बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

शान्तिवादी प्रवचन

19 वीं सदी में स्पेनिश कलाकार फ्रांसिस्को गोया लुसिएंतेस की नक्काशियाँ युद्ध की निरर्थकता का संदेश फैलाने में मदद करती हैं.
सौजन्य से: इंस्टिट्यूटो  सर्वंतेस, नई दिल्ली
"एस्त्रगोस डे ला गुएर्रा: युद्धस्थल पर मानव और पशुओं दोनों के शवों का ढेर लगा है. गोया की नक्काशियाँ वास्तविकता के बहुत करीब हैं.
असंख्य युद्धों और उसके द्वारा मानवता के ऊपर बरपाई गयी तबाही दुनिया के किसी भी ऐतिहासिक वृत्तांत में प्रमुख स्थान रखती हैं. जबकि एक तरफ युद्धों ने बड़े साम्राज्यों के स्वार्थों  को आगे बढ़ाने में मदद की, तो  दूसरी तरफ उसने लोगों को अकथनीय दुख पहुँचाया.
एक तरफ युद्ध क्षेत्रों में लोग भूख से मर गये या
अपने देश से विस्थापित हुए, तो दूसरी तरफ शासक वर्ग द्वारा देशभक्ति के एक झूठे आदर्श से भ्रमित होकर अन्य लोगों ने अपने देश के लिए अपने जीवन का बलिदान दे दिया. दुनियाभर के इतिहासकारों ने बताया है कि कैसे शासक वर्ग इन युद्धों का इस्तेमाल करके अपनी महत्वाकांक्षाओं और आकांक्षाओं को पूरा करता है.
"तम्बिएँ एस्तो" (यह और भी): युद्ध में अभाव का सामना करना पड़ा. गोया इस रूप में शीर्षकों के द्वारा अपने दृश्यों के दस्तावेजी प्रकृति पर बल देते हैं.
युद्ध की निरर्थकता के दृश्य का चित्रण समकालीन युग के फोटो पत्रकारों  के द्वारा  दस्तावेजीकृत किया गया है, जिन्होंने अपने चित्रों में बड़े पैमाने पर विस्थापन, भूख, लूटपाट और दंड की क्रूरता के रूप में युद्ध के विषयों को चित्रित किया. लेकिन फोटोग्राफी के लोकप्रिय बनने से पहले, स्पेनिश चित्रकार और नक्काशीकार फ्रांसिस्को जोस डे गोया  वाई लुसिएंतेस (1746-1828) जैसे कलाकारों ने युद्ध के विषयों और युद्ध के बाद आने वाली विभीषिका पर दिलचस्पी के साथ प्रकाश डाला.

15 जुलाई और 12 सितंबर के बीच दिल्ली में सर्वंतेस के संस्थान में आयोजित गोया के 19 वीं सदी की नक्काशियों की एक प्रदर्शनी- लॉस देसस्त्रेस डे ला गुएर्रा (युद्ध की आपदाओं), ने जितना संभव हो वास्तविकता के करीब युद्ध की भयावहता को दर्शाया. आधुनिक समय में इस प्रदर्शनी की लोकप्रियता गोया की प्रासंगिकता का सबूत है, खासकर तब जब अमेरिका के द्वारा लोकतंत्र की बहाली के बहाने शुरू किये गए अफगानिस्तान और कई अन्य छोटे युद्धों की प्रासंगिकता पर दुनिया बहस कर रही है.

 
"कंट्रा एल बीएन जेनेरल": सेनाध्यक्ष दूर सिंहासन पर बैठते हैं जबकि लोग देशभक्ति की झूठी भावना के लिए युद्ध लड़ते हैं.
युद्ध में नुकसान और सही गयी कठिनाइयों का प्रदर्शन करते हुए ये तस्वीरें किसी भी युद्ध में घटनाओं की बारीकी को समझने में गोया की सटीकता दिखा रही हैं. इससे यह पता चलता है कि गोया की नक्काशियों और क्रीमिया युद्ध से वियतनाम युद्ध की क्रमशः तस्वीरों के विषय ज्यादातर मामलों में समान ही नहीं बल्कि बिलकुल अभिन्न रहे हैं, युद्ध के पीछे राजनीतिक और आर्थिक तर्क की तह में गए बिना गोया और फोटो पत्रकारों दोनों  के द्वारा इस्तेमाल विभिन्न ऐतिहासिक अवधि में युद्ध के दुखद चित्रण में समानता दिखाती हैं.
