक सिकोड़कर नहीं रखा जा सकता।’’
मैंने कहा, ‘‘सही कह रहे हैं आप। ऐसा करना मार्क्सवाद का मजाक उड़ाने जैसा हो जायेगा।’’
उन्होंने पूछा, ‘‘जानते हो मैंने प्लेखानाव की यह किताब कब पढ़ी थी?’’
‘‘नहीं मैं नहीं जानता।’’
‘‘मैने वह किताब तब पढ़ी थी जब मैं सेना में गुरिल्ला विरोधी टुकड़ी में पहाड़ों में सेवारत अधिकारी था। जानते हो, वे हमें इस तरह की सामग्री इसलिए पढ़ाते थे ताकि हम व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह समझ सकें। मैंने पढ़ा कि विद्रोही लोगों के बीच काम करते हैं, उनके अधिकारों की हिपफाजत करते हैं और उनके दिलो-दिमाग को जीत लेते हैं। मुझे यह बहुत बढ़िया बात लगी।’’
‘‘फिर मैंने प्लेखानोव की किताब पढ़ना शुरू किया और उसने मुझ पर गहरा प्रभाव डला। मुझे पहाड़ों में वह सुन्दर तारों भरी रात याद है जब मैं अपने टेण्ट में एक मशाल की रोशनी में पढ़ रहा था। मैंने जो पढ़ा उससे मैं सोचने पर मजबूर हो गया और अपने आप से पूछने लगा कि आखिर मैं सेना में क्या कर रहा था। मैं बहुत दुखी हो गया।’’
‘‘जानते हो हाथ में रायफल लिए पहाड़ों में घूमना हमारे लिए कोई ऐसी समस्या नहीं थी। गुरिल्ला विद्रोहियों की भी कोई ऐसी समस्या नहीं थी, उन्हें भी हमारी तरह घूमना था। लेकिन जो सबसे ज्यादा झेलते थे वे थे सामान्य किसान। वे बेबस थे और उन्हें बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। मुझे याद है एक दिन हम एक गाँव में गये और हमने देखा कि कुछ सिपाही दो किसानों पर बहुत जुल्म कर रहे थें। मैंने उन्हें तुरन्त रुकने का आदेश दिया और बताया कि जब तक मैं कमाण्ड में हूँ, तब तक इस तरह की घटनाएँ दोहरायी नहीं जानी चाहिए।’’
‘‘खैर इससे मैं बहुत संकट में फँस गया। वे मुझ पर सैनिक आज्ञा भंग के आरोप में मुकदमा भी चलाना चाह रहे थे। ;उन्होंने आखिरी दो शब्दों पर ज्यादा जोर दियाद्ध उसके बाद मैंने तय कर लिया कि मुझे सेना में नहीं रहना चाहिए। मैं उसे छोड़ना चाहता था लेकिन एक पुराने कम्युनिस्ट ने मुझे यह कहकर रोका, सेना में रहकर तुम क्रान्ति को दस ट्रड युनियन नेताओं ज्यादा पफायदा पहुँचा सकते हो। इसलिए मैं सेना में बना रहा। आज मुझे लगता है कि मैंने ठीक किया।’’
‘‘तुम्हें पता है मैंने उन पहाड़ियों में एक सेना बनयी थी। वह पाँच लोगों की सेना थी लेकिन उसका नाम काफ लम्बा-चौड़ा था। हम अपने को ‘सीमोन बोलिवार राष्ट्रीय मुक्ति जन सेना’ कहते थे। यह बताते हुए वे ठहाका लगाकर हँसे।’’
‘‘यह कब की बात थी?’’ मैंने पूछा।
‘‘यह 1974 की बात है। मैंने सोचा, यह सीमोन बोलिवार की धरती है। यहाँ उसकी रूह का कोई अंश तो जिन्दा होगा, शायद हमारे खून में। इसलिए हम उसे जिन्दा करने में लग गये।’’
मुझे इस बात की जानकारी नहीं थी कि वेनेजुएला की सेना में आज जो स्थिति बनी हुयी है वह दशकों तक धैर्यपूर्वक किये गये क्रान्तिकारी काम का नतीजा है लेकिन सच्चाई यही हैं शावेज ने अपनी बात जारी रखी मानों वे अपनी विचारों की शृंखला को ही अभिव्यक्त कर रहे हों।
‘‘दो साल पहले तख्ता पलट के समय, जब मुझे गिरफ्रतार किया गया था और पकड़ कर ले जाया जा रहा था, तब मुझे लगा कि अब मुझे गोली मारकर उड़ा दिया जायेगा। मैंने अपने आप से पूछा कि क्या मेरे जीवन के पिछले 25 साल यूँहि बरबाद हो गये? क्या हमने जो भी किया उसका कोई मूल्य नहीं? लेकिनवह सब व्यर्थ नहीं था जैसा कि पैराट्रूपर रेजीमेण्ट के विद्रोह ने साबित कर दिया।’’
शावेज तख्तापलट के बारे में बताते हैः
