राजनीतिक विचारधाराओं के बीच वैधानिकता का संघर्ष आखिरकार उन तत्वों
के बीच संघर्ष तक पहुँच जाता है जो मानवीय स्वभाव के घटक हैं. आज पूरी तरह अति
मनोगतता और उस भद्दे जैविक निर्धारणवाद के बीच संघर्ष जारी है जिसे जैव-सामाजिक
गतिविधियों द्वारा एक नमूना बना दिया गया है. निर्धारणवाद के लिए सभी सामाजिक
प्रक्रियाएँ, केवल व्यक्तिगत स्थिर प्रवृत्ति और अनुकूलित क्रमिक विकास के
फलस्वरूप इंसानी जींस में संकेतबद्ध सीमाओं की सामुहिक अभिव्यक्ति हैं. इसके
विपरीत मनोगतता दावा करती है कि सामज द्वारा निर्धारित चेतना सभी मानवीय यथार्थ को
जन्म देती है और जो किसी पूर्ववर्ती जैविक और शारीरिक प्रवृत्ति द्वारा बाधा रहित है,
इसके सभी दृष्टिकोण समान रूप से सही हैं. सबसे अच्छी तरह उदारवादी विचार
जैविक और सामाजिक पहलू को एक सांख्यिकीय मॉडल में मिलाने का प्रयास करता है, यह
दोनों में कुछ मौलिक अन्योन्यक्रियाओं को बढ़ावा देकर, दोनों को समान सापेक्षिक
महत्त्व देता है. लेकिन सुस्पष्ट जैविक और सामाजिक कारणों के बीच कारण-कार्य सम्बन्ध
का विभाजन तब अन्योन्यक्रिया कर सकता है और अपने संकेत-अवरोध के असली स्वभाव को
छोड़ सकता है.
किसी अन्य प्रजातियों की तरह इंसानी जाति के पास भी स्पष्ट रूप से शरीर-रचना-विज्ञान और शरीर-क्रिया-विज्ञान के निश्चित
जैविक गुणधर्म होते हैं जो उनके लिए सहायक और विरोधी दोनों होते हैं. इन गुणधर्मों
का एक भाग अन्य जीवधारियों के समान ही जैविक प्रणाली का हिस्सा है और दूसरा भाग अनोखा
है जो केवल हमारी प्रजाति में विशिष्ट जींसों के कारण है. हम सभी को खाना, पीना और
सांस लेना पड़ता है, हम सभी पर रोगाणु हमला कर सकते हैं, बाहरी तापमान की एक सीमा
है जिसे हमारा नग्न शरीर बर्दाश्त कर सकता है और उससे अधिक होने पर हम सब मारे
जायेंगे. कोई भी ऐतिहासिक आकस्मिकता या चेतना में परिवर्तन इन आवश्यकताओं को नहीं
बदल सकती. लेकिन इसके साथ ही इंसान के संवाद के अंगों और क्रियात्मक हाथों के साथ
मिलकर उसका केन्द्रीय स्नायु तंत्र एक सामाजिक ढाँचे का निर्माण करता है जिसने इन
आवश्यकताओं के ऐतिहासिक रूपों को जन्म दिया है. जबकि इंसानी सामाजिकता भी खुद
हमारी प्रचलित जीव विज्ञान का परिणाम है, इंसानी जीव विज्ञान एक सामाजिकृत जीव
विज्ञान है.
व्यक्तिगत स्तर पर हमारा शरीर-क्रिया-विज्ञान
सामाजिकृत विज्ञान है. रक्तचाप का जीवन चक्र या उम्र के साथ सीरम ग्लूकोज, हमारे
शरीर के आंतरिक और वाह्य भाग के बीच उपकला का अन्तरापृष्ठ, वह तरीका जिससे हम दूरी
या पैटर्न का एहसास करते हैं, अन्य जीवों के हमले का सामना करने के लिए प्रतिरोध क्षमता
की उपलब्धता और हमारे मस्तिष्क में कड़ियों का बनना और टूटना- ये सभी परिवर्तनशील
रूप से वर्गीय स्तर, कामों की प्रकृति, हमारी मानवजाति के सामाजिक स्तर, हमारे
समाज में परिचालित माल और उनके उत्पादन की तकनीकी पर निर्भर करते हैं.
