शुक्रवार, 22 मई 2020

यह समय एक होने का है न कि लांछन लगाने का।

आज भी कुछ लोग यह सवाल करते हैं कि चीन ने महामारी पर कैसे काबू पा लिया? लेकिन वे यह लेख पढ़ना नहीं चाहते, जिसमें इसकी जानकारी दी गयी है.


यह विचारोत्तेजक लेख फरवरी में मंथली रिव्यु (https://mronline.org/2020/02/07/this-is-the-time-for-solidarity-not-stigma/) में छपा था. उसी समय साथी राजेश से इसके अनुवाद को लेकर बात हुई थी और उन्होंने इसका अनुवाद तुरंत करके दे भी दिया. लेकिन अपनी व्यस्तता के चलते मैं इसे ब्लॉग पर पोस्ट नहीं कर पाया. चीन ने कोरोना महामारी से कैसे संघर्ष किया, यह इस लेख का विषय है जो आज भी बहुत प्रासंगिक है.

प्यारे दोस्तो,
त्रिमहाद्वीपीय सामाजिक अनुसंधान संस्थान की ओर से आप सबका अभिवादन।

चीनी गणतन्त्र के शहर वुहान में दिसंबर 2019 में कई लोगों में एक संक्रमण फैलना शुरू हुआ। शुरुआती लक्षणों से पता चला कि यह वायरस हयूनान सी फूड के थोक बाजार से पैदा हुआ। लेकिन अभी तक इसके बारे में कुछ पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता। इस कुख्यात कोरोना वायरस ने पहले महीने में ही सैकड़ों लोगों को संक्रमित कर दिया। संबन्धित अधिकारियों ने तीस शहरों को गंभीर आपातकाल के तहत और देश के बड़े हिस्से को बाकी दुनिया से एकदम अलग करने को कहा है जिसमें 11 करोड़ से ज्यादा आबादी वाला वुहान शहर भी शामिल है। 30 जनवरी, जब कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या दस हजार पहुँच गयी तो विश्व स्वास्थ संगठन (डबल्यूएचओ) ने वैश्विक स्वास्थ आपातकाल की घोषणा की।

डबल्यूएचओ के पत्रकार सम्मेलन में महानिदेशक टेड्रोस अधनोम ने कहा, “जिस रफ्तार से चीन ने प्रकोप का पता लगाया, वायरस को अलग किया, जीनोम को अनुक्रमित किया और डबल्यूएचओ के साथ इसे साझा किया। इसकी तारीफ शब्दों से परे है, पूरी दुनिया इसकी कायल है। यह चीन का पारदर्शिता के प्रति प्रतिबद्धता और दूसरे देशों को समर्थन करना है। वास्तव में चीन तमाम तरह से इस प्रकोप पर प्रतिक्रिया के नए मानक स्थापित कर रहा है। यह कोई अतिशियोक्ति नहीं है। नव घोषित कियाओ कलेक्टिव ने एक छोटी सी रिपोर्ट प्रकाशित की। यह रिपोर्ट ऐसी महामारी के वक्त पूंजीवाद के समक्ष चीनी समाजवाद के फायदे बताती है। क्योंकि पूंजीवादी व्यवस्था यह कभी नहीं समझपाती कि मुनाफे से ज्यादा प्राथमिकता लोगों को देने का क्या मतलब है। टेड्रोस ने तीन महत्वपूर्ण कथन के साथ अपनी बात खत्म की।

यह समय तथ्यों का है न कि भय का।
यह समय विज्ञान का है न कि अफवाहों का।
यह समय एक होने का है न कि लांछन लगाने का।

तथ्यों और एक होने का सवाल महत्वपूर्ण है। अमरीका के व्यापार सचिव विलबूर रॉस ने हास्यास्पद रूप से उम्मीद जताई कि कोरोना वाइरस का प्रकोप चीन की अर्थव्यवस्था को कमजोर करेगा और अमरीका के लिए नौकरी लाएगा। असंवेदनशील होने के अलावा यह टिप्पणी अमरीका जैसी जगहों पर पुनर्जीवन आपूर्ति श्रंखला की समझ के बारे में कमी को दर्शाती है। अमरीका चीनी उत्पादों पर कार और कंप्यूटर के अलावा भी निर्भर है। अमरीका में दवाओं के लिए 80 प्रतिशत दवा सामाग्री का उत्पादन चीन और भारत में होता है और अमरीका ले लिए 90 प्रतिशत विटामिन सी की खुराक चीन में बनती है। टेड्रोस की एक होने के लिए की गयी अपील को हमारा मार्गदर्शन करना चाहिए न कि लांछन से और न ही व्यापार युद्ध से जो साम्राज्यवादी गुट चाहता है।