शावेज ने कापफी विस्तार से तख्ता पलट के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि कैसे उन्हें एकान्तवास में रखा गया था। तख्तापलट कराने वाले यह चाहते थे कि उन पर दबाव डालकर उनसे इस्तीपफे के कागजात पर दस्तखत करा लें। उसके बाद वे उन्हें छोड़ देते और क्यूबा या ऐसे ही कहीं निष्काषित करते। वे वही करना चाहते थे जो उन्होंने हाल में हैती में एरिस्टाइड के साथ किया था शावेज को भी वे शारीरिक रूप से नहीं मारते बल्कि वे उनके समर्थकों की निगाह में उन्हें गिराकर उन्हें नैतिक रूप से खत्म कर डालना चाहते थे। लेकिन उन्होंने कागजात पर हस्ताक्षर करने से ही इनकार कर दिया।
षडयन्त्रकारियों ने उनसे इस्तीपफा लेने के लिए हर तरह के दाँव-पेंच इस्तमाल किये। यहाँ तक कि उन्होंने चर्च का भी इस्तेमाल किया;इसके बारे में शावेज बहुत कटु भाषा मे बताते है।द्ध।
‘‘हाँ, उन्होंने मुझे समझाने के लिए कार्डिनल ;पुजारीद्धतक को भेजा। उसने भी झूठ-फरेब से मेरा मनोबल तोड़ना चाहा। मुझे बताया गया कि मेरे समर्थन में अब कोई नहीं था, सबने मेरा साथ छोड़ दिया था, यहाँ तक कि सेना भी अब तख्ता पलट करवाने वाली ताकतों के ही साथ है। मैं बाहरी दुनिया से पूरी तरह कटा हुआ था और मेरे पास कोई सूचना नहीं पहुँच रही थी। उसके बावजूद मैंने हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।’’
‘‘मुझे बन्दी बनाने वाले लोगों की हालत खराब हो रही थी। उन्हें वाशिंगटन से फोन पर फोन किये जा रहे थे और उनसे यह पूछा जा रहाथा कि आखिर मेरे द्वारा हस्ताक्षर किया गया इस्तीपफा कहाँ है? जब उन्होंने देखा कि मैं मानने वाला नहीं हूँ तब वे और हताश हो गये। कार्डिनल मुझे पर यह कहकर दबाव डालने लगा कि देश को गृहयु( और खूनखराबे से बचाने के लिए आपको इस्तीपफा दे देना चाहिए। लेकिन तभी मैने देखा कि उसके बातचीत के लहजे में अचानक परिवर्तन आ गया था। वह कुछ शिष्ट और समझौतावादी भाषा बोलने लगा था। मुझे सन्देह हुआ कि इनके इस बदले हुए रवैये का जरूर कोई कारण होगा। कुछ तो जरूर हुआ होगा।’’
‘‘इतने में फोन की घण्टी बजी। मुझे बन्दी बनाने वालों में से एक ने कहा, ‘रक्षा मन्त्राी बात कर रहे हैं और वे आपसे बात करना चाहते हैं।’ मैंने उसे बताया कि मैं किसी मन्त्राी-सन्त्राी से बात नहीं करूँगा। फिर उसने कहाः ‘लेकिन यह तो आपके रक्षा मन्त्राी बात कर रहे हैं।’ इतना सुनते ही मैंने लपक कर उसके हाथ से फोन छीना और तब मुझे ऐसी आवाज सुनायी दी जो सूरज की तरह दमक रही थी। पता नहीं मेरी उपमा सही है या नहीं लेकिन मुझे तो उस समय वह ऐसी ही सुनाई दी।’’
इस संवाद से मुझे शावेज के इन्सानी पक्ष के बारे में एक धारणा बनाने में मदद मिली। उनके बारे में सबसे प्रथम जो बात प्रभवित करती है वह है उनकी पारदर्शी ईमानदारी। उनकी संजीदगी बिल्कुल स्पष्ट दिखायी देती है और क्रान्ति के उद्देश्य के प्रति उनका समर्पण तथा अन्याय और उत्पीड़न के प्रति नफरत भी। बेशक ये गुण अपने आप में क्रान्ति की जीत की गारण्टी देने के लिए पर्याप्त नहीं हैं लेकिन लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता मेंु निश्चित रूप से इनकी भूमिका है।
उनहोंने मुझसे पूछा कि वेनेज्यूएला के आन्दोलन के बारे में मैं क्या सोचता हूँ? मैंने बताया कि मैं कापफी प्रभावित था क्योंकि यह स्पष्ट था कि इस आन्दोलन की मुख्य संचालक शक्ति जनता ही थी और क्रान्ति को अपनी अन्तिम मंजिल तक पहुँचाने के लिए सारी आवश्यक शर्तंे मौजूद थीं। बस एक चीज की कमी थी। उन्होंने पूछा कौन सी चीज? मैंने बताया कि आन्दोलन की कमजोरी यह थी कि न तो उसकी कोई सुस्पष्ट रूप से परिभाषित विचारधारा थी और न ही कार्यकर्ता। मेरी इस बात पर उन्होंने सहमति जतायी।
उन्होंने कहा ‘‘जानते हो, मैं अपने आप को मार्क्सवादी इसलिए नहीं मानता क्योंकि मैंने पर्याप्त मार्क्सवादी किताबें नहीं पढ़ी हैं।’’