यह कहा जा सकता  है कि गोया को अपने विषय की समझ में महारत हासिल थी, जबकि यह काम आज के कलाकार काफी आसानी से बहुत विश्वासोत्पादक ढंग से नहीं कर सके. फोटो पत्रकार स्वाभाविक रूप से अपने कैमरों से ऐसे ढांचें बना सकते हैं, लेकिन निरीक्षण करके और फिर इसे एक ढाँचे में डालना गोया के सामान जानकार चित्रकार और पर्यवेक्षक की भूमिका के बीच अदला-बदली का काम एक मास्टर ही कर सकता है.

"तम्पोको": सजा पर नक्काशियों की एक श्रृंखला में, मृत्युदंड की अवधारणा पर गोया ने सवाल उठाया है और जल्लाद की विकृतियों पर प्रकाश डाला है.
नैपोलियन के फ्रांसीसी सैनिकों के खिलाफ युद्ध के बाद स्पेनिश कमांडर, जनरल पालाफोक्स ने जब गोया को एक स्पेनिश शहर ज़रागोज़ा में आमंत्रित किया, तब प्रदर्शित नक्काशियाँ गोया द्वारा कल्पित की गयी. (नक़्क़ाशी की तकनीक में एक धातु की सतह पर कटौती करके डिजाइन प्रदान करने के लिए एक तेज अम्ल का प्रयोग किया जाता है. यह रूमानी युग के ज्यादातर चित्रकारों द्वारा इस्तेमाल किया गया था.) आजादी के युद्ध(1808-1814) के दौरान, ज़रागोज़ा शहर फ्रांसीसी सेना द्वारा दो बार घेर लिया गया. अपने सैनिकों द्वारा वीरतापूर्ण प्रतिरक्षा के बाद पालाफोक्स ने गोया, फर्नांडो ब्राम्बिला और जुआन गल्वेज़ सहित विभिन्न कलाकारों को शहर में महत्वपूर्ण स्मारकों पर बम की वजह से बरपायी गयी तबाही देखने के लिए आमंत्रित किया. यद्यपि ब्राम्बिला और गल्वेज़ ने खंडहरों को उनकी प्राकृतिक अवस्था में चित्रित किया, गोया ने युद्ध की भयावहता को नक्काशियों की एक श्रृंखला में दर्शाया, जिसे पूरा करने में 10 साल(1810-1820) लगे. सान फ़र्नांडो के ललित कला अकादमी ने गोया की मृत्यु के 34 साल बाद 1862 में उनकी 80 मूल नक्काशियों को अधिगृहीत किया.
इस प्रदर्शनी के अध्यक्ष, स्पेनिश मूर्तिकार जुआन बोर्देस ने इसका वर्णन किया: "लॉस देसस्त्रेस में तीनों भाग अलग-अलग पहचाने जा सकते हैं. पहले भाग में, एक प्रमाणित सच्चाई के साथ गोया ने वास्तविक जीवन की घटनाओं की छवियों को प्रदान किया, लेकिन सभी चित्रों में आलोचनात्मक चेतना से अंतर्लिप्त होकर वह ठोस घटनाओं के भी आगे गए. दूसरे भाग में, भूखमरी (1811) के वर्ष की भयावहता के साथ मैड्रिड की सड़कों पर युद्ध के अपने जीवन के अनुभवों को उन्होंने पुनर्व्याख्यायित किया, यह दैनिक जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव के माध्यम से युद्ध की उपस्थिति का वर्णन था. अंत में, उन्होंने कुछ चित्रों के लिए प्रतीकों का प्रयोग किया, इन्हें उन्होंने काप्रिकोस एन्फैतिकोस (भारी सनक) कहा. निरंकुशता की बहाली और संवैधानिक आदर्शों के टूटने की आलोचना के साथ गोया ने इनमें युद्ध के बाद के समय के राजनीतिक परिणामों को दर्शाया. उन्होंने उस रास्ते की निंदा की जिसमें सामान्य लोगों को देशभक्तिपूर्ण प्रतिक्रियावादी नारे के तहत युद्ध में बलिदान होने के लिए झोंक दिया गया था और शासक वर्गों द्वारा अपने विशेषाधिकार की सुनिश्चितता के लिए निर्दोष लोगों के खून को निःसंकोच इस्तेमाल किया गया था."
(ऊपर, और नीचे) किसी भी युद्ध में गोया द्वारा घटनाओं की बारीकी को समझने में सटीकता को दिखाने के लिए, युद्ध में हुए नुकसान और कठिनाइयों की तस्वीरें भी प्रदर्शनी में दिखाई गयी.