अपने बयान के बीच में डबल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस ने कहा कि “मैं हजारों बहादुर स्वास्थकर्मियों और पहली कतार में खड़े लोगों का भी धन्यवाद व्यक्त करता हूँ जो स्प्रिंग त्योहार (चीन में नववर्ष पर एक सप्ताह का त्यौहार) के बीच में बीमारों का इलाज करने के लिए 24 घंटे, सातों दिन काम कर रहे हैं, जिंदगियाँ बचा रहे हैं और इस प्रकोप को नियंत्रण में ला रहे हैं”। संसाधनों को नए अस्पताल बनाने में लगा दिया गया है। जैसे वुहान हुओशेंशान अस्पताल रिकॉर्ड गति से बना और इस हफ्ते चालू भी हो गया।
  
चीन के भीतरी इलाकों से डॉक्टर और नर्स वुहान में संक्रमित लोगों की मदद के लिए जारहे हैं। संघाई चिकित्सा उपचार विशेषज्ञ समूह के मुख्य डॉक्टर झांग वेंहोंग ने कहा “चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य जो डॉक्टर और चिकित्सक हैं वह अग्रिम पंक्ति में होने चाहिए”।
झांग वेंहोंग ने कहा जब डॉक्टर और नर्स कम्युनिस्ट पार्टी में भर्ती होते हैं तो वे लोगों की सेवा करने की शपथ लेते हैं। यही शपथ उनका आज मार्गदर्शन कर रही है। वुहान की यूनियन मेडिकल कॉलेज में 31 नर्स ने अपने लंबे बाल कटवा लिए जिससे उन्हें अपनी शिफ्ट के लिए तैयार होने में कम समय लगे। कम्युनिस्ट पार्टी के युवा डॉक्टर वायरस पर नियंत्रण के लिए अस्पताल में शिफ्ट के लिए झुंड के झुंड में आ रहे हैं। सरकारी कंपनियाँ अनगिनत मास्क बना रही हैं। खाध्य नियंत्रण ने अवसरवादी मंहगाई को रोक रखा है। योजना बनाने वालों को जीडीपी पर असर के लिए अलग से विचार करने को कहा गया है। वे कहते हैं- जनता को हर हाल में मुनाफे से ज्यादा तरजीह देनी होगी। 

त्रिमहाद्वीप सामाजिक अनुसंधान संस्थान में, हम वैश्विक स्वास्थ संकट के साथ-साथ समाजवादियों की असीम प्रतिबद्धता, समाजवादी राज्यों- चिकित्सा पर एकता के बारे में चिंतन-मनन कर रहे हैं। यह सवाल तब उठा था जब बोलिविया और ब्राज़ील दोनों ने क्यूबन डॉक्टर्स को निर्वासित कर दिया था। जिनमें से ज़्यादातर इन देशों के औध्योगिक और खेत मजदूरों के लिए चिकत्सा सुविधाओं का आधार थे। 2014 में, टाइम पत्रिका ने इबोला से लड़ने वाले को परसन ऑफ द इयर (साल का सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति) चुना था। जब इबोला के प्रकोप ने पश्चिमी अफ्रीका को मौत की चपेट में लिया, तब क्यूबा के चिकित्सक समुदाय ने यहाँ जाकर बीमारी से लड़ने का निर्णय लिया। सबसे बड़े महाद्वीप-पश्चिमी अफ्रीका में क्यूबा से 256 नर्स और चिकित्सक आए। प्रतिबद्धता इतनी ज्यादा थी कि डॉ फेलिक्स बाएज, एक क्यूबन डॉक्टर जो इबोला से संक्रमित हो गए, स्विस अस्पताल में उनकी हालत में सुधार आया, फिर वो वापिस क्यूबा आ गए, फिर भी उनकी इच्छा थी कि वह सिइरा लियोने (पश्चिमी अफ्रीका का एक देश) जाकर अपने साथियों की मदद करें। एक महीने बाद वह पोर्ट लोको में वापिस काम पर आ गए। यह सिइरा लियोने की राजधानी फ्रीटाउन से दो घंटे की दूरी पर है।
डॉ हु मिंग, वुहान पुलमोनरी अस्पताल के आईसीयू के निदेशक शुरुआत में ही कोरोना वाइरस से संक्रमित हो गये थे। जैसे ही वह स्वस्थ हुए डॉ फेलिक्स बाएज की तरह डॉ हु मिंग अपने वार्ड में वापिस आ गए। वहाँ ऐसे मरीज हैं जिन्हें इसी तरह के समाजवादी डॉक्टरों की जरूरत है।