इस बातचीत से मुझे ऐसा महसूस हुआ कि ह्यूगो शावेज एक नये विचार की खोज में थे और मार्क्सवादी विचारों में उनकी गहरी और सच्ची रुचि थी। वे सीखने के लिए उत्सुक थे। वेनेजुएला का क्रान्तिकारी आन्दोलन जिस मंजिल तक पहुँच चुका है उसी से इस बचैनी का सम्बन्ध है। ज्यादातर लोग जितना सोचते हैं उसके पहले ही इस आन्दोलन को एक बहुत कठोर चुनाव करना पड़ेगा, या तो उसे अल्पतन्त्र की आर्थिक शक्ति को समाप्त करना होगा या फिर जल्द ही अपनी हार का सामना करना पड़ेगा।
सम्भावना यह है कि घटनाक्रम खुद ही शावेज को वाम की ओर तीव्र मोड़ लेने की जरूरत का एहसास करायेगा। हाल ही में अपने एक भाषण में उन्होंने लोगों को हथियारबन्द करने का आह्नान किया। वे विपक्ष द्वारा की जा रही संसद के भीतर और बाहर होने वाली तोड़-पफोड़ और भड़काउफ कार्रवाइयों से जाहिरा तौर पर कापफी खिन्न हो चुके हैं। न्ययाधीशों, विपक्षी सांसदों, महानगरीय पुलिस और पेट्रोलियम कम्पनी पी.डी.वी.एस.ए. के नौकरशाहों द्वारा इस्तेमाल किये जा रहे तोड़-पफोड़ के तरीकों की उन्होंने सूची बनायी है इन बाधाओं को हटाए बिना क्रान्तिकारी आन्दोलन का आगे बढ़ना नामुमकिन है। इन बाधाओं को हटाने के लिये जन आन्दोलन को गोलबन्द, संगठित और हथियारबन्द करना होगा।
आन्दोलन की नेतृत्वकारी कतारों में इस बात को लेकर प्रतिरोध है। निचली कतारों में सुधारवादी और समाजिक-जनवादी तत्व या तो कमजोर हैं या उनका अस्तित्व नहीं के बराबर है लेकिन शीर्ष पर उनकी ताकत ज्यादा है। शावेज की समर्थक कतारों में इस बात को लेकर तीव्र असन्तोष है। प्रतिक्रान्ति के खिलाफ निर्णायक कदम न उठाए जाने की वजह से उनकी हताशा बढ़ रही है।
इन परिस्थितियों में मार्क्सवादी विचारों की, जिसका प्रतिनिधित्व क्रान्तिकारी मार्क्सवादी धारा एल मिलिटान्टटोपो आब्रेरो द्वारा किया जा रहा है, शक्तिशाली गूंज सुनाई दे रही है।
‘वेनेजुएला से दूर रहो’ अभियानः
हमारी बातचीत इसके बाद हमारे अन्तरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने के ‘वेनेज्यूएला से दूर रहो’ अभियान की ओर मुड़ी। राष्ट्रपति शावेज न इसमें गहरी दिलचस्पी दिखायी। उन्होंने मुझसे इस अन्तरराष्ट्रीय समूह के बारे में मेरी राय पूछी। मैंने बताया कि विचार तो बढ़िया है लेकिन इसकी कई कमजोरियाँ भी हैं। यूरोप से आये हुये लगभग सभी प्रतिनिधि महज व्यक्तिगत हैसियत से इसमें शामिल हुए थे। ज्यादातर शिक्षाविद या बु(िजीवी थे और वे और किसी का नहीं सिपर्फ अपना प्रतिनिधित्व कर रहे थे। शावेज की प्रतिक्रिया से लगा कि वे इस बात से वाकिफ थे।
मैंने कहा ‘‘ऐसे लोग क्या कर सकते हैं? वे घर जाकर एक सेमिनार का आयोजन करेंगे जिसमें बोलिवेरियाई क्रान्ति कितनी अद्भुत है इसका बखान करेंगे। ऐसे समर्थन से आपको ज्यादा लाभ नहीं मिलेगा। क्रान्ति के लिए ज्यादा जरूरी है कि पूरे अन्तरराष्ट्रीय श्रमिक आन्दोलन के भीतर एक गम्भीर प्रचार आन्दोलन चलाया जाय।’’
‘‘लेकिन बु(िजीवी भी तो कुछ कर सकते हैं। वे हमारे लिए प्रचार कर सकते हैं।’’
‘‘मैं सहमत हूँ आपसे। बु(िजीवियों को आन्दोलन से बाहर रखने की बात तो मैं नहीं करता लेकिन मजदूर वर्ग और अन्तरराष्ट्रीय मजदूर आन्दोलन को वेनेजुएला की क्रान्ति के समर्थन का मुख्य आधार बनना चाहिये।’’
मेरी इस बात से राष्ट्रपति पूरी तरह सहमत थे। उसके बाद वे ‘वेनेजुएला से दूर रहो’ अभियान के समथर्कांे के हस्ताक्षरों की 16 पÂों की सूची को ध्यान से पढ़ने लगे। जैसे-जैसे वे नाम पढ़ते गये उनके चेहरे के भाव बदलते गये।
वे अपने सेक्रेट्ररी से बोले, ‘‘देखो मैं नहीं कह रहा था? ये सिपर्फ व्यक्ति नहीं है। इस सूची में दुकानों के प्रबन्धकों, ट्रेड यूनियन सचिवों और मजदूर नेताओं के नाम भी हैं। इन्हीं की तो हमें जरूरत है। ‘‘फिर वे एक क्षण के लिए रुके।
‘‘देखो कुछ ने तो सन्देश भी लिखे हैं। एक यही ले लो। ऐलन, ‘राबोचाया डेमोक्रटिया’ का मतलब क्या होता है?’’
