गुरुवार, 7 जनवरी 2016

निजी और सार्वजनिक कम्पनियों का नापाक गठबन्धन

बेरोजगारी का दंश झेल रहे एक नौजवान को एक एलईडी बल्ब मार्केटिंग कम्पनी ने साक्षात्कार के बाद नौकरी पर रख लिया। उसके काम का इलाका रामपुर, हिमाचल प्रदेश था। वेतन कम था लेकिन उसने सोचा कि बेरोजगार रहने से कुछ काम करना बेहतर है। उसे नौकरी का अनुभव और हिमाचल के खूबसूरत पहाड़ों में घूमने का मौका मिलेगा। काम के दौरान उसे आश्चर्यचकित कर देनेवाली एक घटना का सामना करना पड़ा। वेबसाईट खोलकर जब उसने रामपुर इलाके में अपने कामों का ब्योरा दर्ज करना चाहा तो वह इलाका कम्पनी के वेबसाईट पर नहीं था। उसे सन्देह हुआ। जाँचपड़ताल करने पर उसे पता चला कि कम्पनी में भारी गड़बड़ी चल रही है। कोई बड़ा घोटाला जड़ें फैला रहा है। उसने ऊपर के अधिकारियों से उसकी शिकायत की। उन्होंने उलटा उस पर ही क्षमता की कमी और लापरवाही का आरोप लगाकर उसे नौकरी से बाहर का रास्ता दिखा दिया उसने वहाँ क्या कुछ देखाजाना इसी के बारे में यह लेख है।
कांग्रेस की पिछली सरकार नें 2009 में सार्वजनिक क्षेत्र में एनर्जी एफिसिएन्सी सर्विसेस लिमिटेड (ईईएसएल) कम्पनी की स्थापना की थी। यह एनटीपीसी, पीएफसी, आरईसी और पावर ग्रिड की संयुक्त उपक्रम वाली कम्पनी है। इस कम्पनी ने 2014 तक कोई काम नहीं किया और केवल कागजों तक ही सीमित रही। मोदी के सत्ता में आने के बाद इस कम्पनी को देश के 100 शहरों में एलईडी बल्ब लगाने और उनके  वितरण का काम सौंपा गया। कम्पनी का अपना कोई आधारभूत ढाँचा नहीं है और इतना बड़ा प्रोजेक्ट पूरा कर सकने की क्षमता भी नहीं है। यह कम्पनी न तो एलईडी का उत्पादन करती है और न ही उसके पास एलईडी बल्ब लगवाने का कोई साधन ही है। इन तथ्यों को नजरअन्दाज करते हुए कम्पनी को यह काम दिया गया।
ईईएसएल कम्पनी अपना प्रोजेक्ट निजी क्षेत्र की कम्पनियों को ठेका देकर करवाती है। एलईडी बल्ब बनाने का काम ओसराम, ओरिएंट इलेक्ट्रिकल्स, सूर्या, स्टार लाइट, फिलिप्स और बजाज जैसी निजी क्षेत्र की कम्पनियाँ करती हैं। बल्बों के वितरण का काम भी निजी कम्पनियों के द्वारा कराया जाता है। बल्ब वितरण करनेवाली ये कम्पनियाँ फिर से छोटीछोटी कम्पनियों और वेंडरों की सहायता से वितरण का काम करती हैं। उपभोक्ताओं के लिए बल्ब की कीमत 100 रुपये रखी गयी है। बल्बों का वितरण दो तरह के उपभोक्ताओं में किया जाता हैपहला घरेलू क्षेत्र के और दूसरा व्यवसायिक क्षेत्र के। सरकारी नियम में घरेलू उपभोक्ताओं को अधिकतम 10 और व्यावसायिक उपभोक्ताओं को अधिकतम 15 बल्ब दिये जाने का प्रावधान है। एक उपभोक्ता को कम से कम 5 बल्ब लेना आवश्यक है। दो बल्बों का नकद भुगतान करना पड़ता है और बाकी तीन बल्ब किस्त पर दिये जाते हैं जिनके लिए 10 रुपये प्रति बल्ब नगद भुगतान लिया जाता है। किस्तों की बकाया धनराशि उपभोक्ता के बिजली के बिल में हर महीने जोड़ दी जाती है जिसकी वसूली बिजली विभाग करता है। इसके लिए उपभोक्ता की जानकारी से सम्बन्धित दस्तावेज कम्पनी की वेबसाइट पर अपलोड किये जाते हैं। इन्हीं गणितीय जटिलताओं का फायदा उठाकर लूट को अंजाम दिया जाता है। 
एलईडी मार्केटिंग कम्पनी उन उपभोक्ताओं के पैसों में धाँधली करती है जो खरीदे गये बल्बों का पूरा नकद भुगतान करते हैं। यदि कोई उपभोक्ता 5 बल्बों के पूरे 500 रुपये नकद चुका देता है तो यह कम्पनी उस उपभोक्ता को किस्तवाले उपभोक्ता में बदल देती है। 500 रुपये में से 230 रुपये की राशि को नकद और 270 रुपये की किस्त के रूप में दिखा देती है। इस तरह यह कम्पनी प्रति नकद उपभोक्ता 270 रुपये का गबन करती है। यह राशि उपभोक्ता के बिजली बिल के साथ 10 रुपये प्रतिमाह वसूली जाती है। लूट का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस कम्पनी के मैनेजर और साधारण वेंडर भी कईकई दिनों तक प्रथम श्रेणी के पाँच सितारा होटलों में अय्यासी कर सकते हैं। इस कम्पनी में काम करनेवाले साधारण लड़केलड़कियाँ 300 रुपये प्रति दिन के हिसाब से हिमाचल प्रदेश की हाड़ कँपा देने वाली ठंड में सुबह से शाम तक काम करते हैं। कम्पनी के भंडारण घरों को व्यवस्थित करने वाले कर्मचारियों का वेतन तो दोदो महीनों तक रोककर रखा जाता है।  कम्पनी में काम करनेवाले नौजवानों से 12 से 15 घंटे काम लिया जाता है लेकिन उनका वेतन इतना कम है कि किसी तरह से वे अपनी जिन्दगी की मूलभूत जरूरतों को पूरा कर पा रहे हैं। इस तरह कम्पनी एक तरफ नकद उपभोक्ता को किस्त उपभोक्ता में बदलकर करोड़ों का घोटाला कर रही हैं और दूसरी तरफ कम्पनी में काम करनेवाले नौजवानों का नयेनये तरीकों से शोषण करती हैं। शोषण और लूट में निजी और सरकारी कम्पनियों का यह याराना बेजोड़ है। पिछले दिनों इसी तरह के एक घोटाले का खुलासा मुम्बई की एक पत्रिका सामनाने किया था। इसमें बताया गया था कि केन्द्र की भाजपा सरकार ने एलईडी बल्ब लगाने का ठेका ईईएसएल नामक मृत कम्पनी को दिया है जिसमें करीब 25,000 कारोड़ का घोटाला हुआ है।    

