बुधवार, 17 अक्टूबर 2018

बहनो, अपने सम्मान के लिए, अपनी आजादी के लिए और अपनी जिंदगी के लिए संगठित हो !!!

हम सभी बिहार के मुजफ्फरपुर की ‘बालिका गृह’ की घटना के बारे में जानते हैं। पूरे समाज को शर्मसार कर देनेवाली इस घटना ने हम सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया कि हम कैसे समाज में रहते हैं? आज हमारा समाज कितना सड़-गल गया है। महिलाओं के ऊपर हो रहे अत्याचार से अखबार पटे हुए हैं। भारत महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देशों में पहले पायदान पर पहुँच गया है। दहेज़ हत्या, ऑनर किलिंग, भ्रूण-हत्या, छेड़छाड़ और बलात्कार की अनेकों दुखद घटनाएँ हमारे चारों तरफ घट रही हैं। हम महिलायें इन घुटनभरी खतरनाक स्थितियों में जिंदगी जीने को मजबूर हैं। हालत इतनी बिगड़ चुकी है कि छोटी-छोटी बच्चियों को भी यौन हिंसा का शिकार बनाया जा रहा है।

इसी साल, अगस्त के महीने में एक ऐसा ही रोंगटे खड़े कर देनेवाला वाकया सामने आया। सरकारी धन से चलाये जा रहे मुजफ्फरपुर के ‘बालिका गृह’ में 34 नाबालिग बच्चियों से बलात्कार किया गया। बिहार सरकार की नाक के नीचे बच्चियों के ऊपर हिंसा, तरह-तरह की यातना और बलात्कार के मामले सालों से जारी थे। यह मामला तब खुलकर सामने आया, जब समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव ने ‘टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस’ को बिहार के करीब 100 बाल और बालिका गृहों का सामाजिक ऑडिट करने का निर्देश दिया। जब इन बच्चियों का बयान पॉक्सो कोर्ट के मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किया गया तो इन बच्चियों की आप बीती सुन पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गयी। बच्चियों ने बताया कि उन्हें रोज पीटा जाता था, नशीली दवाइयाँ दी जाती थीं और उनसे बलात्कार किया जाता था।
इस बालिका गृह को चलानेवाले एनजीओ के मालिक ब्रजेश ठाकुर को ‘हंटरवाला अंकल’ कहा जाता था। वह जब कमरे में आता था तो बच्चियाँ डर के मारे सहम जाती थीं। इस घिनौने काम में ब्रजेश ठाकुर के साथ वहाँ की महिला कर्मचारी भी शामिल थीं। उन्होंने भी चंद खनकते सिक्कों की लालच में अपनी आत्माएँ शैतान के हाथ गिरवी रख दी थीं। वे रोज रात बच्चियों को तैयार कर बाहर भेजती थीं और सुबह फिर उन्हें वापस बुला लेती थीं। इसमें शामिल बच्चियों की उम्र 7 से 15 वर्ष के बीच है। कुछ बच्चियों का गर्भपात भी बालिका गृह के एक कमरे में कराया गया था। 2013 में इसी बालिका गृह से 6 बच्चियाँ गायब हो गयी थीं। अक्टूबर 2018 में सीबीआई की देख-रेख में जब पास के श्मसान की खुदाई कराई गयी तो मौके पर हाथ-पैर की हड्डियाँ और खोपड़ी मिली।
इस पूरे मामले में ब्रजेश ठाकुर अकेला गुनहगार नहीं था, बल्कि सरकार में ऊपर से नीचे तक के लोग इसमें शामिल थे, यहाँ तक कि सरकार के बड़े नुमाइंदे भी इसमें लिप्त थे, जिन्हें बचा लिया गया। यानी अपराधी, प्रशासन और नेताओं की गन्दी सांठ-गांठ थी। सरकार खुद इस मामले में लीपापोती कर रही है और जांच को बंद कराने का दबाव बना रही है। यह वही सरकार और प्रशासन है जिनसे जनता को न्याय की उम्मीद होती है। जब रक्षक ही भक्षक बन गए हैं तो वे जनता की रक्षा क्या करेंगे? ऐसी ही घटनाएँ उत्तर प्रदेश के देवरिया, हरदोई, नोएडा और प्रतापगढ़ इलाके के बालिका गृहों से भी सामने आयी हैं। देवरिया के बालिका गृह से 18 बच्चियाँ लापता हैं। इन सभी मामलों में प्रशासन और सरकार में अपनी पहुँच के चलते आरोपी या अपराधी आसानी से जेल की सलाखों से बच गये।
मुजफ्फरपुर की घटना को बीते अधिक दिन नहीं हुए थे कि बिहार के ही सुपौल जिले के एक गाँव के ही युवाओं ने 34 नाबालिग लड़कियों को पीटा। उन्हें तब पीटा गया जब वे अपने साथ हो रहे छेड़छाड़ का विरोध कर रही थीं। यह घटना साफ़ दिखाती है कि पुरुषों की नौजवान पीढ़ी किस तरह अपने रास्ते से भटक गयी है और अनैतिकता के गड्ढे में गिर गयी है। जिन नौजवानों के ऊपर देश और समाज को आगे बढाने की जिम्मेदारी है, वही ऐसी ओछी हरकत कर रहे हैं। ऐसे लम्पट लड़के राह चलती किसी महिला को अपने छेड़छाड़ का शिकार बनाते हैं। दरअसल, शिक्षा और व्यवस्था के पतन के चलते समाज में ऐसे लम्पटों की भरमार हो गयी है।
आगरा के नारी संरक्षण गृह की पूर्व अधीक्षिका ‘गीता राकेश’ को बालिका गृह में गलत काम करने के उम्रकैद की सजा हो चुकी है। वह मानव तस्करी, देह व्यापार, अपहरण, आपराधिक साजिश और लैंगिक अपराध में लिप्त थी। कई अन्य मामलों में अपराधियों को सजायें हो चुकी हैं लेकिन क़ानून का डर भी अपराधियों के हौसले पस्त करने में नाकाम रहा है। इससे यह बात साफ हो जाती है कि कठोर क़ानून इन सभी समस्याओं को जड़ से मिटाने में नाकाफी है। समाज के रग-रग में घुस चुकी महिला विरोधी सोच ही इन सबके लिए जिम्मेदार है। हमें लोगों की सोच बदलनी होगी।

हम जिस घिनौने समाज में रहते हैं, उसमें हम महिलाओं को ‘उपभोग की वस्तु’ माना जाता है। हमें हर तरह के अधिकार से वंचित रखा जाता है। परिवार में, समाज में और नौकरी करते समय हम कहीं भी सिर उठाकर जी नहीं सकतीं। यह सड़ता हुआ समाज हमारे अरमानों का कातिल है। इसलिए महिलाओं को सम्मानजनक जिन्दगी तभी मिल सकती है जब इस समाज में आमूल-चूल बदलाव हो यानी जड़ से लेकर सिर तक पूरे का पूरा समाज बदलने की जरूरत है। यह काम महिलाओं को ही करना है। कोई अवतार नहीं होने वाला। कोई और हमारी लड़ाई नहीं लड़ेगा। हमें खुद आगे बढ़कर संघर्ष के परचम को थामना होगा। हमें संगठन बनाना होगा। बिना संगठन के हम असहाय और कमजोर बनी रहेंगी। बहनो, अपने सम्मान के लिए, अपनी आजादी के लिए और अपनी जिंदगी के लिए, आओ संगठित हो जायें।
तेरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन

तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था।