‘‘यह रूसी भाषा का शब्द है जिसका मतलब है ‘मजदूरो का जनतन्त्र’ मैंने बताया।
फिर शावेज ने सन्देश को स्पेनिश भाषा में अनूदित किया। सेन्देश इस प्रकार था,
वेनेजुएला के श्रमिक पुरुषों और महिलाओं के लिये,
साथियों!
ऐसे समय में जब अमरीकी साम्राज्यवाद के खूंखार पंजे वेनेजुएला के भीतर की प्रतिक्रियावादी ताकतों के साथ साँठ-गाँठ करके बोलिवेरियाई गणतन्त्र की ओर बढ़ रहे हैं, इस देश की सम्पदा-तेल का निजीकरण करने का प्रयास कर रहे हैं और वेनेजुएला के मजदूरों और किसानों को और ज्यादा तंगहाली की स्थिति में धकेलते जा रहे हैं हम रूसी ;सोवियतद्ध मार्क्सवादी प्रतिक्रियावादी ताकतों के खिलाफ लड़े जा रहे वेनेजुएला के मजदूरों के वर्ग-संघर्ष के साथ अपनी पूरी एकजुटता का इजहार करते हैं।
1917 की रूसी क्रान्ति का सफल अनुभव यह बताता है कि साम्राज्यवादियों के मंसूबों को पराजित करना हो तों यह सिपर्फ मजदूरों की परिषदों ;सोवियतोंद्ध और मजदूरों की एक सेना का गठन करके तथा मजदूरों के नियन्त्रण में उद्योगों का राष्ट्रीयकरण करके ही सम्भव हो सकता है।
वेनेजुएला में अगर क्रान्ति कामयाब हो जाती है और मजदूरों के राष्ट्र की बुनियाद पड़ जाती है तो यह न सिपर्फ लातिन अमरीका बल्कि पूरी दुनिया के मजदूरों और गरीबों के लिए एक आशा का स्रोत बन जायेगा।
दुनिया के मजदूरों एक हो!
‘‘यह वास्तव में बहुत ही शानदार सन्देश है’’ शावेज ने भवुक होकर कहा। ‘‘मुझे लगता है कि इन्हें पत्र लिखकर धन्यवाद देना चाहिए। मुझे उन सबकों पत्र लिखना चाहिए। ये कैसे सम्भव होगा?’’
‘‘आप हमारी वेबसाइट पर सन्देश भेज सकते हैं’’, मैंने सुझाव दिया।
‘‘मैं यही करूँगा,’’ उन्होंने जोश के साथ कहा।
राष्ट्रपति ने अपनी घड़ी की ओर देखा तो ग्यारह बज रहे थे।
‘‘अगर मैं बस कुछ क्षणों के लिए टी.वी. चला दँू तो आप बुरा तो नहीं मानेंगे? हम जोग एक नया समाचारो का कार्यक्रम शुरू कर रहे हैं और मैं देखना चाहता हूँ कि वह कैसा बना है?’’
हम लोगों ने लगभग पाँच मिनट के लिये समाचार देखा याह कार्यक्रम इराक के बारे में था। ‘‘तो ऐलन, कैसा लगा तुम्हें कार्यक्रम?’’