कांग्रेस की मनमोहन सरकार घोटालों की सरकार थी। यह सरकार भी उसी के नक्शे कदम पर चल रही है। दरअसल हमें मुखौटा देखने के बजाय अन्दर की सच्चाई जाननी चाहिए। चाहे कोई सरकार आ जाये कुछ चीजें कभी नहीं बदलती जैसे नवउदारवादी नीतियाँ जो इस दौर के घोटालों की जननी है। 1990 में नवउदारवादी नीतियों के जरिये देशीविदेशी कम्पनियों को लूट के लिए बेलगाम छोड़ दिया गया। इन नीतियों का ही नतीजा है कि पर्यावरण के लिए फायदेमन्द एलईडी बल्ब का व्यवसाय घोटालों के हत्थे चढ़ गया है। ऐसे ही अनगिनत घोटालों और अथाह शोषण से एक तरफ मुट्ठीभर लोगों के लिए स्वर्ग का निर्माण हुआ तो दूसरी तरफ देश की बहुतायत मेहनतकश जनता कंगाली और बदहाली की गहरी खाई में धकेल दी गयी। मेहनतकश जनता का खून निचोड़कर अकूत मुनाफा कमाने वाली यह व्यवस्था ही घोटाले के केन्द्र में है। भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने के लिए छात्रों, नौजवानों और उत्पीड़ितों को संगठित होकर एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण करना होगा जिसके केन्द्र में मुनाफे की हवस’’ नहीं बल्कि इनसान और इनसानी मूल्यों’’ का महत्त्व हो।

––ललित कुमार

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