बुधवार, 18 सितंबर 2013

अमीरों के लिए धन दौलत और गरीबों के लिए भजन कीर्तन

अन्तरराष्ट्रीय संस्था ऑक्सफेम की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के सौ सबसे अधिक अमीरों की सम्पत्ति को यदि गरीबी दूर करने में लगाया जाये तो इस धरती से चार बार गरीबी दूर की जा सकती है। दुनिया में बढ़ती असमानता पर विचार करने के लिए विश्व आर्थिक मंच (डब्लू ई एफ) की सालाना बैठक बुलाई गयी थी यह संस्था दुनिया की सबसे बड़ी कम्पनियों, संस्थाओं और सरकारों का साझा मंच है। इस बैठक में दुनिया के पूँजीपतियों के साथ भारत के मुकेश अंबानी, सुनील मित्तल, अजीम प्रेमजी जैसे 100 पूँजीपतियों सहित भारत के वणिज्यमंत्री आनंद शर्मा और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया ने भी भाग लिया। मंच ने ऑक्सफेम रिपोर्ट के मुद्दे पर चर्चा की और इस बात पर सहमति जतायी कि दुनिया में अमीरों और गरीबों के बीच असमानता तेजी से बढ़ रही है। लेकिन इस असमानता को दूर करने में सहयोग करने के मुद्दे पर मंच के लगभग सभी सदस्यों ने अपनी असहमति जतायी। भारत की ओर से बोलते हुए विप्रो अध्यक्ष अजीम प्रेम जी ने कहा “हमें अपनी सम्पत्ति का पुनर्वितरण मंजूर नहीं है गरीबों के बारे में सोचकर हम अपने मंच का समय बर्बाद कर रहे हैं। स्पष्ट है कि उद्योग जगत गरीबी दूर करने के लिए एक पाई भी खर्च नहीं करना चाहता है। 
प्रेमजी का समर्थन करते हुए मोंटेक सिंह आहलुवालिया ने कहा कि "आप लोग चिन्ता न करें, गरीबी दूर करने का काम सरकार का होता है। हम अपने देश की गरीबी दूर करने का संकल्प लेते हैं।" वायदे के मुताबिक शीध्र ही उन्होंने योजना बनायी और उस पर सरकारी मोहर लगाते हुए कहा कि आज से शहरों में 28 रूपये 65 पैसे और गांव में 22 रूपये 42 पैसे खर्च करने वाले परिवार गरीब नहीं हैं। आँकड़ों की इस बाजीगरी में जैसे चमत्कार कर दिखाया। लगभग तीस-बत्तीस करोड़ गरीब रातों रात अमीर हो गये। कारपोरेट जगत खुद को खुश होने से रोक नहीं पाया। भारत सरकार को विश्व महाशक्तियों के बधाई संदेश आने लगे। जिसमें उन्होंने लिखा कि धन्य हैं आप लोग और धन्य है वह देश जिसे मोंटेक जैसा योजनाओं का चतुर खिलाड़ी मिला। मोंटेक की बांछे खिल गयी और खुशी के मारे कहा कि अगर देश की जनता इसी तरह चुपचाप हमारी योजनाओं को बर्दाशत करती रही तो जल्दी ही हम भारत से गरीबी मिटा देंगे। यह दीगर बात है कि केवल आँकड़ों में।
लेकिन अफसोस प्रगतिशील बुद्विजीवियों को देश की यह कागजी उन्नति भी रास नहीं आयी। उन्होंने कहा कि मँहगाई आसमान छू रही है, ऐसे में कोई गरीब कैसे 28 और 22 रूपये में तीनों पहर भरपेट खाना खा सकता है? 5 रूपये में अब तो एक चाय भी नहीं मिलती। यह कहकर उन्होंने सरकार को कोसना शुरू कर दिया।
मँहगाई का नाम सुनते ही रिजर्व बैंक के गर्वनर ने सरकार के विरोधियों को नसीहत देते हुए कहा कि शर्म करो, पहले गाँव में जाकर देखो वहाँ किसान और मजदूर अब प्रोटीन युक्त खाना खाने लगे हैं। उनके खाने में दूध, दही, पनीर, दाल, सब्जी, फल, अण्डा, मीट, ड्राई फूड और फास्ट फूड की मात्रा बढ़ती जा रही है। क्या आप लोग नहीं चाहते गरीब लोग अच्छा खाना खाये?
          अभिनेता से नेता बने बंबई के एक छुटभैये ने पेट भरने के सवाल पर कहा कि देश की तरक्की से चिढ़ने वालों मुबई में 12 रूपये में भर पेट खाना मिलता है। इस बहती गंगा में हाथ धोने से सत्ता पार्टियों के नेता भी पीछे नहीं रहे उन्होंने दावा किया कि दिल्ली में पाँच रूपये में भोजन की थाली मिलती है जिससे बड़ी खुराक वाले आदमी का भी पेट भर जाता है। इसे खाकर पूरे दिन दिल्ली में घूमा जा सकता है।
ऐसे माहौल में नौजवान कश्मीरी नेता खुद को रोक नहीं पाया और बोला कि जो लोग हमारे बुजुर्गों की तकरीर में जुर्रत करने की हिमाकत कर रहे हैं वे कश्मीर आयें और देखें कि यहाँ दो रूपये में अमन-चैन के साथ इतना भोजन मिलता है जिसे खाने के बाद आदमी डकार भी न ले।
पक्ष-विपक्ष के इस वाद-विवाद ने गरीबों को उलझन में डाल दिया कि वे कहां जाएँ? मुंबई, दिल्ली या कश्मीर। तभी विदेशों से पढ़कर आये देश की गद्दी के उत्तराधिकारी ने कहा कि गरीबों के खाने की समस्या का पैसे या भौतिक चीजों की कमी से कोई लेना-देना नहीं होता क्योंकि भौतिक संसार तो नश्वर है हमें उसकी चिन्ता नहीं करनी चाहिए। गरीबी सिर्फ एक मानसिक अवस्था है। उन्होंने बताया कि गरीबों को अन्तरमन से यह सोचना चाहिए कि वे गरीब नहीं हैं और उन्हें ईश्वर का भजन करना चाहिए। इससे उनका पेट भर जायेगा और उनकी गरीबी दूर हो जायेगी। इससे अलग कुछ करने की जरूरत नहीं है। यह एक ऐसा नुस्खा है जिससे गरीबी भी खत्म हो जायेगी और दुनिया के 100 अमीरों की सम्पत्ति भी गरीबों में बाँटने की जरूरत नहीं पड़ेगी। 
-महेश त्यागी

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