तो भी, सितंबर 2019 में अमरीका ने क्यूबा के ऊपर डॉक्टरों की मानव तस्करी का आरोप लगाया और ब्राज़ील के जाइर बोलसैनारो ने ब्राज़ील में कार्यरत क्यूबा के 8300 चिकित्सक कर्मियों को गुलाम मजदूर कहा। यह आपको बोलसैनारो और क्यूबन डॉक्टर के बीच दुनिया को देखने के नजरिए में फर्क के बारे में बखूबी बताता है। बोलसैनारो क्यूबन डॉक्टर की समाजवादी प्रतिबद्धता को गुलामी के रूप में देखता है।
यही कारण है कि हमारे जन लघु चिकित्सा केंद्र (पीपलस पोलीक्लीनिक्स) तेलगु कम्युनिस्ट आंदोलन (फरवरी 2020) की एक पहल लोगों की चिकत्सा में एक शानदार प्रयोग है। भारत में ये लघु चिकित्सा केंद्र उन डॉक्टरों द्वारा चलाये जाते हैं जो कम्युनिस्ट पार्टी के साथ जुड़े हुए हैं और जो खुद मुनाफा कमाने के बजाय लोगों की सेवा के लिए काम करते हैं। जब ब्रिटिश साम्राज्य का पतन हुआ तब से ही चिकित्साकर्मियों की भारी जरूरत रही है। ब्रिटिश शासन के  बाद भारत में चिकित्सा व्यवस्था न के बराबर थी। हर 7200 भारतियों पर एक डॉक्टर हुआ करता था। भारत ने आजादी तो हासिल कर ली थी पर साक्षारता दर 11 फीसदी थी और गरीबी का स्तर अचरज में डाल देने वाला था। स्वतन्त्रता वास्तविकता से ज्यादा एक तमन्ना थी।
भारत के तेलगु भाषी क्षेत्र (अब आबादी 8.6 करोड़) में कम्युनिस्ट आंदोलन से जुड़े हुए डॉक्टरों ने क्लीनिक और अस्पताल बनाए। खास तौर पर नेल्लोर का जन लघु चिकित्सा केंद्र- यह किसान और मजदूर वर्ग को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए तैयार किया गया। इस क्लीनिक ने न केवल चिकित्सा सुविधाएं दीं बल्कि छोटे क़सबों और दूर-दराज इलाकों में जन स्वास्थ सुविधा उपलब्ध कराने के लिए चिकित्सक कर्मियों को प्रशिक्षित भी किया। लघु चिकित्सा केंद्र स्थापित करने वालों में से एक डॉक्टर ने कहा कि वह पूर्णकालिक क्रांतिकारी बनना चाहता है तो कम्युनिस्ट नेता पी सुंदरय्या ने उनसे कहा कि जनता का डॉक्टर होना अपने आप में क्रांतिकारी काम है। यह वामपंथ के साथ जुड़े चिकित्सक कर्मियों को एक मौका उपलब्ध कराता है जो प्रसिद्धि से दूर रहकर काम करना चाहते हैं। और उनके लिए भी जो स्वास्थ सुविधाओं के निजीकरण की ओर बढ़ते रुझान को रोकना चाहते हैं। डॉ ज़्हांग वेंहोंग, डॉ फेलिक्स बाएज और डॉ पीवी रामचन्द्र रेड्डी एक प्रेरणादायक प्रतिबद्धता साझा करते हैं।
वास्तव में डॉ नजिहा अल डुलाइमि और उनमें कोई अंतर नहीं है। डॉ अल डुलाइमि इराक़ी कम्युनिस्ट पार्टी और इराक़ी महिला लीग की नेता हैं। डॉ अल डुलाइमि ने बगदाद की मेडिकल कॉलेज से 1940 में पढ़ाई की। जनवरी 1948 में एंग्लो-इराक संधि के नवीनीकरण के खिलाफ साम्राज्यवादी आंदोलन में जिसमें अल वातबा (बगदाद, जनवरी 1948 में हुआ एक जनांदोलन) भी शामिल है, वह शामिल हो गयी। उन्होंने कालेज से स्नातक की उपाधि लेने के बाद रॉयल अस्पताले में काम किया फिर कार्ख अस्पताल में काम करने चली गईं। डॉ अल डुलाइमि बगदाद ने शवाकह जिले में निशुल्क चिकित्सा केंद्र स्थापित किए। उनके कम्युनिस्ट क्रिया-कलापों के चलते अधिकारियों ने उन्हें देश भर में स्थानांतरित किया- सुलेमानियाह में, कर्बला में और उमराह में। हर जगह उन्होंने गरीबों के लिए निशुल्क चिकित्सालय बनाए।  डॉ अल डुलाइमि ने बेज़ेल बैक्टीरिया (यव) जो बच्चों को तेजी से अपने प्रकोप में लेता है, को मिटाने के लिए दक्षिणी इराक में काम किया। 1958 की क्रान्ति के बाद, डॉ अल डुलाइमि को नगर निगम की मंत्री बनाया गया। उन्होंने बगदाद के थावरा जिले के निर्माण में और 1959 के नारीवादी नागरिक मामलों के कानून में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जब बाथ (बगदाद की राजनैतिक पार्टी) सत्ता में आई तो उसने डॉ अल डुलाइमि को देश निकाला दे दिया। लेकिन अपने अंतिम दिन तक वह जनता की डॉक्टर और कम्युनिस्ट बनी रहीं। अगर आज डॉ अल डुलाइमि जिंदा होतीं तो वे वुहान और हूबेई प्रांत के दूसरे हिस्सों में कोरोना वाइरस को हराने में मदद करने के लिए जाने वाले डॉक्टर और नर्स के साथ चल पड़ी होती।