अगले पड़ाव पर हम अपने पर्यावरण को सक्रिय रूप से
चुनते हैं या वे हमारे लिए दूसरों द्वारा चुने जाते हैं, जैसे- कभी-कभी कुछ क्षणों
के लिए कोई दोपहर की गर्मी में काम करने के लिए बाध्य किया जाता है या कभी-कभी कम
आवर्ती निर्णयों द्वारा जैसे कहाँ रहना है, क्या काम करना है, किससे जुड़ना है, कब
और कैसे वंश आगे बढ़ाना है. लेकिन चुनाव को दिशा देने से अधिक विविधतायें किसी
स्थान पर निवास करने या काम करने के वातावरण में होती हैं. शुल्क इकट्ठा करने के
लिए एक नदी का साइट एक राजनीतिक केंद्र के रूप में चुना जा सकता है लेकिन यह उस
घोंघे का प्रजनन स्थल भी हो सकता है जो सेस्टोसोमायसिस बीमारी फैलाता है.
हमारे पर्यावरण का सामाजिक रूप से अनुकूलित निर्माण
और रूपान्तरण जैविक सीमाओं के वास्तविक कार्यान्वयन का निर्धारण करता है. मनुष्य
के निवास का घेरा उस तापमान या ऑक्सीजन या खाने की उपलब्धता की भौगोलिक अधिकता से
सम्बन्ध नहीं रखता है जो सामाजिक रूप से रूपान्तरण रहित दुनिया में हमारे लिए
सहायक हो सकती है लेकिन यह उन चीजों से सम्बन्ध रखता है, जहाँ आर्थिक कार्यवाही और
राजनीतिक सत्ता हमारे तापमान को नियंत्रित करने, ऑक्सीजन उपलब्ध कराने और भोजन
आयात के तरीके देती है. ऐसा करते हुए हम अन्य जीवों के घेरे को भी तोड़ते हैं.
उत्तरी अमरीका की उत्तरी सीमा वह घेरा नहीं है जहाँ गेहूँ के पौधे सफलतापूर्वक पक
सकते हैं लेकिन जहाँ अच्छी फसल के वर्षों में गेहूँ का मुनाफ़ा खराब वर्षों की
क्षतिपूर्ति कर देता है जिससे गेहूँ का औसत मुनाफा अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक
होता है.
जैसा कि तकनीक हमारे और भौतिक परिस्थितियों के बीच
मध्यस्थ का काम करती है, इससे नया पर्यावरणीय प्रभाव पैदा हुआ है. जब गरीबों से
खाना छीनकर तेल उत्पादन में लगा दिया जाता है तो एक कठोर जाडा शहर के वातावरण में
शीतदंश उत्पन्न नहीं करता बल्कि भुखमरी पैदा करता है. नस्लवाद एक पर्यावरणीय कारक
बन गया है जो अधिवृक्क और अन्य अंगों को इस तरह प्रभावित करता है जैसे पहले
ऐतिहासिक युगों में चीते या जहरीले सांप करते थे. जब श्रमशक्ति पूंजीवादी
श्रम-बाजार में बेच दी जाती है, तब ऐसी परिस्थितियाँ तनाव के नमूने के रूप में
व्यक्तिगत ग्लूकोज चक्र को प्रभावित करती हैं और बाकी चीजें कर्मचारी के खुद के चयापचयी
प्रवाह के बजाय मालिक के आर्थिक निर्णय पर अधिक निर्भर करती हैं. इंसानी
पारिस्थितिकी सामान्य तौर पर बाकी प्रकृति के साथ हमारी प्रजाति का सम्बन्ध नहीं
है बल्कि उन सामाजिक रूपों द्वारा विभिन्न समाजों, वर्गों, लिंगों, उम्रों, स्तरों
और जातीयता को बनाए रखने से सम्बन्धित है. इसलिए पूँजीवाद में पाचक ग्रंथि या
सर्वहारा फेफड़े के बारे में बात करने को अतिशयोक्तिपूर्ण
कहना गलत नहीं है.