18 वीं सदी में गोया रूमानी युग के एक लाक्षणिक चित्रकार थे. उनके द्वारा पसंद के विषयों से इसकी पुष्टि होती है. जब युद्ध का मुख्य कारण राजनीतिक और आर्थिक था, उस पूर्ववर्ती प्रत्यक्षवादी युग के विपरीत, उन्होंने युद्ध के दोनों पक्षों को युद्ध अपराधी और उस अपराध से पीड़ित के रूप में दर्शया. स्पष्टतः उनकी नक्काशियाँ कुलीन प्रबुद्धता के युग की सामाजिक और राजनीतिक मानदंडों के खिलाफ विद्रोह करने की मांग करती हैं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मूल्य ऊंचा उठाती हैं. गोया ने अपने संरक्षक, पालाफोक्स की मांग के परे जाकर भी नक्काशियां की. नेपोलियन के आक्रमण के खिलाफ प्रायद्वीपीय युद्ध के प्रकरण से अपनी नक्काशियों में गोया और आगे बढ़े. उन्होंने उस युद्ध के लिए संकेतों का सामान्यीकरण और अपने संदेशों को कालातीत बनाने का फैसला किया. उन्होंने किसी का पक्ष नहीं लिया था, और मैड्रिड में भयानक भूख और दरिद्रता या चीनचोन शहर के पास के गाँव में पड़ाव जैसी स्थिति की कहानियों के बारें में वे अपने परिवार के सदस्यों से सुन चुके थे. वह जानते थे कि इन तात्कालिक परिस्थितियों को कैसे युद्ध विरोधी प्रतिरूप में बदला जाए.
इन चित्रों में छवियों की फ़ोटोग्राफिक भाषा का पूर्वानुमान है क्योंकि इन्हें फोटो के रूप में पढ़ा जा सकता है. उनके अन्दर एक सतर्क रचना की कमी है ताकि वे एक स्वांगपूर्ण दृश्य की तरह लगे, जिससे उनके भयावह संदेश को कम किया जा सके. सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर हमारा ध्यान केन्द्रित करने के लिए, फ्रेम में बिना सूचना के रिक्त स्थान हैं, यह प्रभाव एक फोटोग्राफर फ्लैश की चकाचौंध के साथ या फोकस के बाहर कुछ भाग छोड़कर प्राप्त करता है. जिस तरह फोटोग्राफी में अनुशीर्षक (कैप्शन) का उपयोग होता है, यो लो वि, वाई एस्तो तम्बिन और एएसआई सुसडियो (मैंने यह देखा, और यह भी, और यह कैसे हुआ) जैसे शीर्षकों के साथ यही काम गोया अपने दृश्यों के दस्तावेजी प्रकृति पर जोर देने के लिए करते हैं. वास्तव में यह पहलू उनके काम की प्रकृति को पत्रकारिता का रूप प्रदान करता है.
बोर्देस लिखते हैं: "गोया का काम कला के इतिहास में एक मिसाल है, चित्रकला में युद्ध रूपांकन आम तौर पर कलाकारों द्वारा तब इस्तेमाल किया गया, जब शक्तिशाली व्यक्तियों ने उन्हें ऐसा करने के लिए नियुक्त किया. जाहिर है कि युद्ध के मैदान में अपने कार्यों की आलोचना वे स्वीकार नहीं करते. लेकिन जब कलाकार ने व्यक्तिगत तौर पर इन रूपांकनों को चुना, तब कलाबोध के संज्ञान द्वारा आकर्षित उसने हमेशा वैसा ही किया, जैसा उसके अन्दर की प्रतिरोध क्षमता और जुनूनी संघर्ष के जरिये एक समस्या को हल करने में उसकी दिलचस्पी थी."
वह आगे कहते हैं: "शायद ही कभी युद्ध आलोचना की एक वस्तु के रूप में चुना गया है और इसके एकमात्र दो अपवाद मालूम पड़ते हैं जैसे- फ्रांसीसी नक़्क़ाश जाक गल्लोट (1592-1635) और जर्मन हंस उलरिच फ्रैंक (1605-1675).गल्लोट की दो छोटी श्रृंखलाएँ थी, एक 'लेस पेतितेस मिसेरेस' (लघु दुख) की 1632 में नक्काशी की गयी और 1636 में प्रकाशित हुई और दूसरी अधिक विस्तृत थी, जिसका शीर्षक 'लेस मिसेरेस एट मल्हयूर्स डे ला गुएर्रे' (दुख और युद्ध के कष्ट) है .. .. लेकिन प्लेटों के घटे हुए संरेख और प्रत्येक में अधिक संख्या में दिखाई देने वाले सूक्ष्तम चित्रों के अन्दर समाहित क्रूरता की कार्यवाहियों के दृश्यव्य प्रभाव को कम करते हैं."