अगस्त 1960 में चे ग्वेरा ने हवाना में क्रांतिकारी चिकित्सा के ऊपर एक भाषण दिया था। उन्होंने बताया कि उनके भाषण के कुछ महीने पहले डॉक्टरों के एक समूह ने देश के भीतरी इलाकों में तब तक जाने के लिए मना कर दिया था जब तक उनको मोटी तनख्वाह न दी जाय। चे ने कहा यह बड़ी साधारण बात है। यह पूंजीवादी तर्क का कमाल है जो हमारी मानवीय संवेदना में रुकावट डालता है।  क्या हुआ यदि क्रांतिकारी क्यूबा ने छात्रों को डॉक्टर बनाने के लिए कोई फीस नहीं ली, लेकिन सामाजिक संपत्ति ने नौजवानों को डॉक्टर बनने के योग्य किया। मान लो हम कहें जादू से दो या तीन सौ किसान प्रकट हों, विश्वविदध्यालय के हाल से तो क्या ऐसा हो जाएगा? 1958 में क्यूबा के पास 1051 लोगों के ऊपर एक डॉक्टर था। 1953 में तानाशाह ने हवाना मेडिकल स्कूल बंद कर दिया था। इसे 1959 में 161 प्रोफेसर की जगह केवल 23 प्रोफेसर के दम पर शुरू किया गया (बाकी डॉक्टर अमरीका भाग गए थे)। क्रान्ति ने किसानो की ओर रुख किया, जिन्होंने चिकित्सा का अध्ययन किया और तब एक बड़ी ज़िम्मेदारी के साथ दुनिया के दूसरे हिस्सों में क्यूबा के चिकित्सा कौशल को लाने के लिए मिशन पर गए। आज क्यूबा में हर 121 लोगों पर एक डॉक्टर है। अमरीका में 384 लोगों पर एक डॉक्टर है। ये क्यूबा के चिकित्साकर्मी, भारत की लघु चिकित्सा केंद्र के चिकित्साकर्मियों और चीन के चिकित्साकर्मियों की तरह हैं। जैसा कि चे ने कहा था- “एकजुटता का नया हथियार”। यह समय एक होने का है न कि लांछन लगाने का।
गरम जोशी से
विजय प्रसाद
(यह अनुवाद राजेश कुमार ने किया है।)