मंगलवार, 10 सितंबर 2013

अब न बटे मज़लूम मेरे मुजफ्फरनगर में!

उगेगा चाँद फिर से मेरे मुजफ्फरनगर में 
रोयेगा देख कर हालात मेरे मुजफ्फरनगर में!

गोद हुई बाँझ, सिंदूर मिट गया मज़लूमो का
बिक रहा पैसो में इंसान मेरे मुजफ्फरनगर में!

भूख, बेरोजगारी, हक़ का न अब कोई मसला रहा 
कर दिया हिंदू-मुसलमां मेरे मुजफ्फरनगर में!

लाशों पर अल्लाह-राम चिल्लाने वालों 
तुम पर थूकेगा इतिहास मेरे मुजफ्फरनगर में!

वक़्त है आज फिरकापरस्तो को जवाब देने का
अब न बटे मज़लूम मेरे मुजफ्फरनगर में!

राम-अल्लाह को हम आज इंसां कर दे
जिंदगी झूमे फिर से मेरे मुजफ्फरनगर में!

-अमित

1 टिप्पणी:

  1. लाशों पर अल्लाह-राम चिल्लाने वालों
    तुम पर थूकेगा इतिहास मेरे मुजफ्फरनगर में..

    पर इन नेताओं को शर्म नहीं आने वाली ... ये फिर भी अपनी दुकानें चलाते रहेंगे ...

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