पर्यावरण का सामाजीकरण भी यह निर्धारित करता है कि व्यक्तिगत जीव विज्ञान का कौन-सा पहलू सम्पन्नता और जीवित रहने के लिए महत्त्वपूर्ण है. मेलेनिन चयापचय (गोरेपन के लिए जिम्मेदार त्वचा के उत्तक की कार्यप्रणाली) अब उष्मा संतुलन से अधिक सम्बन्धित नहीं है बल्कि सामाजिक स्थिति का चिह्न बन गयी है जो उन तरीकों पर प्रभाव डालती है जिनके जरिये लोग संसाधनों तक पहुँचते हैं और विषाक्तता और अपमान को झेलते हैं. लेकिन अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत कोई जीव इस कोण से तनाव में रहता है जबकि होमस्टासिस की शर्तों के तहत वह कई तनावों को झेलता है (होमस्टासिस ऐसी व्यवस्था है जिसके तहत शरीर के अन्दर का ताप, दाब और रक्त-अम्लता आदि स्थिर रहती है.), इसलिए वंचना या तनाव के तहत किसी परिवार के भलाई और स्वास्थ्य के नुकसानदायक परिणामों में जुड़ाव हो सकता है इसके बावजूद कि यह जुड़ाव जो सामने आता है, शारीरिक दृष्टि से मामूली हो. यह विशिष्ट जैविक प्रक्रिया की सामाजिक मध्यस्थता है जो विध्वंसक आर्थिक पतन और स्वास्थ्य और जिंदगी की सामान्य स्थिति में गिरावट के चलते बीमारी से एक दिन के लिए अक्षम हो चुके पहले से अलगावग्रस्त मजदूर की नौकरी छीन लेता है.
जैविक आवश्यकताओं के ऐसे रूपों में परिवर्तन से अलग जो विभिन्न समय और स्थान पर विशिष्ट होती है, मानव जाति के लिए जैविक रूप से सम्भव एक ऐसी सामाजिक अन्योन्यक्रिया जो एक बहुत ही शक्तिशाली गुण है, ऐसा गुण जो व्यक्तिगत जैविक बाधाओं को नकारता है. कोई भी इंसान अपनी बाहों को फैलाकर उड़ नहीं सकता है और न ही लोगों की भीड़ एक साथ बाहों को फैलाकर अपने सामुहिक प्रयास से ऐसा कर सकती है. फिरभी हम सामाजिक प्रक्रिया के फलस्वरूप उड़ते हैं. किताबें, प्रयोगशालाएँ, स्कूल, कारखाने, संचार व्यवस्थाएँ, राजकीय संस्थाएँ और उद्यम वायुयान उत्पादन के साधन हैं, तेल, हवाई अड्डा, पायलट और मशीन हमारे लिए वह चीज संभव बनाती हैं जिसे लिओनार्डो नहीं कर सके. न ही "समाज" उड़ता है बल्कि वह इंसान जो हवा में एक जगह से दूसरी जगह जाता है, वह उड़ता है. बिना बाहरी सहायता के कोई भी इंसान कुछ तथ्यों और चित्रों से अधिक याद नहीं रख सकता, लेकिन सामाजिक उत्पाद के तौर पर "अमरीका का सांख्यिकी सार" और इसे रखने वाला पुस्तकालय इन बाधाओं को नकार सकता है. लेकिन इस नकार को लाने वाली सामाजिक प्रक्रिया तभी शुरू होती है जब अस्तित्व की शर्तें बाधा समझी जाती हैं, जब एक वैकल्पिक दुनिया सम्भव मानी जाती है. हालाँकि इंसान के केन्द्रीय स्नायु तंत्र के सामान्य जैविक गुण को, वास्तव में उन चीजों की मानसिक संरचना बनाने में सक्षम होना चाहिए जो अस्तित्व में नहीं हैं और जिन्हें ऐच्छिक तौर पर आगे बढ़कर जमीन पर उतारना है, जिसका दायरा हम बदलने की कल्पना करते हैं,वह सामाजिक रूप से निर्मित होता है. वास्तव में अश्लील ह्रासवादी दावा करते हैं कि इंसान निश्चित तरीके से व्यवहार करने के लिए अनिवार्य तौर पर अपने जीव विज्ञान द्वारा संचालित होता है, यह बात उस व्यवहार को संदर्भ से अलग करने और उसे प्रश्नों से परे अस्तित्व की बिना जांची शर्तों के हिस्से के रूप में "जिंदगी के तथ्य" के तौर पर रखने के मामले में स्वयं-कार्यान्वित है. इसीलिए वर्तमान जैविकता और सामाजिकता पर विचारधारात्मक संघर्ष उन लोगों के बीच प्रारम्भिक राजनीतिक टकराव है जो इंसानी अस्तित्व की प्रकृति को बदल देना चाहते हैं और जो इसे वर्तमान रूप में रखना हैं.