‘‘बुरा नहीं है।’’
‘‘हम लोग एक नयी दूरदर्शन सेवा स्थापित करने के बारे में सोच रहे हैं जिसके द्वारा पूरे लातीन अमरीका में कार्यक्रमों का प्रसारण होगा।’’
इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि ह्यूगो शावेज ने अमरीकी साम्राज्यवादियों की नींद हराम की हुई है।
जार्ज डब्ल्यू बुश के बारे में बोलते हुए शावेज ने गहरे तिरस्कार के साथ अपनी बात कही ‘‘व्यक्तिगत तौर पर वह कायर है। उसने ‘ऑगेनाइजेशन ऑफ अमरीकन स्टेट्स’;व्।ैद्ध की सभा में फिदेल कास्त्रो की गैरहाजिरी में, फिदेल के विरोध में आक्रामक ढंग से बात रखी। अगर फिदेल मौजूद रहते तो उसकी इतनी हिम्मत नहीं होती। लोग तो यह भी कहते हैं कि वह मुझसे मिलने से डरता है और मुझे यह सच भी लगता है। वह मुझसे बचने की कोशिश करता है लेकिन ओ.ए.एस. की एक शिखर वार्ता में हम लोग साथ थे और वह मेरे कापफी करीब बैठा था।’’ शावेज ने मजा लेते हुए बताया।
वे आगे बताते गए ‘‘मैं एक घूमने वाली कुर्सी पर बुश की ओर पीठ किए बैठा था। फिर थोड़ी देर बाद मैंने अचानक कुर्सी घुमाई, इस तरह हम अब आमने-सामने थे। मैंने कहा ‘हैलो, मिस्टर प्रेसीडेण्ट!’’ उसके चेहरे की हवाइयाँ उड़ गयीं। उसका चेहरा पहले लाल, फिर जामुनी और फिर नीला पड़ गया। कोई भी देखकर यह बता सतिा है क यह आदमी कुण्ठाओं का एक पुंज मात्र है। ऐसे आदमी के हाथ में सत्ता हो तो वह और ज्यादा खतरनाक हो जाता है।’’
हमारी मुलाकत के अन्त में ह्यूगो शावेज ने हमारे ‘वेनेजुएला से दूर रहो’ अभियान को अपना दृढ़ समर्थन जताया। उनहोंने मेरी किताब ‘रीजन इन रिवोल्ट’ का वेनेजुएलाई संसकरण प्रकाशित करने के लिए अपना व्यक्तिगत समर्थन दिया और भविष्य में अन्य किताबों के प्रकाशन में भी सहयोग करने की सम्भावना जतायी। हम लोगों ने बहुत दोस्ताना माहौल में एक-दूसरे से विदा ली। मेरे अनुमान से तब 11.30 बज चुके थे लेकिन जब मैं निकलने ही वाला था उन्होंने मुझ से जानना चाहा कि पाकिस्तान के मार्क्सवादी संासद मंसूद अहमद आये हैं या नहीं।
मैंने बताया कि वे कल ही पहुँच चुके थे। शावेज ने पूछा ‘‘लेकिन फिर वे मुझसे मिलने क्यों नहीं आये।’’ मैंने कहा, ‘‘शायद इसलिए कि उन्हें निमन्त्रण नहीं मिला है।’’
राष्ट्रपति का चेहरा एक क्षण के लिए उदास हो गया लेकिन फिर उन्होंने मुझसे कहा, ‘‘खैर आप मंसूर को मेरी तरफ से यह कहिए कि उन्हें मुझसे मिले बिना वेनेजुएला से चले जाने के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए। मेरी एपॉइन्टमेन्ट बुक कहाँ है? शावेज अधीरता से मिलने का समय नोट करने वाली डायरी के पन्ना पलटने लगे। मीटिंग के बाद मीटिंगों का ऐसा क्रम तय किया गया था कि उनके पास खाली समय नहीं था। वे क्षण भर के लिए सोच में पड़ गये लेकिन फिर कुछ सोचकर मुस्कुराये और मुझसे कहा, ‘‘खैर हम लोगों को कल रात के खाने के बाद मिलना पड़ेगा। आप दोनों रहेंगे ना? ठीक है। तब कल रात दस बजे मिलते है।
तत्काल तैयार किया गया भाषणः