"एनआई पोर इसास": एक महिला को यौन आक्रमण की पीड़िता के रूप में दिखाया गया है.
पीड़ितों के बारे में उनका चित्रण भी अधिक वास्तविक और सूक्ष्म है. कब्र के दृश्यों में, गोया दर्द की बाइबिल प्रतीक को पुनर्जीवित करते हैं.  शव-मैथुन द्वारा एक मृत महिला के शरीर की यौन विकृति का एक ह्रदय विदारक चित्र दिखाया गया है. जबकि यौन अपमान के शिकार एक औरत छापामार सेनानी के रूप में दिखायी गयी है. शहरों में भूखमारी के सामान युद्धक्षेत्र में भी मौत के दृश्य मिलते हैं.
उलरिच फ्रैंक ने 28 नक्काशियों की एक श्रृंखला बनायी, लेकिन इनमें 'सैनिकों द्वारा निहत्थे नागरिकों पर हमला करने' वाले केवल हिंसक दृश्यों को दिखाया गया है, इनमें प्रतिशोध दृश्यों का अभाव है. हालांकि, बोर्देस का मानना है कि गोया के काम की प्रकृति बहुत अधिक जटिल और अदृश्य अर्थों से सम्पन्न है. उदाहरण के लिए, युद्धस्थल की अपनी नक्काशियों में, गोया ने उन्हें एक अराजक स्थिति में दिखाया है, जहां आदेश का पालन नहीं होता या जहां एक गलती और भी क्रूर और तर्कहीन टकराव के साथ वीरता की एक महान प्रदर्शनी को उपहास में बदल डालती है. युद्धस्थल भी अनाम मौतों के स्थान हैं और जहां घायलों की इसलिए देखभाल की जाती है कि वे पुन: लड़ाई में शामिल हो सकें.
"बर्बरोस": युद्धों में प्रताड़ना और बर्बरता का एक चित्रण
मृत्युदंड के खिलाफ गोया दृढ़ता से सामने आये और जल्लाद की विकृतियों और अन्यायपूर्ण तर्क द्वारा दूषित मुकदमों को दिखाया. उन्होंने दिखाया है कि कैसे रोजमर्रा के जिंदगी की विकृतियाँ युद्ध के दुखद परिणाम का सहउत्पाद थी. एक नक़्क़ाशी में, हमलावर सैनिकों के आगमन द्वारा पीड़ित लोगों की दुर्दशा अपने घरों के जलाए जाने और नुकसान से बढ़ गयी है. 1811 में, गोया ने मैड्रिड के अपने प्रसिद्ध चित्रण में दिखाया कि कैसे दोनों स्पेनिश रईस और आक्रमणकारी जनता में भोजन की कमी और शहर में रोग फैलने के प्रति उदासीन थे.
"नो से पुएदे सबेर पोर कुए": ईसाई धर्म में विश्वास पुनर्स्थापित करने के लिए यातना और फाँसी के बाद शरीर को बाइबिल के चित्रों की सहायता से ढंका जाता है. इसके अलावा न्याय की एक गलत  धार्मिक भावना के माध्यम से अत्याचार को भी न्यायोचित ठहराया जाता है.
शांतिवादी प्रवचन के रूप में नक्काशियाँ एक ठोस उदाहरण हैं कि  कैसे जमें हुए खून से सहानुभूति जुटाई जाती है और अंततः युद्ध की उपयोगहीनता  का संदेश फैलाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है.
"यसों टैन फिएरस: संघर्ष में फंसी महिलाओं के अपने चित्रण में, गोया ने आक्रमणकारियों के शिकार और छापामार सेनानियों के रूप में भी महिलाओं को दिखाया है. यहाँ, एक छापामार लड़ाकू महिला कंधे के पास अपने बच्चे को बाँध कर लड़ रही है.
गोया की सिद्धहस्तता युद्ध की आपदाओं पर उनकी नक्काशियों में अच्छी तरह से परिलक्षित होती है. फोटो पत्रकारिता के सौंदर्यशास्त्र के विकास में उनके योगदान को हमारे युग के फोटोग्राफर भूल नहीं सकते.
-अजय आशीर्वाद महाप्रशास्ता
 (फ्रंटलाइन से साभार)

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