अगली शाम विदेशी प्रतिनिधि फिर एक बार राष्ट्रपति के महल के एक सभागार में एकत्रित हुए। लगभग 200 लोग फिर ौजूद थे। दूरदर्शन के कैमरे भी लगे हुए थे। मैं थोड़ी देर से पहुँचा था और भीड़ भरे सभागारमें पीछे की ओर बैठा था। कुछ ही मिनट बाद राष्ट्रपति के कार्यालय से एक व्यक्ति मेरी तरफ आया और उसने मेरा कंधा छूकर मुझसे कहा, ‘‘मिस्टर वुड्स पाँच मिनट के अन्दर आप भाषण देने के लिए तैयार हो जाइये।’’
मैं इसके लिए कतई तैयार नहीं था फिर भी मैं टेलीविजन कैमरे के ठीक सामने रखे हुए माइक तक जा पहुँचा। बगल में मेज लगाकर राष्ट्रपति भी बैठे थे। मैंने दुनिया भर में बढ़ते जा रहे पूँजी के संकट के बारे में बात रखी। मैंने यह समझाने का प्रयास किया कि जो भी यु(, आर्थिक संकट, आतंकवाद इत्यादि की घटनाएँ कहीं भी दिखायी दे रही थीं वे सब पूँजीवाद के अपने स्वभावगत संकट की अलग-अलग अभिव्यक्तियाँ थीं। मैंने यह भी बताया कि मानवता की इन समस्त समस्याओं को हल करने का एकमात्र रास्ता था, पूँजीवाद का खात्मा और दुनिया भर में समाजवाद की स्थापना। मैंने समझाया कि बोलिवार के मरने के बाद 200 सालों की कालावधि में लातिन अमरीका के पूँजीपतियों ने ऐसी जमीन को जो धरती पर स्वर्ग बन सकती थी, करोड़ों लोगों के लिये जीते-जागते नर्क में तब्दील कर दिया है।
निष्कर्ष के तौर पर मैंने बताया कि उत्पादक शक्तियों की विराट सम्भावनाएँ सिपर्फ इसलिए बबार्द हो रहीं हैं क्याँेकि मानव विकास के रास्ते में दो बड़ी बाधाएँ खड़ी हैं, उत्पादन के साधनों पर निजी मालिकाना और ‘‘बर्बरता का वह अवशेष यानि राष्ट्र-राज्य।’’ मैने लोगों का ध्यान विज्ञाने और तकनीक द्वारा की गयी उन विशालतम् उपलब्धियों की ओर आकर्षित किया जो अपने आप में इस पृथ्वी के ज्यादातर लोगों की जिन्दगी को बदलकर रख देने के लिये पर्याप्त हैं।
अपनी बात को यहाँ तक पहुँचाकर मैंने कहा, ‘‘सुना है कि अब अमरीकी, आदमी को मंगल ग्रह पर भेजने की तैयारी कर रहे है। मेरा मानना है कि हमें इस प्रसताव का समर्थन करना चाहिए बशर्ते कि, भेजे जाने वाले का नाम, जार्ज डब्ल्यु बुश हो और उसे सिपर्फ वहाँ जाने के लिये एकतरपफा टिकट दिया जाये।
इस बात पर पूरा हॉल हँसी से गूँजने लगा और इस सारे शोर-शराबे के ऊपर शावेज की आवाज यह कहते हुए सुनायी दी, ‘‘और अजनार उसे क्यों भूल रहे हो?’’
लेकिन मैंने कहा ‘‘मिस्टर प्रेसिडेन्ट, हम मरे हुए लोगों की बुराई न करें!’’ उस शाम जितने भाषण हुए उनमें से सिपर्फ मेरा भाषण राजनीतिक था और उसे लोगों ने अच्छी तरह से लिया।
हमेशा की तरह शावेज सबसे अन्त में बोले और कापफी देर तक बोलेऋ अपने भाषण के दौरान उन्होंने कई मौकों पर मेरे भाषण का हवाला दिया। थोड़ी-थोड़ी देर के अन्तराल पर प्रबन्धकों की ओर से कोई याद दिलाने आता था कि देर करने की वजह से खाना बर्बाद हो रहा है। लेकिन उन्हें कोई रोक नहीं सकता था। बेचारे सन्देशवाहक की ओर देखकर वे कहते थे, ‘‘क्या! तुम फिर आ गये!’’ और फिर धाराप्रवाह बोलने लगते थे मानों कुछ भी न हुआ हो। वेनेजुएला के सभी लोगों की तरह शावेज भी विनोदशीलता के धनी हैं। जब वे कापफी देर तक बोल चुके तब उन्होंने अचानक आवाज लगायी, ‘‘ऐलन क्या तुम अभी यहीं हो? ’’
‘‘हाँ मैं अभी यहीं हूँ।’’
‘‘क्या तुम सो रहे हो?’’
‘‘नहीं मैं पूरी तरह से जाग रहा हूँ।’’
;थोड़ी देर रुककरद्ध‘‘ये गिब्ब्स कौन थे?’’
‘‘ये एक वैज्ञानिक थे।’’
‘‘अच्छा, वे वैज्ञानिक थे।’’ और इतना कहकर उन्होंने फिर अपनी बात जारी रखी।
बीच में ही उनके इस सवाल की वजह से और गिब्ब्स का उनके द्वारा हिब्ब्स जैसा उच्चारण करने के चलते लोगों में एक रहस्य जैसा बन गया और मुझे लोगों को उसका सही उच्चारण बताने और गिब्ब्स कौन थे यह समझाने के जिये खासा समय देनेा पड़ा।
आखिर जब हम खाना खाने बैठे तो आधी रात हो चुकी थी। मैं अपने दोस्त और कामरेड मंसूर के साथ था और इस बात से नाखुश था कि हमारे खाने की व्यवस्था अलग-अलग मेजों पर की गयी थी, भले ही वे पास-पास थीं। मैंने शिष्टाचार विभाग से एक महिला को बुलाकर बताया कि मैं अपनी जगह बदलकर मंसूर के साथ बैठना चाहता हूँ क्योंकि वह स्पेनिश भाषा नहीं जानने की वजह से अकेलापन महसूस करेंगे। इस पर उसने कहा, ‘‘कोई बात नहीं, हम उनके लिये एक दुभाषिये का इन्तजाम कर देंगे। ‘‘मैंने अपनी असहमति जतायी और अपने दोस्त की बगल में बैठने लगा।
मैं अभी बैठा भी नहीं था कि एक सख्त चेहरे वाली महिला-जो शायद शिष्टाचार विभाग ;जिससे सब डरते थेद्ध की मुखिया थी-मेरी तरफ आयी और ‘कोई बहस नहीं’ वाले अन्दाज में उसने मुझे रोका ‘‘मिस्टर वुड्स!’’ एक आखिरी नाकामयाब अपील के बाद मैंने अपने भाग्य को स्वीकार कर लिया और कसाई घर में जा रहे बकरे की तरह चुपचाप उसके पीछे चल पड़ा अपनी मेज पर पहुँचकर मैं चुपचाप अपने पास बैठे मेहमानों की ओर देखने लगा। मुझे यह देखकर सुखद आश्चर्य हुआ कि मेज पर बैठे मेहमानों के बीच राष्ट्रपति शावेज और उनकी युवा बेटी भी थी। संगीतज्ञों का एक समूह गिटार, हार्प और अन्य पारम्परिक वाद्यों पर वेनेजुएलाई संगीत बजाकर हमारा मनोरंजन कर रहा था। शावेज मुझे इशारा करके यह नजारा दिखा रहे थे और खुद भी कापफी मजा ले रहे थे।
खाना खत्म होते-होते लगभग डेढ़ बज गया। लेकिन शावेज के लिए ये देर नहीं थी और अभी मंसूर के साथ उनकी मुलाकात बाकी थी और दो बजे से थोड़ा पहले हमें एक बड़े से कमरे में ले जाया गया, जो हमेशा की तरह बोलिवार की बड़ी-बड़ी तस्वीरों से सजाया गया था शावेज और उनके सेक्रेट्ररी के अलावा विदेशी मामलों के मन्त्राी भी वहाँ मौजूद थे-जो इस साक्षात्कार को दिए जा रहे महत्व के द्योतक थे। पहली बार मुझे लगा जैसे राष्ट्रपति कुछ थके हुए नजर आ रहे थे। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने मंसूर से पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बारे में विस्तृत सवाल पूछे।
हम जिस दुनिया में रहते हैं उसके बारे में और जानकारी हासिल करने की उनकी अमिट इच्छा को कुछ भी प्रभावित नहीं कर सकता था। लेकिन दूसरी ओर उनके सेक्रेट्ररी और मन्त्राी नींद से बेहाल हुए जा रहे थे।
मंसूर ने उन्हें, सिन्ध की कढ़ाई की हुई पारम्परिक शाल तथा पाकिस्तान के धातु मजदूरों की ओर से तोहपफे के रूप में भेजे गये कुछ नक्काशीदार पफूलदान भेंट किये। उन्होंने उन पफूलदानों को कमरे में ऐसी जगह पर सजाया जहाँ से वे सबको नजर आते और शाल ओढ़कर पफोटो खिंचवाया। शावेज के लिए ऐसी बातों का महत्व कम नहीं है। अगले दिन रेडियो पर उन्होंने मंसूर के साथ हुई इस मुलाकात का विस्तार से वर्णन किया इस आदमी के लिये समर्थन में की गयी हर अन्तरराष्ट्रीय कार्रवाई बहुत महत्वपूर्ण और मूल्यवान है।
कुछ आखिरी शब्दः
मैं और क्या कह सकता हूँ? मैं आम तौर पर व्यक्तियों के बारे में इतने विस्तार से नहीं लिखता और मैं इस बात के बारे में भी सचेत हूँ कि कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि मेरे मार्क्सवादी साहित्य में इस तरह के लेखन के लिए कोई जगह नहीं। लेकिन मैं सोचता हूँ कि वे लोग गलत सोचते हैं या कम से कम उनकी सोच एकांगी है। मार्क्स कहते हैं कि स्त्राी-पुरूष मिलकर इतिहास रचते हैं और इतिहास रचने में जिसकी भूमिका होती है ऐसे व्यक्तियों के बारे में अध्ययन सिपर्फ साहित्य का ही नहीं मार्क्सवादी साहित्य का भी वैध हिस्सा है।
व्यक्तिगत तौर पर मुझे मनोविज्ञान में कभी रुचि नहीं रही, अगर उसकी बहुत व्यापक परिभाषा छोड़ दी जाए तो। अक्सर, दूसरे दर्जे के लेखक इतिहास के बारे में अपने वास्तविक ज्ञान की कमी छुपाने के लिए कुछ मशहूर हस्तियों के मन की गहराइयों में उतरने का दावा करते हैं। उदाहरण के लिये वे बताते हैं कि स्तालिन और हिटलर दोनों का बचपन बहुत दुखभरा था। वे इस तथ्य को उस कारण के बतौर पेश करना चाहते हैं जिसके चलते बाद में ये दोनों व्यक्ति बेरहम तानाशाह बने जिन्होंने करोड़ो लोगों को आतकित किया। लेकिन वास्तव में ऐसे तर्कों का कोई मतलब नहीं है। बहुत सारे लोगों के बचपन बहुत दुख और कष्ट में बीतते हैं लेकिन ये सारे लोग स्तालिन या हिटलर नहीं बनते। ऐसी परिघटनाओं को समझाने के लिए हमें पहले वर्गों के आपसी सम्बन्धों तथा उन्हें पैदा करने वाली वस्तुगत सामाजिक-आर्थिक प्रक्रियाओं को समझना पड़ेगा।
बहरहाल, एक हद तक किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व भी इतिहास की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। मेरे लिए जो रुचि का विषय है, वह है व्यक्ति और पदार्थ के बीच का द्वन्द्वात्मक सम्बन्ध या जैसे हीगेल इसे कहते हैं, विशिष्ट और सार्वभौम के बीच का अन्तरसम्बन्ध। ह्यूगो शावेज और वेनेजुएला की क्रान्ति के बीच क्या रिश्ता है, इस पर अगर कोई किताब लिखी जाय तो यह अपने आप में एक बहुत ही शिक्षाप्रद अनुभव होगा। इनके बीच रिश्ता है, इसमें तो कोई शक नहीं है। लेकिन यह रिश्ता सकारात्मक है या नकारात्मक, यह इस पर निर्भर करेगा कि हम किस वर्ग-दृष्टिकोण की हिमायत करते हैं।
अगर हम आम जनता, गरीब और पद्दलित लोगों की नजर से देखें तो शावेज वह व्यक्ति है जिसने उन्हें अपने पैरों पर खड़ा किया, जिन्हे अपने व्यक्तिगत साहस से उन्हें भी बेमिसाल साहसपूर्ण कार्य करने के लिए प्रेरित किया। लेकिन वेनेजुएला की क्रान्ति की कहानी अभी अधूरी है। उसके कई तरह के अन्त हो सकते हैं जिनके बारे में सोचकर सुखद अनुभूति तो नहीं होती। जनता अभी सीख रही है, बोलिवेरियाई आन्दोलन अभी विकसित हो रहा है। वर्गों के भयंकर ध्रुवीकरण का अन्त ऐसे खुले संघर्ष में होगा कि सभी पार्टियों, प्रवृत्तियों, कार्यक्रमों और व्यक्तियों का उसमें परीक्षण होगा।
ह्यूगो शावेज के साथ मेरे सीमित सम्पर्क कूे आधार पर ही मुझे उनकी व्यक्तिगत ईमानदारी, साहस और दलित-शोषित जनता के उद्देश्य के प्रति उनके समर्पण के बारे में पक्का भरोसा हो गया है। हमारी मुलाकात के पहले भी मैं ऐसा ही सोचता था और अब मैंने प्रत्यक्ष रूप से जो भी देखा और सुना है, वह मेरे इस विश्वास को और भी मजबूती प्रदान करता है। लेकिन जैसा कि मैंने पहले भी कई बार कहा है, व्यक्तिगत ईमानदारी और साहस अपने आप में किसी क्रान्ति की जीत की गारण्टी नहीं बन सकते।
फिर क्या जरूरी है? स्पष्ट विचार, एक वैज्ञानिक समझदारी, एक सत्त क्रान्तिकारी कार्यक्रम, नीतियाँ और प्ररिप्रेक्ष्य, ये सारी चीजें जरूरी हैं।
बोलिवेरियाई क्रान्ति का भविष्य जमीन से उठ रहे जनान्दोलन पर टिका है। मजदूरों की अगुवाई में चल रहे इस जनान्दोलन को अपने हाथ में ताकत केन्द्रित करनी होगी। इसके लिए जरूरी है कि आन्दोलन के सबसे सुसंगत क्रान्तिकारी तबके यानि क्रान्तिकारी मार्क्सवादी धारा को तेजी के साथ विकसित किया जाय।
मेरा यह मानना है कि बोलिवेरियाई आन्दोलन में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है जो मार्क्सवादी विचारों की तलाश में हैं। मुझे यकीन है कि इसके कई नेताओं और पर भी यह लागू होता है। और ह्यूगो शावेज? उन्होंने मुझे बताया कि वे इसलिए मार्क्सवादी नहीं हैं क्योंकि उन्होंने पर्याप्त मार्क्सवादी साहित्य नहीं पढ़ा है। लेकिन वे अब मार्क्सवादी किताबें पढ़ रहे हैं। फिर सामान्य जीवन जीते हुए जो बातें लोग 20 सालों में नहीं सीखते उससे ज्यादा बातें वे क्रान्ति के दौरान 24 घण्टे में सीख जाते है। अन्ततः वेनेज्यूएला के समाज के सारे बेहतरीन तत्वों को मार्क्सवाद अपनी ओर आकर्षित करेगा और उन्हें लड़ने वाली एक अजेय ताकत के रूप में एकजुट करेगा। इसी रास्ते पर चलकर ही जीत हासिल हो सकती है।
very good..:)
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